Madhya Pradesh Assembly Election 2023: डाकूओं के गढ़ 'चंबल' के चुनावी मुद्दे क्या हैं, कौन बनेगा यहां का संकटमोचक
Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव का काउंटडउन शुरू हो चुका है। इस चुनावी यात्रा में आज हम बात करेंगे डाकूओं के गढ़ यानी चंबल घाटी के असली चुनावी मुद्दों पर।
चंबल के चुनावी मुद्दों पर विशेष।
Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मुहर लगाओ... पर, वरना गोली खाओ छाती पर..। एक समय कभी ऐसा भी हुआ करता था जब चुनाव के दौरान ये नारे चंबल की घाटी में गूंजा करते थे। ये वो समय था जब चंबल का क्षेत्र खूंखार डाकूओं से थर्राता था, यहां दस्युओं का फरमान ही सर्वमान्य हुआ करता था...हालांकि अब करीब डेढ़ दशक के बाद डाकूओं का दौर खत्म हो चला है। चुनाव का समय करीब आते ही चंबल पुरानी चर्चाएं शुरू हो जाती हैं और राजनीतिक दलों में श्रेय लेने की होड़ सी मच जाती है। बहरहाल मध्य प्रदेश की इस चुनावी यात्रा में आज हम चंबल घाटी के असली चुनावी मुद्दों पर बात करेंगे।
क्षेत्र का इतिहास
मध्य प्रदेश में चुनाव हो और ग्वालियर-चंबल संभाग के इस क्षेत्र की चर्चा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। कहते हैं कि, चंबल का पानी ही बागी मिजाज का है। दरअसल, ऐसा इसलिए क्योंकि पहले सामाजिक बगावत से अपराध के रास्ते पर चलकर डाकू बने लोगों ने चंबल घाटी के बीहड़ में हनक जमाई और फिर सियासी बगावत ने इस क्षेत्र को और भी ज्यादा फेमस कर दिया। खैर, अगर चुनावी इतिहास की बात करें तो इस इलाके की जनता ने 2003 में इस क्षेत्र की जनता ने भाजपा के सिर जीत का सेहरा बांधा, लेकिन 2018 में चंबल की जनता का भाजपा से मोहभंग हो गया। बहरहाल, 18 महीने में बाद ही जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 28 विधायकों के साथ 'कमल' का दामन थामा तो कमलनाथ अलग-थलग पड़ गए और वे अपनी सरकार नहीं बचा सके। इस बात से नाराज मतदाताओं का रुख उपचुनाव में ही स्पष्ट हो गया जब मंत्री इमरती देवी सहित दो बागी विधायक उपचुनाव हार गए।
भाजपा को लगा था झटका
भारतीय जनता पार्टी को 2018 के चुनाव में सबसे बड़ा झटका इसी क्षेत्र से लगा था। चंबल घाटी को सियासत की दृष्टि से भाजपा की प्रतिष्ठित सीट माना जाता था, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कई मतदाता बागी होकर कांग्रेस के पास चले गए। परिणामस्वरूप, इस इलाके की 34 में से महज 7 सीटें ही भाजपा की झोली में आ सकीं। इसके बाद चंबल ने 26 सीटें कांग्रेस को देकर बड़ी बढ़त दिला दी। इस बार सभी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने कई दिग्गजों को यहां की कमान सौंपी है। इनमें केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से लेकर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भी शामिल हैं।
सियासी समीकरण भी समझें
ग्वालियर चंबल संभाग में आठ जिले मुरैना, भिंड, श्योपुर, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना और अशोकनगर आते हैं। आधिकारिक तौर पर ग्वालियर और चंबल को दो अलग संभाग में बांटा गया है। ग्वालियर संभाग के 5 जिलों ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना और अशोकनगर के पास कुल 21 विधानसभा सीटें हैं। वहीं, चंबल के तीन जिले मुरैना, भिंड और श्योरपुर के पास 13 सीटें हैं। इन्हें मिलाकर पूरे संभाग के पास कुल 34 सीटें होती हैं। तीन चौथाई हिस्सा ग्रामीण होने के बाद ये क्षेत्र अनुसूचित जाति बाहुल्य है।
क्या हैं अहम मुद्दे
ग्वालियर-चंबल संभाग में ग्रामीण क्षेत्रों की बहुलता है इसलिए यहां पर चुनाव मूलत: किसानों के मुद्दे पर ही लड़ा जाता है। सिंचाई के लिए पानी और बिजली, गांवों का पिछड़ापन, बेरोजगारी और लचर कानून व्यवस्था जैसे कई मुद्दे इस क्षेत्र में जन सरोकार से जुड़े हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में मुरैना से लेकर भिंड, ग्वालियर और दतिया तक ज्यादातर स्थानों पर शिक्षा के लिए बेहतर सुविधाओं का न होना युवाओं के लिए बड़ा मुद्दा है। इसी संभाग के कई जिलों में लोग स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए ग्वालियर पर निर्भर होना एक अहम मुद्दा है। इन सबके बीच किसानों के लिए यूरिया की कमी और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए 2020 का दलबदल एक मुद्दा है। ऐसे में जब भी यहां के लोग चर्चा करते हैं तो उनकी जुबां पर एक सवाल होता है कि, 'आखिर यहां का संकटमोचक कौन बनेगा?'
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शाश्वत गुप्ता author
पत्रकारिता जगत में पांच साल पूरे होने जा रहे हैं। वर्ष 2018-20 में जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ए...और देखें
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