MP Navaratri 2022: मां हरसिद्धि के समक्ष राजा विक्रमादित्य 12 वर्ष में एक बार चढ़ाते थे अपना मस्तक, मां ने ऐसे किया भोले के दरबार में दैत्यों का संहार, ये है पूरी कहानी

MP Navaratri 2022: मोक्षदायिनी मां शिप्रा के तट पर जहां आगे अवंतिका नगरी के राजा बाबा महाकाल विराजित हैं, तो ठीक इसके पीछे मां हरसिद्धि विराजित हैं। दो हजार वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य ने मंदिर का निर्माण करवाया था। राजा विक्रमादित्य 12 वर्षों में एक बार देवी मां के चरणों में अपने सिर कलम कर भेंट करते थे।

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मोक्षदायिनी मां शिप्रा के तट पर मां हरसिद्धि हैं विराजित। (Photo- Facebook)

मुख्य बातें
  1. मोक्षदायिनी मां शिप्रा के तट पर मां हरसिद्धि हैं विराजित
  2. दो हजार वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य ने मंदिर का करवाया था निर्माण
  3. राजा विक्रमादित्य देवी हरसिद्धि के चरणों में 12 वर्षों में एक बार अपना सिर कलम कर भेंट करते थे
MP Navaratri 2022: बाबा महाकाल की नगरी में मां हरसिद्धि का भी वास है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, 51 शक्तिपीठों में से यह एक चमत्कारी शक्तिपीठ है। मोक्षदायिनी मां शिप्रा के तट पर जहां आगे अवंतिका नगरी के राजा बाबा महाकाल विराजित हैं, तो ठीक इसके पीछे मां हरसिद्धि विराजित हैं। मान्यता है कि, मंदिर में मौजूद दो बड़े स्तंभों पर दीप प्रज्जवलित करने से मन की मुराद पूरी करती हैं मां हरसिद्धि।
बताया जाता है कि, यहां पर मां भगवती की कोहनी गिरी थी। यही वजह थी कि, आज से करीब दो हजार वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य ने मंदिर का निर्माण करवाया था। इसी समय दो शंकु आकार के दीप स्तंभ भी बनवाए गए थे। हजारों दीपकों से रोशन होने के बाद शाम को इन स्तंभों की रोनक देखने लायक होती है। 51 फीट उंचे इन स्तंभों को नवरात्रि में रोजाना 1 हजार 11 दीपकों से रोशन किया जाता है। हालांकि उज्जैन आने वाले श्रद्धालु रोज मां के दर्शन करते हैं। मगर शारदीय नवरात्रि के मौके पर मंदिर में माता रानी के उपासकों की बड़े पैमाने पर भीड़ जुटती है।

विक्रमादित्य करते थे मां को अपना सिर भेंट

पौराणिक प्रचलित कथाओं की अगर बात करें तो दो हजार साल पहले अवंतिका नगर के राजा विक्रमादित्य देवी हरसिद्धि के परम उपासक थे। वे मां की उपासना करते थे। 12 वर्षों में एक बार वे देवी मां के चरणों में अपना सिर कलम कर भेंट करते थे। लेकिन मां की कृपा से उनका सिर फिर से धड़ से जुड़ जाता था। कहा जाता है कि, विक्रमादित्य की मान्यता थी कि, जब तक उन पर देवी की कृपा रहेगी वे जीवित रहेंगे। इस प्रकार से विक्रमादित्य ने उज्जसिनी नगरी पर 137 सालों तक राज किया। ऐसे करके उनके सिर 11 बार धड़ से जुड़े। एक बार उनका सिर मां को भेंट करने के बाद नहीं जुड़ा और वे स्वर्ग सिधार गए। इसकी प्रामाणिकता लोग मंदिर के एक कोने में सिंदूर लगे 11 नर मूंडों के तौर पर करते हैं।

ये परिवार 100 सालों से कर रहा स्तंभ दीप रोशन

हरसिद्धि मंदिर प्रबंधन से जुड़े अवधेश जोशी के मुताबिक, पहले नवरात्रि या फिर विशेष पर्वों पर दीप स्तंभ रोशन किए जाते थे। अब विगत 100 वर्षों से उज्जैन शहर के रहने वाले जोशी परिवार के लोग प्रत्येक दिन दीप स्तंभ रोशन कर रहे हैं। 51 फीट उंचे इन स्तंभों को दीपों से रोशन करने के लिए 4 किलो रूई से बनी बत्तियां व करीब 60 लीटर तेल खर्च होता है। इसमें मंदिर में देवी मां के दर्शन करने आने वाले उपासक सहयोग करते हैं। वहीं विशेष अवसरों व त्योहारों पर स्तंभों पर मनौती के दीप जलाने के लिए पहले से बुकिंग करवानी पड़ती है। कई बार तो विशेष अवसरों की बुकिंग एक साल पहले ही हो जाती है।
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