ये है बिहार का अनोखा गांव, मिनी पंजाब के नाम से पहचान, वजह कह देगी हैरान
आपने अबतक बिहार के कई गांव के बारे में जाना और सुना होगा। वैसा ही एक गांव अररिया में है। आपको बता दें कि इस गांव को लोग सरदार टोला के नाम से जानते हैं। आइए जानते हैं क्या खासियत है इस गांव की और क्यों लोग इसे सरदार टोला कहते हैं-
अररिया, सरदार टोला
बिहार में कई ऐसे शहर हैं जिनके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे। ऐसा ही एक शहर है बिहार का अररिया। इसके नाम को लेकर दिलचस्प कहानी है। कहते हैं कि ब्रिटिश काल के दौरान यहां फोर्ब्स का एक बंगला था। जिसे 'आवासीय क्षेत्र' के नाम से जाना जाने लगा। जिसे शॉर्ट में 'आर-क्षेत्र' भी कहा जाता था यानी आर एरिया। समय के साथ आर -एरिया नाम 'अररिया' में बदल गया। बिहार का यह शहर कुल 2830 वर्ग km में फैला हुआ है। आपको जानकर हैरानी होगी कि अररिया गंगा डॉल्फ़िन का प्राकृतिक आवास है। अररिया की स्थानीय नदियों में गंगा डॉल्फ़िन पाई जाती हैं। जनगणना 2011 के अनुसार यहां कुल 742 गांव हैं। अररिया की जनसंख्या 28,11,569 है। अब आप सोच रहे होंगे कि यह सब तो ठीक है। लेकिन अररिया के किस गांव को मिनी पंजाब कहा जाता है और क्यों ? तो आइए आपको इसके बारे में भी बताते हैं।
अररिया का मिनी पंजाब
अररिया में एक गांव है। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन, इस गांव को मिनी पंजाब कहा जाता है। यहां के रहने वालों ने सामाजिक भेदभाव के की वजह से अपना धर्म बदलकर यहां जिंदगी बिता रहे हैं। आपको बता दें कि बिहार के इस गांव का नाम खास हलहलिया है और यहां महादलित मुसहर समुदाय बसे हुए हैं। गांव के इन लोगों ने सामाजिक बंधन को तोड़ कर सिख धर्म को अपना लिया है। यहां एक गुरुद्वारा भी है, जहां रोजाना कीर्तन भी होता है और खास मौकों पर लंगर भी खिलाया जाता है, जिसमें दूसरे समुदाय के लोग भी आते हैं।
लोगों ने अपनाया सिख धर्म
लोगों ने इस गांव फारबिसगंज अनुमंडल की हलहलिया पंचायत का नाम ने सरदार टोला रख दिया है। ऐसा इसलिए कि यहां करीब 300 सिख धर्म को मानने वाले रहते हैं। इतना ही नहीं, इन लोगों की वेशभूषा भी बदल गई है। साथ ही रहन-सहन भी सिख जैसा ही है। यहां महिलाएं सलवार कमीज पहन कर रहती हैं और कृपाण लटकाए रहती हैं। वहीं बच्चे भी केस बढ़ाकर पगड़ी बांधे रहते हैं।
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यहां के लोगों ने बदली अपनी जिंदगी
यहां के लोगों का कहना है कि वो लोग जब पंजाब गए थे तो सिख समुदाय के लोग हम लोगों ने अनका बड़ा सम्मान किया था। वहां कोई भेदभाव नहीं होता है। लेकिन बिहार के कई गांवों में हम लोगों जैसे महादलित के साथ भेदभाव होता और लोग दूरी बनाकर रहते है। जबकि हम लोग भी उन्हीं की तरह एक इंसान हैं। इसलिए हमने परिवार के साथ मिलकर यह बड़ा फैसला लिया कि हम सिख धर्म को अपनाएंगे। आपको बता दे कि इस समुदाय के बच्चे शिक्षा से वंचित थे, तो उन्हें शिक्षा से जोड़ने का काम किया गया। बच्चे शिक्षित होने लगे तो महिलाओं में भी बदलाव आया। बोलचाल के साथ रहन-सहन में भी फर्क आने लगा। इस बदलाव को देखकर बाकी लोग भी हमसे जुड़ने लगे।
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पहले लोगों ने किया भेदभाव
आपको बता दे कि आज से कुल सालों पहले तक इस गांव की स्थिति काफी दर्दनाक थी। यहां मुसहर समाज के लोग रहते थे। यह सभी दूसरे के खेतों में मजदूरी का काम किया किया करते थे। लेकिन जब से इन लोगों ने सिख धर्म को अपनाया है तो इन लोगों में काफी बदलाव आया। इन्होंने राजाना पूजा-पाठ शुरू किया। आज यहां गुरुद्वारा बन गए हैं और लोग सुबह-शाम कीर्तन करते हैं।
बिहार में इस गांव के लोगोंं ने भी अपना यह धर्म
धर्म बदलकर यहां रहना पहले इन लोगों के लिए काफी दक्कतों भरा था। लेकिन, समय के साथ लोगों ने इन्हें अपनाना शुरु कर दिया है। जिसके बाद अब ये लोग भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ गए हैं। उनके रहन-सहन, खान-पान के साथ-साथ अब जीवन के स्तर में भी काफी बदलाव आया है। आपको बदा दें कि यहां यह भी बता दें कि कटिहार जिले के काढ़ागोला में भी आज से कई दशक पहले लोगों ने सिख धर्म को अपनाया था और वहां के लोग आज देश के कई बड़े जगह पर आसीन हैं।
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