AAP सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा में पेश किया निजी सदस्य प्रस्ताव, न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए कदम उठाने की मांग

AAP सांसद राघव चड्ढा के प्रस्ताव में जोर दिया गया है कि न्यायिक स्वतंत्रता भारत के संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है और इससे किसी भी तरह से समझौता नहीं किया जा सकता है। न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका का हस्तक्षेप न्यायिक स्वतंत्रता के विपरीत है, खासकर तब जब भारत सरकार भारतीय अदालतों के सामने सबसे बड़ी वादी है।

AAP सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा में पेश किया निजी सदस्य प्रस्ताव

आप (AAP) के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा (Raghav Chadha) ने राज्यसभा में एक निजी सदस्य प्रस्ताव पेश किया, जिसमें भारत सरकार से देश में न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया गया है। प्रस्ताव में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि भारत के संविधान में 99वें संशोधन और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को 2016 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान के अधिकार से बाहर माना गया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार को मौजूदा ज्ञापन को पूरक करने का निर्देश दिया था। हालांकि, प्रक्रिया के मौजूदा ज्ञापन के पूरक के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं।

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'न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो'

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संकल्प भारत सरकार से भारत के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के बाध्यकारी निर्णयों के अनुसार सख्ती से कार्य करने का आह्वान करता है। प्रस्ताव आगे सरकार से न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया के ज्ञापन को शीघ्रता से अंतिम रूप देने और न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कुछ उपायों को शामिल करने का आग्रह करता है।

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