Chandigarh: चंडीगढ़ के इस गुरुद्वारे में न तो गोलक है और न ही लंगर बनता, फिर भी कोई भूखा नहीं रहता
Chandigarh: चंडीगढ़ में स्थित गुरुद्वारा नानकसर में न तो लंगर बनता है और न ही गोलक है। फिर भी इस गुरुद्वारा में आने वाली संगत भूखी नहीं रहती। यह एकमात्र ऐसा गुरुद्वारा है, जहां पर मत्था टेकने आने वाली संगत अपने घर से बना लंगर लेकर आती है। गुरुद्वारा नानकसर की यह प्रथा इसके निर्माण के बाद से ही चली आ रही है।
चंडीगढ़ में स्थित गुरुद्वारा नानकसर
- गुरुद्वारा नानकसर का निर्माण सन् 1943 से 1963 के बीच हुआ
- गुरुद्वारे नानकसर में आने वाली संगत अपने साथ लाती है लंगर
- गुरुद्वारे में तीन समय लगता है लंगर, लंगर लगाने के लिए लंबा इंतजार
Chandigarh: इस देश में एक ऐसा अनोखा गुरुद्वारा है, जहां पर न तो लंगर बनता है और न ही गोलक है। फिर भी इस गुरुद्वारा में आने वाली संगत भूखी नहीं रहती। हम बात कर रहे हैं चंडीगढ़ में स्थित गुरुद्वारा नानकसर की। दरअसल, यह एकमात्र ऐसा गुरुद्वारा है, जहां पर मत्था टेकने आने वाली संगत अपने घर से बना लंगर लेकर आती है। इसमें देशी घी के परांठे, मक्खन, सब्जियां, दाल, फल और मिठाइयां होती है। इस लंगर को ही बाकी की संगतों में बांटा जाता है। इसके बाद जो लंगर बचता है उसे शहर के सभी सरकारी अस्पतालों में भेज दिया जाता है। गुरुद्वारा नानकसर की यह प्रथा इसके निर्माण के बाद से ही चली आ रही है। इस गुरुद्वारे में लोगों की इतनी श्रद्धा है कि, आज तक कभी किसी संगत को भूखे पेट वापस नहीं जाना पड़ा।
दिवाली के दिन हुआ था गुरुद्वारा नानकसर का निर्माणसिख धर्म में गुरुद्वारा नानकसर साहिब का काफी बड़ा महत्व है। नानकसर गुरुद्वारे के प्रमुख बाबा गुरदेव सिंह बताते हैं कि, गुरु श्री नानक देव जी के परम भक्त बाबा नंद सिंह जी महाराज ने यहां पर कई वर्षों तक तपस्या की थी। यहीं पर उन्हें गुरु ग्रंथ साहिब के माध्यम से श्री गुरु नानक देव जी के दर्शन प्राप्त हुए थे। बाबा नंद सिंह जी महाराज ने इस स्थान को पहले कच्चा बनवाया था। उनके देह त्यागने के बाद बाबा ईश्वर सिंह जी महाराज उत्तराधिकारी बने। जिसके बाद उन्होंने इस स्थान पर गुरुद्वारा नानकसर का पक्का निर्माण कराया। यह निर्माण सन् 1943 से 1963 के बीच हुआ और दिवाली के दिन निर्माण पूरा हुआ।
मरीजों का होता है फ्री इलाजगुरुद्वारा नानकसर साहिब में एक सरोवर भी हुआ है। जिसके बारे में कहा जाता है कि, सरोवर में स्नान करने से त्वचा से संबंधित सभी रोग और दुख दर्द दूर हो जाते हैं। इसी मान्यता के चलते आज भी यहां हजारों भक्त प्रतिदिन सरोवर में स्नान करते है। पौने दो एकड़ क्षेत्र में फैले इस गुरुद्वारे में मरीजों का फ्री इलाज होता है। हर वर्ष मार्च में सात दिनों का वार्षिक उत्सव होता है। जिसमें देश-विदेश से हजारों संगत शामिल होने आती है।
लंगर लगाने के लिए दो माह का इंतजारइस गुरुद्वारे की एक और खासियत यहां गोलक (दानपत्र) का न होना है। मान्यता है कि, इस गुरुद्वारे में मांगने का काम नहीं है, जिसे सेवा करनी हो वह आए। इसका हेडक्वार्टर लुधियाना के नानकसर कलेरां में है। वर्ष में दो बार अमृतपान कराया जाता है। बाबा गुरदेव सिंह का कहना है कि, गुरुद्वारे में तीनों वक्त लंगर लगता है। लोग अपने घरों से लंगर बनाकर लाते हैं। इस गुरुद्वारे में संगत सेवा के लिए अपनी बारी का इंतजार करती है। अगर किसी को लंगर लगाना हो तो उसे करीब दो महीने का इंतजार करना पड़ता है।
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