Prakash Singh Badal के साथ एक युग का अंतः क्रिश्चियन कॉलेज से पढ़े, सरपंच बने और फिर ऐसा रहा सियासी सफर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बादल के निधन पर दुख जताया है। उन्होंने कहा कि बादल ने न सिर्फ पंजाब की प्रगति के लिए अथक प्रयास किये, बल्कि देश के विकास में भी बहुत योगदान दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शिअद के प्रकाश सिंह बादल। (फाइल)
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल (95) का मंगलवार को निधन हो गया। उन्हें करीब एक हफ्ते पहले मोहाली के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सांस लेने में असुविधा की शिकायत के बाद उन्हें मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अस्पताल के निदेशक अभिजीत सिंह ने फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “रात करीब आठ बजे बादल का निधन हो गया।” अपने लंबे राजनीतिक जीवन के दौरान, बादल पांच बार (1970-71, 1977-80, 1997-2002, 2007-12 और 2012-17 में) राज्य के मुख्यमंत्री पद पर रहे।
बादल 94 साल की उम्र में पिछले साल राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले देश के सबसे उम्रदराज उम्मीदवार बने, जब वह 13वीं बार चुनावी मैदान में उतरे। वह, हालांकि मुक्तसर जिले के लांबी के अपने गढ़ को नहीं बचा सके। सात दशक से अधिक के राजनीतिक करियर में यह उनकी केवल दूसरी हार थी।
मलोट के पास अबुल खुराना में आठ दिसंबर, 1927 को जन्मे बादल ने लाहौर के फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक किया। उनकी राजनीतिक यात्रा 1947 में उस वक्त शुरू हुई जब वे बठिंडा जिले के बादल गांव के ‘सरपंच’ बने। इसके बाद वे ब्लॉक समिति के अध्यक्ष बने।
वह 1957 में पहली बार उस वक्त विधायक बने जब वे कांग्रेस सदस्य के रूप में मलोट निर्वाचन क्षेत्र से पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। इसके बाद वह गिद्दड़बाहा विधानसभा सीट से मैदान में उतरे और वहां उन्हें 1969 के मध्यावधि चुनाव के दौरान अकाली दल के टिकट पर विधायक के रूप में चुना गया।
तत्कालीन मुख्यमंत्री गुरनाम सिंह ने जब कांग्रेस का दामन थाम लिया तो अकाली दल के सदस्यों ने रातोंरात खुद को फिर से संगठित किया और 27 मार्च 1970 को बादल को अपना नेता चुना तथा जनसंघ के समर्थन से सरकार बनाई। लेकिन लगातार झगड़े और आपसी कलह के कारण, उन्होंने 13 जून, 1971 को राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की सलाह दी।
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