जिस खुड़बुड़ा को जीतने के लिए गोरखाओं ने जमकर खून बहाया, आज वहीं झोपड़ियों में लगी भीषण आग
आज सुबह देहरादून के खुड़बुड़ा में भीषण आग लगने से 22 झोपड़ियां जलकर राख हो गईं। लेकिन, यह पहली बार नहीं था, जब खुड़बुड़ा ने यह भयानक दिन देखा हो। इससे पहले भी साल 1803 में खुड़बुड़ा अपनी सुरक्षा के लिए 13 दिनों तक लड़ता रहा था। हालांकि, इस दौरान खुड़बुड़ा को हार का सामना करना पड़ा आइए जानते हैं क्या है ये पूरी कहानी-
देहरादून के खुड़बुड़ा में लगी भीषण आग
देहरादून में आज सुबह भयानक आग लगी। इस हादसे में खुड़बुड़ा मोहल्ले की 22 झोपड़ियां जलकर राख हो गईं। यह हादसा उस समय हुआ जब यहां मजूदर तांबे का काम कर रहे थे। आग की इस घटना से पूरे इलाके में हाहाकार मज गया। 22 झोपड़ियों से उठती आग की लपटों और धुंए ने पूरे मोहल्ले को अपने चपेट में ले लिया। यहां एक साथ करीब 5 सिलेंडर फटने से आग ने विकराल रूप ले लिया। हालांकि, इसकी जानकारी मिलते ही फायर ब्रिग्रड की टीम मौके पर पहुंची और बड़ी मशक्कत के बाद आग पर काबू पा लिया गया। यह तो थी आज की घटना, जिसपर कुछ ही देर में जीत हासिल कर ली गई। लेकिन, एक ऐसा वक्त भी था, जब खुड़बुड़ा पूरी तरह हार गया था और इसे गुलामी झेलनी पड़ी थी।
गोरखाओं ने इन जगहों पर किया कब्जा
जी हां, बात है साल 1970 की, जब नेपाल यानी गोरखा राज्य अपने चरम पर था। उस समय गोरखाओं ने सिक्कीम सहित तीन राज्यों पर अपना कब्जा कर उस पर अपना कंट्रोल बना लिया था। उस समय उत्तराखंड का एक बड़ा हिस्सा और हिमाचल भी इसकी चपेट से अछूता नहीं रहा था। इसी साल गोरखाओं ने काली नदी को पार किया और उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र पर हमला कर इसपर भी कब्जा कर लिया।
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साल 1804 में खुड़बुड़ा की लड़ाई
इसी तरह धीरे-घीरे आगे बढ़ते हुए गोरखा खुड़बुड़ा जा पहुंचे। यहां पहुंचने के बाद उन्होंने इसपर हमला किया। खुड़बुड़ा भी अपने सम्मान में डटा रहा और गोरखाओं से बराबर का सामना किया। साल 1804 में गोरखाओं और गढ़वाल की फौज के बीच जोरदार जंग छिड़ गई और यह लड़ाई 13 दिनों तक चलती ही रही। आखिरकार, इस लड़ाई में गढ़वाल के राजा प्रद्युम्न शाह की हार हुई और वह वीरगती को प्राप्त हो गए। जिसके बाद उन्हें गोरखा कमांडर असर सिंह थापा ने पूरे सम्मान के साथ हिरद्वार भेजा था।
गढ़वाल-कुमाऊं पर गोरखाओं का अधिकार
गोरखाओं के हमले के वक्त गढ़वाल की जनता ने अपने राजा का साथ दिया और सेना को फिर से संगठित किया और डट कर लड़ते रहे। इस लड़ाई में गढ़वाल की फौज हाथ में तलवार लिए आगे बढ़ते रहीं और गोरखा अपनी बंदूक की गोलियां इन पर दागते गए। इस तरह इस लड़ाई में राजा प्रद्युम्न शाह की की मौत हो गई और पूरे गढ़वाल और कुमाऊं पर नेपाली गोरखाओं ने अपना कब्जा कर लिया।
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