बिजय मंडल: 14वीं सदी के इतिहास का ऐसा पन्ना, जिसे इतिहास ने भी भुला दिया
इतिहास के कई ऐसे पन्ने हैं जो इतिहास की किताबों में कहीं खो गए। आज हम आपके लिए दिल्ली के बिजय मंडल की कहानी लेकर आए हैं, जिसका इतिहास तो 14वीं सदी से जुड़ा है, लेकिन आर्कियोलॉजिस्ट भी इसके महत्व को समझ नहीं पाए हैं। यह इतिहास में कहीं खो गया है -
बिजय महल, जसके ऐतिहासिक महत्व को आर्कियोलॉजिस्ट नहीं समझ पाए
घुमक्कड़ी में हम आपके शहर के उन स्थानों के बारे में आप तक जानकारी पहुंचाते हैं, जिनके बारे में आपको नहीं पता। इसमें कुछ ऐसी जगहें भी होती हैं, जिनके संबंध में कुछ लोगों को कुछ हद तक जानकारी होती है। लेकिन आज हम 14वीं सदी के इतिहास का ऐसा पन्ना लेकर आए हैं, जिसे स्वयं इतिहास भी भूल चुका है। पुरातत्वविद् उसके उद्देश्य को नहीं समझ पा रहे हैं। लेकिन इतिहास के पन्ने में खो चुकी यह जगह आज भी खड़ी है। यह आज भी देश की राजधानी दिल्ली के इतिहास के कुछ राज अपने में समेटे हुए है। चलिए जानते हैं कहां हैं बिजय मंडल? इसे किसने बनाया? और यहां कैसे पहुंचे -
कहां है बिजय मंडलबिजय मंडल देश की राजधानी दिल्ली में है। यह दक्षिण दिल्ली के कालू सराय, सर्वप्रिय विहार में बेगमपुर के पास है। यह दिल्ली सल्तनत के दौरान का मध्यकालीन भारत का चौथा शहर है। बिजय मंडल को 14वीं सदी में जहांपनाह के एक हिस्से के तौर पर विकसित किया गया था।
किसने बनवाया बिजय मंडलबिजय मंडल का इतिहास दिल्ली पर राज करने वाले खिलजी और तुगलक वंश से जुड़ा है। माना जाता है कि पहली बार अलाउद्दीन खिलजी ने इसे बनवाया था, बाद में मोहम्मद बिन तुगलक ने इसका रिनोवेशन करवाया। जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं, यह इतिहास की किताब का वो पन्ना है, जिसे इतिहास भी भुला चुका है। बिजय मंडल का ज्यादातर हिस्सा अब खंडहर हो चुका है। पुरातत्वविद् यानी आर्कियोलॉजिस्ट भी इस बिल्डिंग को बनाने का उद्देश्य अभी तक नहीं समझ पाए हैं।
पूरा बिजय मंडल दोहरे उभरे हुए प्लेटफॉर्म पर बना है। ये बात भी सच है कि अभी तक इसके ऐतिसाहिक महत्व को लेकर पुरातत्वविदों को कोई जानकारी नहीं है। लेकिन यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का बहुत ही खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। बिजय मंडल 74 मीटर X 82 मीटर का एक बिल्डिंग लेआउट है। इसे किसी टावर, मीनार या मकबरे आदि की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। यह पारंपरिक तुगलक वास्तुकला का नमूना है, जिसे मलबे की चिनाई के साथ अष्टकोणीय यानी ओक्टागोनल शेप में बनाया गया है।
इब्न बतूता की कहानीइब्न बतूता ने इस असामान्य सी सरंचना और सर दारा पैलेस के खंडहरों के बारे में बताया है। उन्होंने इसे कई कमरों वाले महल और एक बड़े सार्वजनिक कक्ष के रूप में बताया है, जिसे हजार सुतन पैलेस के रूप में जाना जाता था। कहा तो यह भी जाता है कि इसे सैनिकों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक वॉच टावर के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि, जिस जगह पर बिजय मंडल है, जैसा इसका एंबियंस है, उससे लगता है कि यह आरामगाह रहा होगा और इसे सुंदर वातावरण व दृश्यों का लुत्फ लेने के लिए बनाया गया होगा।
कब और कैसे जाएंबिजय मंडल सप्ताह से सातों दिन खुला रहता है। यहां जाने के लिए सबसे आसान तरीका दिल्ली मेट्रो है। आप दिल्ली मेट्रो की येलो लाइन या मजेंटा लाइन से हॉज खास मेट्रो स्टेशन पर उतर सकते हैं। मेट्रो स्टेशन से बिजय मंडल की दूरी करीब 400 मीटर है और आप आसानी से चलकर भी 5-6 मिनट में यहां पहुंच सकते हैं।
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