जानिए दिल्ली में कहां है चोर मीनार और इसके 225 छिद्रों का डरा देना वाला इतिहास

दिल्ली सदियों से भारत पर राज करने वाली कई सल्तनतों और राजवंशों की राजधानी रही है। इसका अपना एक समृद्ध इतिहास है। इस इतिहास के कुछ पन्ने रक्तरंजित हैं और खून से लथपथ ऐसे पन्नों को सरकारों व जनता ने भुला दिया। ऐसे ही एक भूले हुए पन्ने चोर मीनार के बारे में यहां जानते हैं -

Chor Minar Delhi History.

दिल्ली का इतिहास समृद्ध है, जिसमें खूनी दास्तां भी हैं

दिल्ली में आपने कई ऐतिहासिक स्थलों के बारे में जाना होगा। लालकिला (Red Fort), इंडिया गेट (India Gate) और कुतुब मीनार (Qutub Minar) के बारे में आपको जानकारी होगी। लेकिन क्या आपको चोर मीनार के बारे में जानकारी है? अगर जानकारी है तो क्या आपको पता है कि इस मीनार में बने 225 छेदों का क्या महत्व है। चोर मीनार (Chor Minar) का इतिहास अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khilji) से जुड़ा है और बहुत ही रक्तरंजित है। इस आर्टिकल में जानते हैं चोर मीनार कहां है? इसका इतिहास क्या है? मीनार पर बने 225 छेदों का राज क्या है? और यहां कब व कैसे जा सकते हैं -

चोर मीनार का इतिहासचोर मीनार का अंग्रेजी में शाब्दिक अनुवाद Tower of Thieves है। दिल्ली के इतिहास का वो हिस्सा है, जिसे ज्यादातर लोगों ने भुला दिया। इसका संबंध दिल्ली पर राज करने वाले खिलजी वंश से जुड़ा है और यह 14वीं सदी में बनी मीनार है। मीनार की चिनाई दूर से ही नजर आ जाती है और इसे धनुषाकार (Arched) गेट जैसी आकृति वाले एक मंच पर बनाया गया है।

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225 छेदों का क्या है राजकुतुब मीनार की तरह चोर मीनार कोई बहुत ऊंची इमारत नहीं है। लेकिन इसकी खासियत मीनार पर बने कुल 225 छेद हैं, जो इस मीनार को रहस्यमय बनाते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इन छेद भाले बाहर निकालने के लिए बनाए गए थे। लेकिन कुछ इतिहासकार इन छिद्रों को अलाउद्दीन खिलजी के निर्दयता और खूनी इतिहास सो जोड़कर देखते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि अलाउद्दीन खिलजी इन छिद्रों का इस्तेमाल चोरों के कटे हुए सिरों को लटकाने के लिए करता था। ताकि आगे से किसी भी लुटेरे या चोर की ऐसी हिम्मत न हो।

मंगोलों से भी जुड़ी है कहानीचोर मीनार की एक अन्य कहानी मंगोलों से जुड़ी है। इस सिद्धांत के अनुसार साल 1305 में अली बेग की छापेमारी के दौरान 8000 मंगोल कैदियों को मार दिया गया था। मीनार पर बने इन 225 छेदों से उन्हीं मंगोलों के सिरों को लटकाया गया था। यही कारण है कि चोर मीनार को अंग्रेजी में द टावर ऑफ बीहेडिंग यानी सिर कलम करने की मीनार भी कहा जाता है।

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कहा तो यह भी जाता है कि चोर मीनार को सिर कलम करने के लिए ही बनाया गया था। कहा जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी नहीं चाहता था कि मंगोल सिर उठाएं, इसलिए उसने निर्दयता से मंगोलों के सिर कलम करके इस मीनार पर टांग दिए थे। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि अलाउद्दीन खिलजी ने सभी मंगोलों के सिर कलम किए या फिर सिर्फ उनके जो चोरी करते थे। यह संशय इसलिए भी है क्योंकि इस ऐतिहासिक बिल्डिंग का नाम चोर मीनार है।

दिल्ली की सत्ता बनते बिगड़ते देखी इस मीनार नेचोर मीनार को बनाने के पीछे क्या कारण था और इसमें मंगोलों के सिर कलम किए गए या चोरों के इससे भी कहीं अधिक आज के दौर में इस मीनार का महत्व है। क्योंकि यह मीनार करीब 700 साल का इतिहास अपने में समेटे हुए है। इस मीनार ने राजधानी दिल्ली में सल्तनतों को बनते, बिगड़ते और फिर बनते हुए देखा है। इसने खिलजी, लोदी, तुगलक, मुगल और अंग्रेजों का राज देखा है। इस मीनार ने देश को आजाद होते हुए और आज दुनिया में अपना अलग रुतबा कायम करते हुए भी देखा है। हालांकि, आज यह मीनार दिल्ली के एक कोने में शांत खड़ी है, जो कभी कैदियों की चीखों से गूंजा करती होगी। इस मीनार का अपना ऐतिहासिक और आर्किटेक्चरल महत्व है। इतिहास में रुचि रखने वाले, पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए यह बिल्डिंग ऐसे कैनवस की तरह है, जिसमें कई राज छिपे हैं और उनके जितना करीब जाओ वह और भी गहरे होते जाते हैं।

कहां है चोर मीनारचोर मीनार दक्षिण दिल्ली में मौजूद है। आज साउथ दिल्ली के ज्यादातर इलाके पॉश कहलाते हैं, लेकिन खिजली वंश के राज के समय चोर मीनार खौफ का दूसरा नाम थी। 13वीं - 14वीं सदी की यह इमारत हौजखास के एक कोने में है, जिसकी तरफ ज्यादा लोगों का ध्यान भी नहीं जाता।

कब जाएं चोर मीनारचोर मीनार हफ्ते के सातों दिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुली रहती है। यहां सालभर कभी भी जा सकते हैं, लेकिन गर्मियों के महीनों में दिल्ली में गर्मी ज्यादा पड़ने की वजह से कुछ परेशानी जरूर हो सकती है।

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कैसे जाएं चोर मीनारजैसा कि आप जानते ही हैं कि चोर मीनार हौजखास में है। यहां जाने के लिए सबसे अच्छा विकल्प दिल्ली मेट्रो है। आप दिल्ली मेट्रो की येलो और मजेंटा लाइन से हौजखास पहुंचकर आप चोर मीनार जा सकते हैं। हौजखास मेट्रो स्टेशन से चोर मीनार सिर्फ आधे किलोमीटर दूर है और 5-7 मिनट की वॉक करके आप यहां पहुंच सकते हैं।

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Digpal Singh author

खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें

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