Delhi Assembly Election: मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद DTC बस में बैठकर गांव चले गए साहिब सिंह वर्मा
वह 12 अक्टूबर 1998 का दिन था, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा को पद से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा। वह 2 साल, 228 दिन तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। जैन डायरी केस ने जहां उन्हें मुख्यमंत्री बनाया, वहीं महंगी प्याज और ड्रॉप्सी जैसे मुद्दों ने उनकी कुर्सी ही छीन ली। चलिए जानते हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे साहिब सिंह वर्मा की पूरी कहानी।
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा की कहानी
'गरीब आदमी तो उतना प्याज नहीं खाता है। ये तो मिडिल क्लास और एलीट क्लास वाले खाते हैं।' यही वो बयान और मुद्दा है, जिसके चलते दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे साहिब सिंह वर्मा (CM Sahib Singh Verma) को 12 अक्टूबर 1998 को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। वह कुल 2 साल, 228 दिन तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। दिल्ली का चुनावी रंग, इतिहास के पन्नों से की इस कड़ी में बात दिल्ली में भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा की। बात उनके मुख्यमंत्री बनने से लेकर उन्हें हटाकर सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) को मुख्यमंत्री बनाए जाने तक की। जैन डायरी केस, महंगी प्याज, ड्रॉप्सी, पानी में जहर जैसे कई मुद्दों से होकर गुजरती है साहिब सिंह वर्मा की दिल्ली में मुख्यमंत्री बनने से हटाए जाने तक की पूरी कहानी। चलिए जानते हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री बने साहिब सिंह वर्मा
1952 में दिल्ली में पहले चुनाव हुए और 1952 में विधानसभा को भंग कर दिया गया। इसके बाद दिल्ली में 1993 में विधानसभा का गठन हुआ और दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया। इस चुनाव में शालीमार बाग से चुनाव लड़े साहिब सिंह वर्मा ने सबसे बड़े अंतर से चुनाव जीता। मदन लाल खुराना को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के शिक्षा और विकास मंत्री बने। लेकिन जैन हवाला कांड में नाम आने के बाद मदन लाल खुराना ने पद से इस्तीफा दे दिया। भाजपा विधायक दल (48 में से 31 विधायकों) ने साहिब सिंह वर्मा को अपना नेता चुना और 26 फरवरी 1996 को उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
हालांकि, साहिब सिंह वर्मा को मदन लाल खुराना के विरोधी गुट का माना जाता था। इसलिए कहते हैं कि मदल लाल खुराना ने साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाए जाने का विरोध किया था। अरुण जेटली ने दिल्ली में राज्य की राजनीति में शामिल होने से इनकार कर दिया और बाद में साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री चुना गया। मदन लाल खुराना समय जहां दिल्ली में भाजपा को बनियों और पंजाबी समुदाय की पार्टी माना जाता था। वहीं साहिब सिंह वर्मा के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह गांव-देहात की भी पार्टी बन गई। साहिब सिंह वर्मा के चलते ही 'दिल्ली देहात' का एक बड़ा हिस्सा भाजपा से जुड़ा। उनके नेतृत्व में ही देहात के लिए मिनी मास्टर प्लान बनाया गया। गांवों में कम्युनिटी सेंटर और डेवलपमेंट सेंटर जैसे कई तरह के प्रयोग शुरू हुए।
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CM साहिब सिंह वर्मा ने साइकिल से सवारी की
दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच टक्कर सिर्फ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समय ही नहीं होती, बल्कि साहिब सिंह वर्मा के समय भी होती थी। उस समय दिल्ली में बिजली-पानी की समस्याएं थीं। उन्हें केंद्र से फंड भी नहीं मिल रहा था। मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने विरोध का नया ही तरीका निकाला। उन्होंने सरकारी गाड़ी लेने से इनकार कर दिया और बोले, 'मैं गाड़ी पर नहीं, साइकिल पर चलूंगा। ' वह कई दिनों तक साइकिल से ही चलते रहे। उस समय दिल्ली को लोग गर्व से कहते थे कि उनका मुख्यमंत्री साइकिल से चलता है और कई लोग उन्हें देखकर हंसते भी थे। इसी दौरान जब सीएम साहिब सिंह वर्मा साइकिल से चलते थे, तब उनकी सिक्योरिटी में लगे जवान जीप में साइकिल के आगे-पीछे चलते थे।
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पानी की समस्या ऐसे सुलझाई
एक बार की घटना है, जब हरियाणा ने दिल्ली का पानी रोक रखा था। यमुना में पानी नहीं छोड़ा जा रहा था। साहिब सिंह वर्मा अपनी कैबिनेट के साथ हैदरपुर पहुंच गए और वहीं खटिया डालकर बैठ गए। उनकी कैबिनेट के लिए भी वहां कई खटिया लगी हुई थीं। जिस समस्या को सुलझाने में कई दिन लग सकते थे, वह सीएम साहिब सिंह वर्मा के इस कदम से दो दिन में सुलझ गया।
मुख्यमंत्री बनने के बाद DDA फ्लैट में रहे
साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बनने के बाद शुरुआती दिनों में शालीमार बाग के DDA फ्लैट में रहते थे। यहां उनकी सुरक्षा को लेकर बड़ा मामला हो गया। प्रश्न ये था कि मुख्यमंत्री की सुरक्षा में लगे जवान कहां रहेंगे? फिर क्या था जवानों ने उनके फ्लैट के बाहर कॉलोनी के पार्क में टेंट लगा दिया और वहीं रहने लगे। पार्क पर इस तरह के सरकारी अतिक्रमण से लोग परेशान हो गए। लोगों ने मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा से इसकी शिकायत की और बताया कि उनका पार्क में वॉक करना मुश्किल हो गया है। तब मुख्यमंत्री ने कॉलोनी वालों से कहा, मैं इनसे कई बार कह चुका हूं कि मुझे सुरक्षा की जरूरत नहीं है, लेकिन ये कहते हैं ये हमारा काम है। हालांकि, कुछ ही दिन बाद वह श्याम नाथ मार्ग वाले बंगले में शिफ्ट हो गए और पार्क से टेंट हट गए।
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ड्रॉप्सी बीमारी भी तभी आई
साहिब सिंह वर्मा के मुख्यमंत्री काल में उनकी बड़ी तारीफ होती थी। वह बड़े मिलनसार थे, लोगों के अच्छे से मिलते थे और आत्मीयता से मिलते थे। लेकिन फिर भी वह 2 साल 228 दिन तक ही दिल्ली के मुख्यमंत्री रह पाए। उनकी सरकार के समय ही 'ड्रॉप्सी' नाम की बीमारी सामने आई। दरअसल मदर डेयरी के तेल ब्रांड धारा में सप्लायर की तरफ से मिलावटी तेल की सप्लाई हो गई। इससे ड्रॉप्सी हुआ और दिल्ली में कई बच्चों की मौत हो गई। बात में पता चला कि सप्लायर साहिब सिंह वर्मा का ही परिचित था, इससे उनकी बड़ी बदनामी हुई। एक बार तो उनके मुख्यमंत्री रहते ही पानी में जगर फैल गया। दरअसल तब पानी के टैंकर में मरा हुआ सांप था, जिससे पानी जहरीला हो गया और कई लोग बीमार हो गए।
गरीब नहीं, अमीर प्याज खाते हैं
जब साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमंत्री थे, इस समय अचानक प्याज के दाम बेतहाशा बढ़ गए। उस समय प्याज 40-50 रुपये किलो तक पहुंच गई। मीडिया में बार-बार प्याज को लेकर सरकार से सवाल पूछे जा रहे थे। उस समय सरकार की तरफ से सस्ते दामों पर प्याज बेचने की कोशिश भी हुई, लेकिन सफलता नहीं मिली और प्याज सस्ती नहीं हो पाई। कांग्रेस नेताओं ने दिल्ली सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। कांग्रेस नेता प्याज का मालाएं पहनकर विरोध कर हे थे। कांग्रेस नेताओं ने महंगे प्याज खरीदकर कई जगहों पर सस्ते में बेचे। कांग्रेस का अभियान काफी असरदार था, तब किसी ने साहिब सिंह वर्मा से इस संबंध में पूछा तो उन्होंने कहा, 'गरीब आदमी तो उतना प्याज नहीं खाता है। ये तो मिडिल क्लास और एलीट क्लास वाले खाते हैं।'
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वायरल हो गया सीएम का बयान
मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा को उस समय अंदाजा नहीं था कि उनके बयान का क्या मतलब निकाला जाएगा। उनका यह बयान उस समय वायरल हो गया और उनके खिलाफ गया। दूसरी तरफ उस समय तक पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना भी हवाला कांड में निर्दोष साबित हो चुके थे। उनकी तरफ से भी दबाव बनाया जाने लगा। उन पर सीट छोड़ने का दबाव बना तो कहते हैं उन्होंने सीट मदन लाल खुराना को दोबारा मुख्यमंत्री न बनाए जाने की शर्त पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया। उनके बाद सुषमा स्वराज को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया।
साहिब सिंह वर्मा के इस्तीफे पर भी ड्रामा
मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने 12 अक्टूबर 1998 को अपने पद से इस्तीफा दिया। वह अपने पैतृक घर मुंडका जाने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन इसी बीच करीब 5 हजार लोगों ने मुख्यमंत्री आवास को घेर लिया। सीएम आवास के बाहर एक सरकारी बस खड़ी थी, लेकिन रास्ते लोगों ने रास्ता रोका हुआ था। तब साहिब सिंह ने एक बुजुर्ग से कहा, 'ताऊ जाने दे।' बुजुर्ग बोले, 'ऐसे कैसे इस्तीफा ले लेंगे। तू जाट है… तू कैसे चला जावेगा। हम तुझे जाने ही नहीं देंगे।' इसके बाद साहिब सिंह वर्मा डीटीसी बस में बैठे और अपने घर मुंडका चले गए।
साहिब सिंह वर्मा के बारे में
वह दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर जाट बाहुल्य गांव मुंडका के मूल निवासी थे। उनका जन्म 15 मार्च 1943 को हुआ था। उनके पिता मीर सिंह वर्मा एक जमींदार परिवार से थे। साहिब सिंह वर्मा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया और फिर लाइब्रेरी साइंस में PhD भी की। दिल्ली आगर वह नगर निगम की लाइब्रेरी में काम करने लगे। साहिब सिंह वर्मा उन दिनों जहां रहते थे, वहीं पर एक मशहूर हलवाई की दुकान थी। वहां अक्सर जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी दूध-जलेबी खाने आते थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात अटल बिहारी वाजपेयी से हुई और फिर वह भी पहले जनसंघ और बाद में भाजपा में शामिल हो गए। 1977 में साहिब सिंह वर्मा पहली बार दिल्ली नगर निगम में पार्षद चुने गए। साल 1991 में उन्होंने बाहरी दिल्ली से लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन कांग्रेस नेता सज्जन कुमार ने उन्हें हरा दिया। साल 1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव फिर से शुरू हुए तो भाजपा ने उन्हें शालीमार बाग से अपना उम्मीदवार बनाया। वह 21 हजार से भी ज्यादा मतों से जीते और मदन लाल खुराना की सरकार में शिक्षा मंत्री और विकास मंत्री बन गए।
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1998 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद 1999 में उन्होंने एक बार फिर बाहरी दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा। इस बार उन्हें दो लाख से अधिक वोटों से जीत मिली। साल 2002 में वह केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में श्रम मंत्री बने। 30 जून 2007 को जयपुर-दिल्ली हाईवे पर एक कार दुर्घटना में साहिब सिंह वर्मा का निधन हो गया।
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