दिल्ली को 1993 में 37 साल बाद मिला मुख्यमंत्री, फिर क्यों मदनलाल खुराना को 2 साल में इस्तीफा देना पड़ा; जानें

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का प्रचार जोरों पर है। 5 फरवरी को सभी 70 सीटों के लिए मतदान होगा। दिल्ली का चुनावी माहौल हमेशा रोचक होता है, लेकिन चुनाव और सरकार बनने के बाद भी राजनीतिक उथल-पुथल जारी रहती है। 1993 के चुनाव में मदन लाल खुराना ने जीत हासिल की, लेकिन 2 साल, 86 दिन बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। किन हालात में उन्होंने इस्तीफा दिया, बड़ा रोचक है ये मामला।

मदन लाल खुराना को क्यों देना पड़ा इस्तीफा

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का प्रचार जोर-शोर से हो रहा है। दिल्ली में 5 फरवरी 2025 को सभी 70 सीटों के लिए एक साथ मतदान होगा। जबकि 8 फरवरी को चुनाव परिणाम घोषित होंगे। दिल्ली का चुनावी दंगल हमेशा ही बड़ा रोचक होता है। लेकिन चुनाव के बाद और सरकार बनने के बाद भी यहां राजनीतिक उथल-पुथल जमकर होती है। ऐसी ही एक घटना हम दिल्ली के इतिहास से आपके लिए लेकर आए हैं। दिल्ली में 1956 के बाद 1993 में चुनाव हुए और इस चुनाव में जीत के हीरो रहे मदन लाल खुराना को सिर्फ 2 साल बाद ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। आखिर ऐसा क्यों हुआ? वो कौन सी परिस्थितियां थीं, जिनके चलते मदन लाल खुराना को इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा? चलिए जानते हैं -

ये तो आप जानते ही हैं कि दिल्ली का पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था और ब्रह्म प्रकाश पहले मुख्यमंत्री रहे। साल 1955 में उनकी जगह गुरमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद साल 1956 में दिल्ली विधानसभा को भंग करके दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। साल 1993 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली बनने के साथ दिल्ली में 37 साल बाद फिर विधानसभा बनी और चुनाव हुए। दिल्ली का चुनावी रंग, इतिहास के पन्नों से की कहानी इसी चुनाव से शुरू होती है।

भाजपा को 49 सीटों पर मिली जीत

1952 के चुनाव में दिल्ली में कुल 48 सीटें थीं, लेकिन जब 1993 में दिल्ली में दूसरा विधानसभा चुनाव हुआ तो दिल्ली में विधानसभा सीटों की संख्या 70 थी, जो आज तक भी है। राम मंदिर आंदोलन ने भाजपा का ग्राफ देशभर में बढ़ा दिया था। उस समय भाजपा राम मंदिर के लिए जन जागरण अभियान चला रही थी। इसी बीच 1993 के अंत में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच था। भाजपा ने दिल्ली विधानसभा की 70 में से 49 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा।

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