दिल्ली के बीचों-बीच है खूनी दरवाजा, जानिए क्यों मिला ऐसा नाम और इसे किसने बनाया

दिल्ली सदियों से सत्ता के केंद्र में रही है। यहां मध्य काल की कई ऐसी निशानियां हैं, जो आज भी सीना ताने खड़ी हैं। ऐसा ही एक कुख्यात नाम है खूनी दरवाजा का। खूनी दरवाजा का असली नाम ये नहीं था, लेकिन यहां ऐसा कुछ हुआ कि इसे खूनी दरवाजा कहा जाने लगा। जानिए इसका इतिहास और यहां कैसे पहुंचें।

कैसे पहुंचें खूनी दरवाजा

किसी भी जगह का नाम यूं ही नहीं रखा जाता है। नाम के पीछे जरूर कोई न कोई कहानी होती है। ऐसा ही एक नाम दिल्ली का खूनी दरवाजा है। इस दरवाजे को यह नाम दिया गया, क्योंकि यहां का इतिहास ही खूनी है। कहानी भारत के पहले स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी है और देश पर राज करने वाले मुगलों व अंग्रेजों से भी जुड़ी है। खूनी दरवाजा दिल्ली के बीचों-बीच, व्यस्त सड़क के बीच में है और अपने अंदर सदियों का इतिहास समेटे हुए है। तो फिर देर किस बात की? घुमक्कड़ी में आज चलते हैं दिल्ली की उस डरावनी जगह पर जहां का इतिहास रूह कंपा देता है।

असली नाम क्या है?

दिल्ली में कश्मीरी गेट, मोरी गेट, दिल्ली गेट और इंडिया गेट जैसे कई गेट हैं। लेकिन खूनी दरवाजा ही ऐसा गेट है, जिसका नाम सुनकर डर लगता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस गेट का असली नाम खूनी दरवाजा नहीं है, बल्कि एक खूनी घटना के बाद इसे खूनी दरवाजा कहा जाने लगा। बल्कि इस गेट का इसली नाम काबुली दरवाजा था। जो आज खूनी दरवाजा के नाम से जाना जाता है।

किसने बनाया खूनी दरवाजा

खूनी दरवाजा यानी काबुली दरवाजा का निर्माण अफगान शासक शेर शाह सूरी ने 16वीं सदी में करवाया था। दिल्ली के अंदर या दिल्ली से बाहर जाने के लिए यह सबसे उत्तरी दरवाजा था। जब भी काबुल के लिए कारवां निकलता था तो वह इसी गेट से होकर निकलता था, इसलिए इसे काबुली दरवाजा कहा जाता था। हालांकि, 16वीं सदी में भी काबुली गेट एक तरह से खूनी दरवाजा ही कहलाता था, क्योंकि अपराधियों के कटे हुए सिरों को यहां टांग दिया जाता था। ताकि शरारती तत्व अपराध करने से पहले सौ बार सोचें।

End Of Feed