Famous Temple in Delhi: पांडवों ने बनाए थे दिल्ली के ये दो भैरों मंदिर, यहां एक पंखे में चढ़ती है शराब तो दूसरे में दूध
Famous Temple to Visit in Delhi: राजधानी दिल्ली में भैरों बाला के दो प्राचीन और अनोखे मंदिर स्थित है। इन दोनों का इतिहास एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इनका निर्माण पांडवों ने करीब 5500 साल पहले करवाया था। रविवार के दिन इन मंदिरों में दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
बटुक भैरों नाथ मंदिर
- पांडवों ने 5500 साल पहले कराया था दोनों मंदिरों का निर्माण
- किले की सुरक्षा के लिए भीम काशी से लाए थे भगवान भैरव नाथ को
- एक मंदिर में भैरव बाबा खुद को स्थापित, एक में इनकी जटा
Temples to Visit in
बटुक भैरों नाथ मंदिरदिल्ली का यह प्राचीन मंदिर नेहरू पार्क चाणक्य पुरी में स्थित है। इसे राजधानी के सबसे प्रमुख मंदिरों में शामिल किया जाता है। मान्यता है कि इसका निर्माण पांडवों ने करीब 5500 साल पहले कराया था। हालांकि इस मंदिर की बनावट बहुत पुरानी नहीं है क्योंकि इस मंदिर का कई बार पुर्निर्माण किया जा चुका है। इस मंदिर में भाक्तों की साल भर भीड़ लगी रहती है। खासतौर पर हर रविवार को इस मंदिर में भैरों बाबा के दर्शन के लिए हजारों भक्त आते हैं। इस साल नए साल के पहले दिन रविवार पड़ रहा है। इसलिए यहां पर भक्तों की बड़ी भीड़ उमड़ने की संभावना है। इस मंदिर में भगवान भैरों बाबा का सिर्फ चेहरा ही दिखता है। मंदिर में दो पंखे बनाए गए हैं। इनमें से एक में प्रसाद के रूप में शराब और दूसरे में दूध चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि, यहां चढ़ाई जाने वाली शराब और दूध मंदिर के नीचे बने कुएं में चली जाती है।
किलकारी बाबा भैरों नाथ मंदिरकिलकारी बाबा भैरों नाथ मंदिर पुराने किला के बाहर और प्रगति मैदान के सामने स्थिति है। ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने राक्षसों से अपने किले की सुरक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण के सुझाव पर किलकारी भैरों नाथ मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर से जुड़े इतिहास के अनुसार, मंदिर में भैरों बाबा को लाने के लिए भीम काशी गए। भीम ने बाबा से इंद्रप्रथ चलने की अराधना की। बाबा ने भीम के समक्ष शर्त रखी कि, वे रास्ते में जहां भी उन्हें पहले रख देगें, वो वहीं पर विराजमान हो जाएंगे। भीम ने यह शर्त मान ली और बाबा को अपने कंदे पर बिठाकर चल दिए जब वे यहां पहुंचे तो बाबा भैरों ने ऐसी माया रची की भीम को मजबूर होकर उन्हें अपने कंदे से नीचे उतारना पड़ गया। इसके बाद भीम जब दोबारा साथ चलने की विनती करने लगे तो बाबा खुद तो आगे नहीं गए, लेकिन किले की सुरक्षा हेतु अपनी जटा काट कर दे दी। कहां कि इसे अपने किल में विस्थपित करें और वो वहां पर किलकारी मार कर सुरक्षा करेंगे। इसी स्थान को आज किलकारी बाबा भैरों नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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