इंद्रप्रस्थ से कैसे बनी दिल्ली, इसे किसने और कब बसाया; राजा ढिल्लू की भी कहानी जानें

नई दिल्ली देश की राजधानी है जो दिल्ली का हिस्सा है। दिल्ली का इतिहास काफी पुराना और समृद्ध है। यहां पर तमाम राजवंशों ने राज किया और आज भी उनकी निशानियां यहां पर हैं। दिल्ली हमेशा से ही देश की राजनीति का केंद्र रही है। राजा ढिल्लू से लेकर अंग्रेजों तक और पहले मुख्यमंत्री ब्रह्म प्रकाश से लेकर आतिशी तक, जानें दिल्ली का पूरा इतिहास -

दिल्ली की दास्तां

दिल्ली एक ऐतिहासिक शहर है। यह पारंपरिक और आधुनिक लाइफस्टाइल का मिक्सचर है। दिल्ली में कई म्यूजियम, ऐतिहासिक किले और स्मारक, लाइब्रेरी, ऑडिटोरियम, बोटैनिकल गार्डन और पूजा स्थल हैं। दिल्ली में नई दिल्ली देश की राजधानी भी है और यहां पर आधुनिक लाइफस्टाइल का अनोखा ही रूप देखने को मिलता है। यहां पर दुनियाभर के ब्रांड और रेस्त्रां भी हैं। दिल्ली का इतिहास बड़ा ही समृद्ध है। चलिए जानते हैं दिल्ली के बारे में विस्तार से -

दिल्ली की इतिहास गाथा

दिल्ली के इतिहास की गाथा द्वापर युग में महाभारत काल से शुरू होती है। महाभारत में ही दिल्ली में पहली बार मानव बस्ती की दास्तां मिलती है। हस्तिनापुर से बाहर निकलकर पांडवों ने उस समय खांडवप्रस्थ नाम की जगह को देवराज इंद्र की मदद से बसाया। इस जगह का नाम पांडवों ने इंद्रप्रस्थ रखा। हालांकि, आज पांडवों के इंद्रप्रस्थ के दौरान का कोई भी नामो-निशान दिल्ली में नहीं मिलता है।

राजा ढिल्लू की कहानी

राजा ढिल्लू को दिल्ली का मूल संस्थापक माना जाता है। माना जाता है कि राजा ढिल्लू ने 800 ईसा पूर्व के आसपास दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली में अपना शहर बसाया। राजा ढिल्लू को धिल्लू और दिलू नाम से भी जाना जाता है और उनके नाम पर ही इस शहर का नाम दिल्ली पड़ा। बाद के समय में इसी जगह कुतुब मीनार बनाई गई। ढिल्लू को महाभारत के कर्ण का वंशज माना जाता है। स्वामी दयानंद सरस्वती की सत्यार्थ प्रकाश में ढिल्लू के शासनकाल को 8वीं शताब्दी ईसा-पूर्व की शुरुआत में माना जाता है। जबकि आधुनिक इतिहासकार राजा ढिल्लू को ईसा-पूर्व पहली शताब्दी में मौर्य वंशज मानते हैं।

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