आजादी के नायकों के बलिदान पर आधारित है केशव भारद्वाज की पुस्तक 'रेडलाइट', लंबे अरसे बाद भोजपुरी में लिखी गई ऐसी गद्य
केशव भारद्वाज की पुस्तक 'रेडलाइट' आजादी के नायकों की यह कहानी आस्था, त्याग और समर्पण पर आधारित है। यह किताब ब्रिटिश औपनिवेशिक देशों में माननीय त्रासदी की एक ऐतिहासिक दस्तावेज है।
केशव भारद्वाज की पुस्तक 'रेडलाइट'
Keshav Bhardwaj Book Redlight: केशव भारद्वाज की कहानी 'रेडलाइट' ब्रिटिश औपनिवेशिक देशों में माननीय त्रासदी की एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। नायक, कंपाला के प्रसिद्ध जामग्रस्त रेडलाइट पर अवस्थित 'मुलागो अस्पताल' को स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति आस्था, त्याग और समर्पण की स्थली के रूप में देखता है। छोटी परंतु बेहद मार्मिक इस कहानी में केशव ने मानवीय जीजिविषा के सारे रंग बिखेरे हैं।
पुलिसिया प्रशिक्षण प्राप्त नायक भारत से कोसों दूर अफ्रीकी समाज की विसंगतियों पर नजर फेरते गाहे-बगाहे उसे भारतीय समाज के मूल्यों व संस्कारों से जोड़ते भी रहते हैं। अपने निवास के निकट प्राचीन गणेश मंदिर समेत प्रवासी भारतीयों के संगत पाकर उद्वेलित भी हो जाते हैं। आधुनिकता संग पारम्परिकता के सुंदर मेल को चकाचौंध करने वाले नाईट क्लबों और विश्व में उन्मूलित मलेरिया से मरते लोगों को भी देखते हैं।
कहानी में नायक की जीवनचर्या
भारत तथा युगांडा के सामाजिक सार्वभौमिक तत्त्वों की खोज नायक का पसंदीदा विषय है। कहानी हमें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्मा के प्रसिद्ध प्रधानमंत्री यू शॉ का ब्रिटिश हुकुमत के विरुद्ध ताकतवर अभियान और उन्हें युद्धबंदी बनाए जाने की मार्मिक कथा से भी परिचित कराता है। कहानी के मध्य में जामग्रस्त ट्रैफिक रेडलाइट पर नायक का प्रतिदिन रुकना, भारत की तरह ही चौराहे पर लगे स्थानीय वस्तुओं के हाट-बाजार की गहमा गहमी को देखना, उसका पसंदीदा जीवनचर्या बन जाता है।रेडलाइट पर रसीले आम की टोकरी के बोझ से दबी कंपाला की आकर्षक युवती के यौवन का रूप आस्वादन जहां पुरुष तत्त्व की सहज चाहत को दर्शाता है। वहीं, उसके आरोग्य की पूछताछ करना और उसके आम की टोकरी की कीमतों पर तोलमोल करने की आदत के प्रति खेद प्रकट करना, मानव मूल्यों का उदात्त रूप है। केशव ने अपनी कहानी के जरिए 'मुलागो अस्पताल' को ऐतिहासिक महत्त्व का विषय बना दिया जो विश्व कथा साहित्य में एक रूपक बन गया। यह अस्पताल, पेरिस के उस प्रसिद्ध 'कब्रिस्तान' की तरह है जो फ्रांसीसी राज्य क्रांति के अधिनायकों के साथ विश्व प्रसिद्ध विचारकों, दार्शनिकों और आंदोलनकारियों की कब्र से पटा है।
स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग, समर्पण और बलिदान की कहानी
'मुलागो अस्पताल', द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश दमनकारी शक्ति द्वारा माल्टा से लाए 47 युद्धबंदियों को युगांडा के 'बाम्बो बैरक' में रखा , जहां वे मलेरिया के शिकार हुए और अंततः 'मुलागो अस्पताल' पहुंच अपने प्राण न्यौछावर किए। यह कहानी अस्पताल के जरिए भारत से लेकर अफ्रीका तक की जनता को अपने पूर्वज स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग को स्मरण करने और उनके प्रति समर्पण की भाव रखने को मजबूर करता है।
इसके अलावा, गोलकी फ्रेम के चश्मा कहानी में बेतिया शहर की सारी पुरानी बातें सिनेमा के रील के जैसे घुम रही होती है। महारानी जानकी कुंवर कालेज के स्थापना के पीछे की वजह की बात अद्भुत ढंग से दर्शाया गया है। जार्ज आरवेल, प्रकाश झा और मनोज वाजपेई को भी एक ही कहानी में भाव के प्रवाह में उकेरा गया है। अभी भी उस शहर के लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। इसको पढते समय ऐसा लगा जैसे कोई स्थापित लेखक का साहित्य पढ़ा जा रहा है।
कल्पवास में प्रयाग का बेबाक और बेजोड़ वर्णन
बता दें, फैसला और खिलौना महिला शक्ति को दर्शाते हुए जबरदस्त बुनी हुई है। कल्पवास में प्रयाग का बेबाक और बेजोड़ वर्णन भी देखने को मिलता है। इस किताब को हर उस व्यक्ति को जरूर पढ़ना चाहिए, जो उस युग का हो। वह अपने आप को इस किताब का एक पात्र ही समझेगा। इस किताब की हर कहानी बढ़िया-जीवंत मेरे और आपके, गांव-घर और शहर की है। जानकारी दे दें, भोजपुरी में ऐसी कथेतर गद्य एक लंबे अरसे के बाद लिखी गई है, जो आपको शुरू से लेकर आखिर तक बांधे रखेगी।
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