पत्नियों ने एक दूसरे के पतियों की बचाई जान, स्वैप के जरिए किडनी का सफल ट्रांसप्लांट

Kidney Transplant: फर्ज करिए कि आप किडनी ट्रांसप्लांट के लिए डोनर का तलाश में हो। लेकिन आपको डोनर नहीं मिल पा रहा हो तो हैरान होना लाजिमी है। दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में किडनी के दो मरीजों को डोनर की तलाश थी। जब उनके सामने सभी विकल्प समाप्त हो गए तो दोनों परिवारों ने एक दूसरे को किडनी देने का फैसला किया। खास बात यह कि एक परिवार का संबंध जम्मू-कश्मीर तो दूसरे का संबंध यूपी से है।

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दिल्ली के अस्पताल में किडनी स्वैप के जरिए का सफल ट्रांसप्लांट

मुख्य बातें
  • किडनी स्वैप के जरिए ट्रांसप्लांट
  • पत्नियों ने एक दूसरे को डोनेट की किडनी
  • दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में ट्रांसप्लांट
Kidney Transplant: वैसे तो उन दोनों में पहले से खून का रिश्ता नहीं था। लेकिन एक घटना ने दो अलग अलग परिवारों को एक कर दिया। दरअसल फोर्टिस ओखला में यूपी और कश्मीर के दो तीमारदार अपने अपने किडनी पेशेंट का इलाज करा रहे थे। जरूरत किडनी को बदलने की थी। लेकिन मेडिकल पैरामीटर पर दोनों के डोनर सूट नहीं कर रहे थे। ऐसे में दोनों परिवारों के सामने विकट चुनौती थी। मुश्किल की इस घड़ी में दोनों परिवारों ने डोनर को एक्सचेंज करने का फैसला किया जिसे मेडिकल भाषा में स्वैप कहा जाता है। यह केस इसलिए भी अलग था क्योंकि दोनों के डोनर का संबंध अलग अलग राज्यों से था। एक का रिश्ता जम्मू-कश्मीर तो दूसरे का रिश्ता यूपी से था।

एक मरीज यूपी तो दूसरा जम्मू-कश्मीर से

62 साल के कश्मीर के रहने वाले मोहम्मद सुल्तान डार और यूपी के बरेली के रहने वाले विजय कुमार को किडनी के सही डोनर नहीं मिल रहे थे। काफी तलाश के बाद उम्मीद तब जगी जब दोनों परिवारों ने एक दूसरे को किडनी डोनेट करने का फैसला किया। विजय कुमार की पत्नी ने मोहम्मद सुल्तान डार को किडनी डोनेट किया और बदले में डार की पत्नी ने विजय कुमार को किडनी दान की।

18 महीने से थे डायलिसिस पर

किडनी ट्रांसप्लांट से पहले दोनों मरीज करीब 18 महीने डायलिसिस पर थे। डोनर स्वैप के जरिए किडनी ट्रांसप्लांट पर फोर्टिस अस्पताल के नेफ्रोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लाट के प्रिंसिपल डॉयरेक्टर डॉ संजीव गुलाटी ने बताया कि जब डोनर और मरीज के ब्लड ग्रुप मैच नहीं करते हैं को स्वैप की मदद ली जाती है, हालांकि यह भारत में बहुत कम होता है। स्नवैप का फैसला लेने के बाद दोनों मरीजों को अस्पताल में भर्ती किया गया जहां आवश्यक टेस्ट किए गए।16 मार्च को 6 डॉक्टरों की टीम ने 6 घंटे में चार सर्जरी की। डॉ संजीव गुलाटी बताते हैं कि अगर समय पर किडनी ट्रांसप्लांट नहीं होता तो दोनों मरीज अधिकतम पांच साल तक ही जिंदा रह पाते।
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