फीडबैक यूनिट की फांस में फंसे दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, क्या है यह
दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के खिलाफ फीड बैक यूनिट मामले में केस चलाने के लिए गृहमंत्रालय ने मंजूरी दे दी है।
मनीष सिसोदिया, दिल्ली के डिप्टी सीएम
दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने नई आबकारी नीति में पूछताछ के लिए 26 फरवरी को बुलाया है। इसके साथ ही गृहमंत्रालय ने फीड बैक यूनिट मामले में केस चलाने के निर्देश दिये हैं। हाल ही में जब सीबीआई ने एक्साइज पॉलिसी के सिलसिले में पूछताछ के लिए बुलाया था तो उन्होंने कहा कि बजट में बिजी हैं लिहाजा कुछ समय चाहिए। सीबीआई ने उस दिन उन्हें पूछताछ के लिए नहीं बुलाया और उसके बाद सिसोदिया की तरफ से बयान आया कि आम आदमी पार्टी के अच्छे काम बीजेपी को रास नहीं आ रहे लिहाजा तरह तरह से परेशान किया जा रहा है। लेकिन दिल्ली की बेहतरी के लिए जो कुछ अरविंद केजरीवाल की सरकार काम कर रही है उसे रोका नहीं जाएगा भले ही रास्ते में कितनी अड़चनों का सामना करना पड़े। लेकिन यहां हम बताएंगे कि फीड बैक यूनिट क्या है जिसकी वजह से वो ना सिर्फ चर्चा में हैं, बल्कि मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।संबंधित खबरें
इस तरह एफबीयू का हुआ गठन
अरविंद केजरीवाल की सरकार ने फीडबैक यूनिट का गठन क्यों किया इसके लिए आठ साल पीछे यानी 2015 में चलना होगा। आप सरकार, एंटी करप्शन ब्यूरो को खो चुकी थी। एसीबी को दिल्ली के लेफ्टीनेंट गवर्नर के अधीन कर दिया गया था। जैसा कि एसीबी के नाम से स्पष्ट है कि इसका काम सरकारी विभागों और बाबुओं पर निगरानी रखना था ताकि भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई की जा सके। उस वक्त मुकेश कुमार मीना को एसीबी का मुखिया बनाया गया और वो तत्कालीन एलजी नजीब जंग को रिपोर्ट कर रहे थे। केजरीवाल सरकार के हाथ से जब इतना बड़ा हथियार छिन गया तो आम आदमी पार्टी की सरकार ने सतर्कता विभाग फीड बैक यूनिट के गठन का फैसला किया।इसका मकसद दिल्ली सरकार के अधीन आने वाले सरकारी संस्थान, स्वायत्त संस्थान, और दूसरे विभागों पर निगरानी रखना था। कैबिनेट मीटिंग के बाद 29 सितंबर 2015 को एफबीयू का गठन किया गया। संबंधित खबरें
विवाद क्यों हुआ
अब सवाल यह है कि एफबीयू पर विवाद क्यों हुआ। इस तरह के आरोप लगे कि बिजनेस रूल 1993 के रूल 3 के तहत इसकी जिम्मेदारी डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को दी गई। लेकिन आरोप यह है कि मुख्यमंत्री ने बिना कैबिनेट नोट के इस एजेंडे को पेश किया गया जो सरासर नियमों की अनदेखी थी। दिल्ली के एलजी वी के सक्सेना का आरोप है कि इस तरह से खुद सीएम ने संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन किया। यही नहीं नियमों की अनदेखी करते हुए 29 सितंबर 2015 को अधिसूचित कर दिया।संबंधित खबरें
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ललित राय author
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