गंगा के मायके में : ना गौमुख ना गंगोत्री, यहां से शुरू होता है गंगा का सफर, देवों का भी प्रयाग है देवप्रयाग

गंगा के मायके में यात्रा करते हुए अब हमारी गंगा यात्रा देवप्रयाग पहुंच गई है। देवप्रयाग ही वह स्थान है, जहां पर पहली बार गंगा के दर्शन होते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने भी रावण के वध के बाद यहां पर तपस्या की थी। कहते हैं यहां एक ऐसा कुंड है, जिसमें स्नान से कुष्ठ रोग दूर होता है।

Ganga ki Yatra - Ganga ke Mayke me.

गंगा के मायके में पांचवा प्रयाग - देवप्रयाग

Ganga ke Mayke me: गंगा के मायके में सफर करते हुए आखिर हम उस स्थान पर पहुंच गए हैं, जहां से गंगा अपना रूप लेती है। जब हम गंगा की यात्रा (Ganga ki Yatra) पर निकले थे तो हमने पंच प्रयाग (Five Prayag) के सफर की योजना बनाई थी। गंगा के मायके में इस सफर की शुरुआत हमने विष्णुप्रयाग (Vishnuprayag) से की और फिर हमारी इस यात्रा का अगला पड़ाव नंदप्रयाग (Nandaprayag) बना। इसके बाद हम कर्ण प्रयाग (Karnaprayag) गए और रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) में भी गंगा की यात्रा के साक्षी बने। इस दौरान हमने पंच प्रयागों में से चार प्रयाग के दर्शन किए, वहां मौजूद मंदिरों में दर्शन-आरती की और पवित्र संगमों पर स्नान किया। गंगा की इस यात्रा में हमनें पांचवा पग पांचवे केदार की तरफ नहीं, बल्कि उस नदी की तरफ बढ़ाया जिसे लोग गंगा समझते हैं, लेकिन वह गंगा है नहीं। जी हां गंगा के मायके की इस यात्रा में हमने गौमुख (Gaumukh) से निकलने वाली भागरथी नदी (Bhagirathi River) का त्रिहरी के निवास टिहरी (Tehri) तक का सफर किया। अब इस सफर की अगली मंजिल पांचवा प्रयाग है, जहां से गंगा अपने पतित पावनी स्वरूप में आगे बढ़ती है।

इस सफर में अब हम देवप्रयाग (Devprayag) पहुंच गए हैं। देवप्रयाग गंगा की इस यात्रा में पांचवा प्रयाग है। इस पांचवे प्रयाग के सफर के साथ ही गंगा के मायके की यह यात्रा भी विराम लेगी। क्योंकि यहां से गंगा तेजी से आगे बढ़ते हुए ऋषिकेश (Rishikesh) और फिर हरिद्वार (Haridwar) होते हुए मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। पंच प्रयागों में देव प्रयाग का बहुत ही अधिक महत्व है, क्योंकि यहीं पर गौमुख से निकलने वाली भागीरथी नदी और सतोपंथ ग्लेशियर से आने वाली अलकनंदा (Alaknanda) का संगम होता है। भागीरथी और अलकनंदा के संगम से गंगा नदी बनती है। तो आज आपको अपने उस प्रश्न 'गंगा कहां से निकलती है?' का भी जवाब मिल गया। गंगा कहीं से नहीं निकलती, बल्कि देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के संगम से गंगा नदी बनती है।

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कहां है देवप्रयागदेवप्रयाग उत्तराखंड के टिहरी जिले में एक बहुत ही खूबसूरत पहाड़ी शहर है। यह भारत की सबसे पवित्र जगहों में से एक है। यही वह जगह है, जहां पहली बार गंगा के दर्शन होते हैं। समुद्र तल से करीब 830 फीट की ऊंचाई पर बसे देवप्रयाग में एक ओर से अलकनंदा और दूसरी ओर से भागीरथी नदी आती हैं। इन दोनों नदियों के मिलने से गंगा नदी बनती है। पवित्र गंगा नंदी में डुबकी पहली बार इसी जगह पर लगा सकते हैं। इससे पहले अलकनंदा और भागीरथी अलग-अलग दिशाओं से आती हैं। नीचे देखें देवप्रयाग में संगम पर बनाया गया हमारा वीडियो -

बदरीनाथ धाम के पंडित देवप्रयाग में रहते हैं। देवप्रयाग उत्तराखंड के प्रमुख शहर ऋषिकेश से करीब 70 किमी दूर है। देहरादून का जॉलीग्रांट एयरपोर्ट भी यहां से मात्र 88 किमी दूर है। यह चारधाम यात्रा के रूट में अहम पड़ाव है। चारधाम मार्ग पर मौजूद देवप्रयाग तक ऑल वेदर रोड से पहुंचना बहुत ही आसान है। यहां से श्रीनगर सिर्फ 36 किमी दूर है, जबकि जिला मुख्यालयल टिहरी यहां से करीब 80 किमी दूर है। देवप्रयाग से रुद्रप्रयाग की दूरी करीब 66 किमी, पौड़ी की दूरी करीब 46 किमी है।

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देवप्रयाग की अपनी कहानीभागीरथी और अलकनंदा के संगम और गंगा नदी के लिए तो देवप्रयाग मशहूर है ही। माना जाता है भगवान राम और उनके पिता राजा दशरथ ने यहां पर तपस्या की थी। यहां बड़े-बड़े पत्थरों से बना भगवान राम को समर्पित रघुनाथजी मंदिर है। माना जाता है कि रघुनाथजी का मंदिर सदियों पुराना है। अलकनंदा और भागीरथी के संगम पर बने रघुनाथजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि लंका में रावण के वध के बाद भगवान श्रीराम यहां आए थे और उन्होंने यहीं पर तपस्या की थी।

बदरीनाथ धाम मंदिर के पुजारी सर्दियों में यहीं रहते हैं। माना जाता है कि देव शर्मा नाम के एक ऋषि ने यहीं पर जीवनभर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दर्शन दिए थे और उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम देव प्रयाग पड़ा। देव और प्रयाग दो शब्दों के जुड़ने से देवप्रयाग बनता है। इसमें देव मतलब देवता और प्रयाग का मतलब संगम है। यहां चट्टान पर मौजूद दो कुंडों में पवित्र स्नान होता है, जिसमें भागीरथी की तरफ ब्रह्म कुंड और अलकनंदा की तरफ वशिष्ठ कुंड है।

देवप्रयाग में कहां जाएंदेवप्रयाग में बैताल कुंड, सरयू कुंड भी हैं। इसके अलावा यहां इंद्रद्युम्न तीर्थ, पुश्यमल तीर्थ, वराह तीर्थ, पुष्पावाटिका, बैतालशिला और वराहिशिला भी यहां पर हैं। देवप्रयाग में भैरव, भुशंडी, दुर्गा और विश्वेश्वर मंदिर हैं और यहां पर भरत को समर्पित भी एक मंदिर है। दावा किया जाता है कि देवप्रयाग में बैतालशिला में स्नान करने से कुष्ठ रोग (Laprosy) ठीक हो जाता है। देवप्रयाग आए हैं तो दशरथचाल पीक पर भी चलते हैं। यहां पर एक चट्टान है, जिसका नाम दशरथशिला है। माना जाता है कि इसी शिला पर भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ ने तपस्या की थी। यहां से एक छोटी सी जलधारा भी निकलती है जो दशरथचाल से बहती है। इस जलधारा का नाम शांता है। माना जाता है कि यह राजा दशरथ की पुत्री हैं और इन्हें पवित्र माना जाता है।

देवप्रयाग में हैं तो यहां के प्रदूषण मुक्त वातावरण में आकाश की गहराईयों में झांकने का अवसर कैसे खो सकते हैं। यहां पर नक्षत्र वेधशाला है। कहा जाता है कि यह भारत की पहली एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जरवेटरी है, जिसे साल 1946 में विद्वान पंडित चक्रधर जोशी ने स्थापित किया था। यहां पर तारों को देखने के लिए दूरबीन तो लगे ही हैं, कई पुरानी पांडुलिपियां (Manuscripts) भी यहां पर हैं।

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देवप्रयाग के आसपासदेवप्रयाग तो आपने ठीक से देख और समझ लिया है। अब थोड़ा आसपास भी घूम लेते हैं। यहां से श्रीनगर होते हुए आप करीब 48 किमी दूर धारीदेवी के दर्शनों के लिए जरूर जाएं। धारी देवी को चारों धामों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। धारी देवी का मंदिर श्रीनगर से करीब 12 किमी दूर कैलीसौंड में है। देवप्रयाग से ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग पर ऋषिकेश की ओर चलेंगे तो करीब 10 किमी दूर मशहूर तीन धारा है। चारधाम यात्रा के समय यहां काफी भीड़ होती है। यहां खाने के लिए कुछ अच्छे ढाबे आपको मिल जाएंगे। आसपास प्राकृतिक सौंदर्य भी खूब है। यहां पर अगल-बगल में तीन प्राकृतिक जल स्रोत (धारा) हैं, जिनकी वजह से इस जगह का नाम तीन धारा रखा गया है।

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देवप्रयाग में पवित्र स्नान कर ही लिया है तो देवी सती के शक्ति पीठ चंद्रबदनी के भी दर्शन कर आएं। यह देव प्रयाग से करीब 24 किमी दूर है। माना जाता है कि हथियारों सहित देवी सती का धड़ यहां गिरा था। चंद्रकूट पर्वत की चोटी पर यह मंदिर है और यहां से प्राकृतिक नजारे भी खूब दिखते हैं। केदारनाथ, बदरीनाथ और सुरकंडा की पर्वत श्रृंखलाएं यहां से स्पष्ट नजर आती हैं।

देवप्रयाग से करीब 47 किमी दूर पौड़ी में क्यूंक्लेश्वर महादेव का मंदिर है। 8वीं सदी के हिंदू पुनर्जागरण को प्रदर्शित करते इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ के साथ माता पार्वती और दोनों पुत्र कार्तिकेय व गणेश की मूर्तियां भी हैं। डंडा नागराजा (सर्पों के देवता) का मंदिर भी देवप्रयाग से सिर्फ 28 किमी दूर है।

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देवप्रयाग सालभर किसी भी मौसम में आ सकते हैं। ऑल वेदर रोड बनने से यहां हर मौसम में पहुंचना आसान हो गया है। हालांकि, बरसात के मौसम में हो सके तो यहां न आएं, क्योंकि कई रास्ते टूटने और पहाड़ों से पत्थर गिरने के कारण एक्सीडेंट का खतरा बना रहता है। सर्दियों में यहां बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है।

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Digpal Singh author

खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें

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