अमृतसर के दो भाई जिन्होंने विजय माल्या की डूबती कंपनी खरीदी और खड़ा कर दिया 68 हजार करोड़ का एम्पायर

सफलता का कोई सेट फॉर्मूला नहीं होता है। लेकिन एक बात निश्चित है कि सफलता अगर एक मंजिल है तो इस मंजिल का रास्ता मेहनत और लगन से ही होकर जाता है। इन दो भाइयों ने न सिर्फ अपने परिवार के रंग के बिजनेस को आगे बढ़ाया, बल्कि एक डूबती कंपनी को खरीदकर हजारों करोड़ का एम्पायर खड़ा कर दिया है।

इन भाइयों की सफलता का रंग काफी गहरा है

रंगवाला... जी हां, यही तो कहते थे उन्हें। उनके परिवार का रंग का बिजनेस था, लेकिन ऐसा नाम नहीं था, जिससे उनकी पहचान हो सके। कुलदीप सिंह ढिंगरा और गुरबचन सिंह ढिंगरा नाम के दो भाइयों ने अपने परिवार के बिजनेस को चुना। इस तरह से वह दोनों भी रंगवाला हो गए। हालांकि, उनकी कंपनी रंग का अच्छा बिजनेस कर रही थी और घर में अच्छी आमदनी आने के साथ ही कई लोगों को रोजगार भी मिला था। उनकी कंपनी यूएसएसआर को पेंट एक्सपोर्ट करने वाली सबसे बड़ी कंपनी थी। लेकिन एक बड़ा नाम अब भी उनसे नहीं जुड़ा था। फिर 1990 का दशक आया और इन दोनों भाईयों ने ऐसा कदम उठाया कि आज यह रंगवाला नहीं, बल्कि देश के दूसरी सबसे बड़ी पेंट कंपनी और दुनिया की 14 सबसे बड़ी पेंट कंपनियों में से एक के मालिक हैं।

'रंगवाला' परिवार के बिजनेस की शुरुआतढिंगरा परिवार का रंग के व्यापार से बहुत पुराना नाता है। कुलदीप सिंह और गुरबचन सिंह ढिंगरा के परदादा भाई उत्तम सिंह और दादा भाई केसर सिंह ने जब 1898 में रंग के बिजनेस की शुरुआत की थी, उस समय उन्होंने शायद देश का दूसरा सबसे बड़ा ब्रांड बनने के बारे में सोचा नहीं होगा। उस समय उन्होंने दुकान का नाम भाई उत्तम सिंह केसर सिंह पेंट्स रखा, जो बाद में यूके पेंट्स बन गई। हालांकि, तब तक उनकी दुकान एक आम हार्डवेयर की दुकान थी। लेकिन केसर सिंह ने देखा कि उनकी दुकान से रंग तेजी से बिकता है। इसलिए उन्होंने पेंट के डिस्ट्रिब्यूशन और सेल पर ध्यान लगाने का निर्णय लिया। उनके रंग का बिजनेस चल निकला और जल्द ही उनके परिवार को लोग 'रंगवाला परिवार' कहने लगे।

दोनों भाइयों ने परिवार के बिजनेस को आगे बढ़ायाकेसर सिंह के समय में ही वह रंगवाला के नाम से पहचाने जाने लगे थे। कुलदीप सिंह ढिंगरा और गुरबचन सिंह ढिंगरा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद अपने परिवार के रंग के बिजनेस को ज्वाइन किया। उन्होंने अमृतसर में ही रंग के बिजनेस में एक नई इबारत लिखना शुरू कर दिया। 1970 तक रंग के बिजनेस में उनका एनुअल रेवेन्यू 10 लाख रुपये पहुंच गया था। 1980 के दशक में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समझौते किए, इसके बाद उनकी कंपनी सोवियत यूनियन को रंग एक्सपोर्ट करने वाले सबसे बड़ी कंपनी बन गई। इस तरह से उनका वार्षिक टर्नओवर 300 करोड़ तक जा पहुंचा।

देश की दूसरी सबसे बड़ी पेंट कंपनीकुलदीप सिंह ढिंगरा और गुरबचन सिंह ढिंगरा देश की दूसरी सबसे बड़ी पेंट कंपनी बर्जर पेंट्स के मालिक हैं। देश में उनसे आगे सिर्फ एक कंपनी है और उसका नाम एशियन पेंट्स है। जिन लोगों को बर्जर पेंट्स का इतिहास नहीं पता, वह हेडिंग पढ़कर कंफ्यूज हो सकते हैं। वैसे तो बर्जर पेंट एक ब्रिटिश कंपनी थी, लेकिन इसका मालिक विजय माल्या था, जिसे हजारों करोड़ के बैंक घोटाला मामले में देश से भगोड़ा घोषित किया गया है। 1991 में विजय माल्या की कंपनी बर्जर पेंट्स बुरे दौर से गुजर रही थी, उस समय बर्जर देश की सबसे छोटी पेंट कंपनी थी। रंग का बिजनेस करने वाले कुलदीप सिंह ढिंगरा और गुरबचन सिंह ढिंगरा ने बर्जर पेंट्स को खरीद लिया।

दिन दोगुनी, रात चौगुनी सफलता

कुलदीप सिंह ढिंगरा और गुरबचन सिंह ढिंगरा खानदानी रंग व्यापारी हैं। उनके परिवार 1898 से रंग के बिजनेस में है। ऐसे में बर्जर पेंट्स को खरीदने के बाद दोनों भाईयों ने कड़ी मेहनत की। उनकी मार्केटिंग स्ट्रैटजी और लगन ने बर्जर पेंट्स को एक बार फिर से खड़ा कर दिया। उनकी मेहनत नहीं रुकी और देखते ही देखते बर्जर पेंट्स कान नाम भारत के घर-घर में पहुंच गया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह एक बड़ा ब्रांड बन गया। साल 2023 में बर्जर पेंट ने 10 हजार, 619 करोड़ का रेवेन्यू कमाया और देश का दूसरा सबसे बड़ा ब्रांड बन गया। यह एशिया के चार सबसे ब्रांड में शामिल है और दुनिया के 14 सबसे बड़े पेंट ब्रांड में बर्जर का भी नाम है। आज दोनों भाइयों की कुल नेटवर्थ करीब 68,467 करोड़ रुपये है।

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