Earth Day: चिपको आंदोलन का टेनिस रैकेट से है खास संबंध, जानें Chipko Movement की पूरी कहानी!

टेनिस रैकेट को बनाने में खास तरह की लकड़ी की आवश्यकता होती है। आज अर्थ डे के अवसर पर जानें कि देश के सबसे बड़े पर्यावरण आंदोलन Chipko Movement में टेनिस रैकेट का क्या योगदान रहा है। इस संबंध को समझकर आपको चिपको आंदोलन की पूरी कहानी आसानी से समझ आ जाएगी।

चिपको आंदोलन का टेनिस रैकेट कनेक्शन

आज पूरी दुनिया में अर्थ डे (Earth Day) मनाया जा रहा है। हर ओर धरती को बचाने की बातें हो रही हैं। जंगलों, जलस्रोतों को बचाने के लिए मुहिम चलाई जा रही हैं। लेकिन हमारे पूर्व की पीढ़ी अपने जल, जंगल और धरती के लिए पहले से ही बड़े सचेत थे। वह पर्यावरण के प्रति कितने सचेत थे यह तो आपक 1970-80 के दशक में उत्तर भारत के पहाड़ी इलाकों में चले चिपको आंदोलन (Chipko Movement) से ही अंदाजा लगा सकते हैं। पेड़ों को कटने से बचाने के लिए यहां के लोग पेड़ों से चिपक जाते थे। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि एक टेनिस रैकेट के कारण उत्तर भारत के पहाड़ी इलाके में इतना बड़ा चिपको आंदोलन शुरू हुआ था। चलिए इस बारे में और करीब से जानते हैं।
उस समय उत्तराखंड राज्य नहीं था, बल्कि कुमाऊं-गढ़वाल के सभी इलाके उत्तर प्रदेश का हिस्सा थे। यहां विशेषतौर पर गढ़वाल क्षेत्र में महिलाओं ने पेड़ों को बचाने के लिए बड़ी लड़ाई शुरू कर दी। यहां चमोली जिले में सैकड़ों महिलाओं ने जंगलों का रुख किया और उन्हें कटने से बचाने के लिए पेड़ों को गले लगा लिया। यह जंगल और पर्यावरण को बचाने की उनकी सहज प्रवृत्ति तो थी ही, साथ ही जंगल से जुड़ी अपनी आजीविका को बचाना भी मसकद था। पेड़ कटने से कितना भयंकर नुकसान हो सकता है यह वह महिलाएं 1970 में अलकनंदा नदी में आई बाढ़ और भीषण भूस्खलन (Landslides) में अनुभव कर चुकी थीं। इस बाढ़ और भूस्खलन में कई गांव और कस्बे बह गए थे। इसके बाद गांधीवादी चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में ग्रामीणों ने जगह-जगह आंदोलन शुरू कर दिए। पर्यावरण और अपनी आजीविका को बचाने के लिए लोगों ने पेड़ बचाने की मुहिम शुरू की और उन्हें कटने से बचाने लिए उन्हें लगे लगा लिया।
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