Ek Hathiya Naula - कहानी उस कुंए की, जिसे एक हाथ वाले कारीगर ने सिर्फ एक रात में बना दिया

ये कहानी है उस शिल्पकार की, जिसने सिर्फ एक हाथ से ही एक रात के अंदर अद्भुत कलाकृति बना दी। हम जिस एक हथिया नौला की कहानी बता रहे हैं, वह उसे कारीगर ने रातभर में बना दिया था, लेकिन काम पूरा नहीं होने की वजह से यहां देवता की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो पायी थी।

एक हथिया नौला

ताजमहल की कहानी तो आपको पता ही होगी। कहा जाता है कि शाहजहां ने इस खूबसूरत इमारत को बनाने वाले कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे। ऐसी ही कहानी एक हथिया नौला की भी है। आपने मन में प्रश्न उठ रहा होगा कि ये एक हथिया नौला क्या बला है और कहां है? आपकी इस जिज्ञासा को भी शांत करते हैं। लेकिन पहले ये जान लीजिए कि नौला एक छोटा कुआं जैसा (छोटा गड्ढा) होता है। छोटे गड्ढे के रूप मौजूद प्राकृतिक स्रोत के पानी को दूषित होने से बचाने के लिए उसके आसपास एक घर जैसी आकृति बनाई जाती है। ग्रामीण यहां से पीने और अन्य उपयोग के लिए पानी लेते हैं।

दरअसल नौला उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की भाषा का शब्द है। प्राकृतिक स्रोत के पानी को इकट्ठा करने के लिए एक छोटा गड्ढा बनाया जाता है, कई बार इसमें घाट की तरह नीचे उतरने वाली सीढ़ियां भी बनाई जाती हैं। इसे कुमाऊंनी भाषा में नौला और नौहौ कहा जाता है। इस गड्ढे को जंगली जानवर गंदा न करें, ऊपर से कुछ गिरने से इसका पानी दूषित न हो जाए, इसलिए घर जैसी आकृति बनाकर नौले को ढकने की परंपरा उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल अंचल में है।

कहां है एक हथिया नौलाअब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि एक हथिया नौला उत्तराखंड में है। यह उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र के चंपावत जिले में है। जिला मुख्यालय चंपावत से लोहाघाट में मायवती आश्रम की ओर जाने वाले मार्ग पर चंपावत से करीब 5 किमी दूर ढकना गांव में यह प्रसिद्ध एक हथिया नौला है। जी हां, यह बहुत मशहूर है। चंपावत और लोहाघाट आने वाले पर्यटक एक हथिया नौला देखने जरूर जाते हैं।

एक हथिया नौला की क्या है कहानीकहा जाता है कि यहां एक बहुत ही अच्छा कलाकार था। उसी शिल्पकार (कलाकार) ने चंपावत का बालेश्वर मंदिर बनाया था। कहते हैं कि राजा ने अपने दुष्ट सामंतों के बहकावे में आकर शिल्पकार का एक हाथ कटवा दिया था। बाद में वह अपने प्राण बचाने के लिए छोटी सी बेटी को लेकर जंगल में रहने लगा। कहते हैं कि इसी बेटी की मदद से शिल्पकार ने एक हथिया नौले को बनाया।

कुमाऊं के इस क्षेत्र में मान्यता है कि पांडव यहां आए थे तो उन्होंने देवालयों के निर्माण की एक परंपरा बनाई। इसके अनुसार देवालय को सिर्फ एक रात में ही बनाकर पूरा किया जाता था। इस पहाड़ी अंचल में चंद वंश के राजाओं के समय तक यह परंपरा चलती रही। एक हथिया नौला के बारे में कहा जाता है कि इसे देवालय या मंदिर ही बनाया जा रहा था, लेकिन रातभर में काम पूरा नहीं हुआ, इसलिए यहां प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई।

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