Etath Lok Sabha Polling Date: एटा सीट का दिलचस्प है गुणा-गणित, कौन प्रत्याशी किस पर भारी, जानें कब है मतदान कब आएगा परिणाम
Etah Lok Sabha Chunav 2024 Polling Date, एटा लोक सभा सीट, यूपी लोकसभा चुनाव 2024: उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से एटा भी एक है। यह सीट पूर्व दिवंगत मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ( Kalyan Singh) का गढ़ मानी जाती रही है। पिछले डेढ़ दशक से बीजेपी का सीट पर कब्जा है। वर्तमान में कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह (Rajveer Singh) मौजूदा सांसद हैं। आइये जानते हैं एटा में कब मतदान होगा, प्रमुख उम्मीदवार कौन हैं और कब रिजल्ट सामने आएगा?
एटा लोकसभा चुनाव
Etah Lok Sabha Chunav 2024 Polling Date, Key Candidate List: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां पसीना बहा रही हैं। फिलहाल, दो चरण के मतदान संपन्न हो चुके हैं। शेष 5 चरण अभी होने बाकी हैं। अब सभी की नजरें तीसरे चरण में होने वाले मतदान पर हैं। भारत निर्वाचन आयोग ने 7 मई को तीसरे चरण के वोटिंग की तारीख निर्धारित की है। इस बचे हुए समय में सभी पार्टियों का ज्यादा फोकस उत्तर प्रदेश की सीटों पर है। राज्य में 2019 में हुए आम चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत दर्ज की थी। उनमें से एक एटा लोकसभा सीट भी थी। एटा सीट यूपी के पूर्व दिवंगत मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ( Kalyan Singh) का गढ़ मानी जाती रही है। यही कारण है कि पिछली तीन पंचवर्षीय से भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) का कब्जा है। लेकिन, अब कल्याण सिंह दुनिया में नहीं हैं तो इसका असर एटा की सीट पर दिखाई दे रहा है। वर्तमान में कुछ समीकरण जरूर बदले हैं। पिछले डेढ़ दशक से हाशिए पर बैठा विपक्ष इस सीट पर सेंध लगाने की जुगत में है। यहां भी तीसरे चरण में 7 मई को वोटिंग होनी है और 4 जून को मतगणना होगी। अब देखना होगा कि जनता इस बार किस पक्ष की ओर अपना झुकाव करती है। आइये जानते हैं इस सीट से जुड़े सभी पहलू।
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शाक्य बाहुल्य सीट
आगरा मंडल की जातीय समीकरण वाली एटा सीट पर मुख्य तौर पर दो पार्टियों के बीच मुकाबला माना जा रहा है। इस बार भारतीय जनता पार्टी के सामने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) मजबूती से खड़ी है। इस सीट पर शाक्यों का बाहुल्य है। लिहाजा, सपा ने देवेश शाक्य को चुनावी मैदान में उतारकर शाक्य मतदाताओं (Shakya Voters) को अपनी ओर खींचने का प्लान बनाया है। वहीं, लोधी समाज से आने वाले राजवीर सिंह (Rajveer Singh) और बीजेपी एटा से अपने अटूट रिश्ते और कल्याण सिंह की दुहाई दे रहे हैं।
कुल इतने मतदाता
एटा लोकसभी सीट में कुल मतदाताओं की संख्या 16,72,149 है। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो सबसे ज्यादा शाक्य सामने आते हैं। ये समाज अकेले 1,56,000 से अधिक बाहुल्यता के साथ है। खासकर, लोकसभा क्षेत्र की तीन विधानसभाएं कासगंज, अमांपुर और पटियाली में शाक्य मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। 2009 से एटा सीट भाजपा के लिए अभेद दुर्ग की तरह है। यही कारण है कि 2019 में यहां पर सपा-बसपा का गठबंधन भी कामयाब नहीं हो सका और बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की थी। 2019 में सपा के प्रत्याशी रहे कुंवर देवेंद्र सिंह यादव सपा की टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन वो पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
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सपा ने साधा शाक्य समीकरण
एटा का चुनावी गणित इस बार जितना उलझा हुआ है उतना ही दिलचस्प भी है। कल्याण सिंह पुत्र राजवीर सिंह तीसरी बार इस सीट से चुनावी ताल ठोक रहे हैं। वहीं, सपा ने शाक्य बाहुल्यता के समीकरण को समझते हुए देवेश शाक्य (Devesh Shakya) को मैदान में उतारा है। उधर, बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मोहम्मद इरफान (Mohammad Irfan) को मैदान में उतार कर मुस्लिम और दलित वोटर्स को साधने का जतन निकाला है। इस लिहाज से अगर, मुहम्मद इरफान मुस्लिमों मतदाताओं का वोट बैंक खींचने में कामयाब रहे तो सपा का चुनावी गुणा-गणित बिगड़ सकता है।
मुख्य उम्मीदवार- देवेश शाक्य - सपा/India
- राजवीर सिंह - भाजपा/NDA
- मुहम्मद इरफान - बहुजन समाजवादी पार्टी
कल्याण सिंह की इंट्री से बीजेपी को फायदा
अगर, एटा सीट के पिछले पन्नों को पलटे तों साल 2009 में यहां से कल्याण सिंह ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था। इसके बाद सिलसिला लगातार बीजेपी के पक्ष में बना हुआ है। यहां से जीत के बाद कल्याण सिंह (बाबू जी) के प्रति भाजपा समर्थक और कार्यकर्ताओं में कद और बढ़ गया। इधर, समाजवादी पार्टी पीडीए (PDA) फॉर्मूले पर चुनाव लड़ रही है। वह पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ती रही है। यही कारण है कि सवर्णों के बीच सपा जगह बनाने में नाकाम साबित हुई है। वहीं, भाजपा के अपने राष्ट्रीय मुद्दे हैं, जो जनता को खासे पसंद आते रहे हैं। देश के प्रति युवाओं में राष्ट्रवाद (Nationalism) का बीज बोने में भाजपा सफल रही है। युवा मतदाता पढ़े-लिखे हैं। लिहाजा वे राष्ट्रीयता को महत्व देते हैं।
सपा के पूर्व उम्मीदवार बने भाजपा के सारथी
दूसरी तरफ पीडीए फॉर्मूले के बावजूद समाजवादी पार्टी को शाक्य वोटों में सेंध लगाने के लिए जोर आजमाइश करनी पड़ रही है। इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए सपा को छोटी-छोटी जातियों को एकत्र करना पड़ रहा है। उधर, दो चुनाव में राजवीर सिंह के प्रतिद्वंद्वी रहे सपा के देवेंद्र यादव अब भाजपा के साथ हैं। इससे भी पार्टी को नुकसान माना जा रहा है। हालांकि, इतिहास गवाह है कि इस सीट से अभी तक कोई हैट्रिक नहीं मार सका है।
ग्रामीण इलाकों में जातीय मुद्दे हावी हैं। लोधी बहुल इलाकों में कमल का जोर नजर आ रहा है तो शाक्य बहुल इलाकों में सपा का समीकरण सटीक बैठता जा रहा है। शाक्यों को सजातीय कैंडिडेट मिलने से सपा की ओर झुकाव संभव है। वहीं, यादव बाहुल्य क्षेत्र सैफई कुनबे के साथ खड़े नजर आते हैं।
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