Faridabad:परसोन मंदिर का है पौराणिक महत्व, 18 महापुराणों और महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास की जन्मस्थली है यह
फरीदाबाद का महाभारत काल से गहरा जुड़ाव रहा है। अरावली पहाडि़यों के बीच स्थित परसोन मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर ऋषि पाराशर ने तप किया था। इनके नाम पर ही इस मंदिर का नाम पड़ा। मान्यताओं के अनुसार ऋषि पाराशर के पुत्र महर्षि वेद व्यास का जन्म भी यहीं हुआ और यहीं पर उन्होंने महाभारत और 18 महापुराणों की रचना की।
ऋषि पाराशर ने यहां पर कई सालों तक की थी कठिन तपस्या
महर्षि वेद व्यास ने यहीं की महाभारत और महापुराणों की रचना
फरीदाबाद के परसोन मंदिर का है पौराणिक महत्व
औद्योगिक नगरी फरीदाबाद का महाभारत काल से गहरा जुड़ाव है। इस जिले के तिलपल गांव को जहां पांडवों का गांव कहा जाता है, वहीं इसी जिले में स्थित 'परसोन मंदिर' को महाभारत और 18 महापुराणों के रचयिता महर्षि वेद व्यास की जन्मस्थली कहा जाता है। अरावली पहाड़ियों के बीच बना यह छोटा सा मंदिर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण यहां आने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती है। इतिहास और प्राकृतिक से प्रेम करने वाला हर व्यक्ति इस सुंदरता के बीच शांति के कुछ पल बिताना चाहता है। हालांकि आज भी ज्यादातर लोग इस जगह के एतिहासिक महत्व और सुंदरता को लेकर अंजान है, जिसके कारण यहां तक बहु कम लोग पहुंच पाते हैं।
यह मंदिर तीन तरफ से पहाड़ी से घिरा हुआ है और करीब 250 फुट नीचे तलहटी में स्थित है। मंदिर के पास में ही एक छोटा सा तालाब भी है, जिसमें पहाड़ों से रिसता पानी आता रहता है। बारिश के समय में यहां पर झरना भी बन जाता है। वहीं इस मंदिर से करीब एक किमी दूर प्रसिद्ध बड़खल झील स्थित है। मंदिर काफी नीचे होने के कारण यह जगह हर तरह के शोर-शराबे से दूर है। मंदिर में आने वाले लोगों को यहां पर केवल पक्षियों की चहचहाट ही सुनाई देती है, जिससे उन्हें सुखद शांति का अनुभव होता है।
ऋषि पाराशर के नाम पर पड़ा इस मंदिर नाम
मान्ताओं में यह मंदिर ऋषि पाराशर की तपोभूमि के रूप में विख्यात है। उनके नाम पर ही मंदिर का नाम परसोन पड़ा। मंदिर के महंत अमरदास मंदिर से जुड़े मान्यताओं के बारे में बताते हैं कि ऋषि पाराशर ने यहां पर कई वर्ष तक तप किया था। उन्होंने अपने तप और त्याग से इस भूमि को शक्तियों से भर दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसी मान्यता है कि महर्षि पाराशर के पुत्र महर्षि वेद व्यास का जन्म भी इसी स्थल पर हुआ था। व्यास ने यहीं पर रहकर 18 महापुराणों और महान ग्रंथ महाभारत की रचना भी की। महंत बताते हैं कि इस क्षेत्र का उल्लेख पाराशर ज्योतिष संहिता में मंगला वनी के नाम से किया गया है। इस ऐतिहासिक मंदिर से जुड़ा एक और प्रचलित मान्यता है कि द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान माता कुंती के साथ पांडवों ने भी यहीं पर तप किया था।
महर्षि पाराशर का धूना आज भी सुरक्षित
महंत अमरदास बताते हैं कि, इस मंदिर में महर्षि पाराशर का प्राचीन धूना अब भी सुरक्षित है। जिसमें यहां रहने वाले साधु हमेशा अग्नि प्रज्ज्वलित करके रखते हैं। मान्यताओं के अनुसार ऋषि पाराशर ने ही बाण चलाकर हथिया कुंड, अमृत कुंड और ब्रह्मकुंड नामक तीन सरोवर बनाए थे। ऋषि पाराशर ब्रह्म कुंड में स्नान के बाद ही नित्य पूजा कर्म आदि करते थे। इन कुंडों के बारे ऐसी मान्यता है कि इसमें स्नान करने से विभिन्न प्रकार के रोग दूर होते हैं।
देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | फरीदाबाद (cities News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल
Professionals & enthusiasts who write about politics to science, from economy to education, from loc...और देखें
© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited