गंगा के मायके में : उत्तराखंड का वह पहाड़ी इलाका, जहां सबसे पहले पहुंचेगी भारतीय रेल

गंगा भारत की संस्कृति का हिस्सा है। गंगा को मां का दर्जा मिला है। गंगा की यात्रा में हम गंगा के मायके की सैर कर रहे हैं। इस यात्रा में आज आ पहुंचे हैं कर्णप्रयाग। जहां पर पिंडर नदी और अकलनंदा का संगम होता है। चलिए जानते हैं कर्णप्रयाग के बारे में -

कर्णप्रयाग

Ganga ki Yatra: गंगा के मायके में सफर करते हुए विष्णुप्रयाग (Vishnuprayag) और नंदप्रयाग (Nandprayag) के बाद आज हम आ पहुंचे हैं कर्णप्रयाग (Karnprayag)। जी हां कर्णप्रयाग वजह जगह है, जहां पर कुमाऊं क्षेत्र से आने वाली नदी पिंडर नदी (Pindar River) की एक प्रमुख धारा अलकनंदा (Alaknanda) में समा जाती है। ज्ञात हो कि आगे चलकर अलकनंदा ही भागीरथी (Bhagirathi) के साथ मिलकर गंगा नदी बनाती है। कर्णप्रयाग अपने आप में बहुत ही सुंदर जगह है। लेकिन अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम के चलते कर्णप्रयाग धार्मिक यात्रा के लिहाज से भी बहुत महत्व रखता है। कर्णप्रयाग की एक और पहचान जल्द बन जाएगी, जब यह भारतीय रेल नेटवर्क (Indian Railways) से जुड़ जाएगा। ऋषिकेश (Rishikesh) से कर्णप्रयाग के लिए करीब 125 किमी लंबा रेलमार्ग (Rishikesh-Karnprayag Rail) तैयार हो रहा है। उम्मीद की जा रही है कि दिसंबर 2024 में देश के किसी भी कोने से कर्णप्रयाग तक रेल से पहुंचना संभव हो जाएगा। चलिए जानते हैं कर्णप्रयाग के बारे में विस्तार से -

कहां है कर्णप्रयाग

गंगा के मायके में सफर करते हुए हम पंचप्रयागों में से विष्णुप्रयाग और नंदप्रयाग की यात्रा कर चुके हैं। आज कर्णप्रयाग की यात्रा करते हैं। यहां पर कुमाऊं क्षेत्र से आने वाली पिंडर नदी अलकनंदा से मिलकर अपनी यात्रा को वीराम देती है। कर्णप्रयाग समुद्र तल से 1451 मीटर की ऊंचाई पर है। अलकनंदा के बारे में तो आप पहले ही जान चुके हैं। बता दें कि पिंडर नदी, उत्तराखंड में कुमाऊं क्षेत्र के बागेश्वर (Bageshwar) जिले में पिंडारी ग्लेशियर (Pindari Glacier) से निकलती है। पश्चिम की ओर करीब 105 किमी की यात्रा तय करके यह सतोपंथ ग्लेशियर (Satopanth Glacier) से निकलने वाली अलकनंदा नदी में यहीं पर समा जाती है।
कर्णप्रयाग उत्तराखंड के एक ऐसी जगह पर स्थित है, जहां पर कुमाऊं और गढ़वाल की सीमाएं मिलती हैं। हालांकि, कर्णप्रयाग चमोली (Chamoli) जिले में आता है। यह पंचकेदारों में से एक है और कुमाऊं क्षेत्र से चारधाम यात्रा के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रमुख विश्राम स्थल है। यहां मन मोह लेने वाली हरियाली के अलावा घने जंगल, बर्फ से लकदक पहाड़ भी मौजूद हैं। यह जगह नेचर लवर्स और फोटोग्राफी का शौक रखने वालों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। इसके अलावा ट्रैकिंग और एडवेंचर के शौकीनों के लिए कर्णप्रयाग एक आइडियल जगह है।

कर्णप्रयाग की कहानी

राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) 109 पर स्थित कर्णप्रयाग में स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) ने भी अपने गुरु भाईयों गुरु तुरियानंद जी और अखरानंद जी के साथ 18 दिन तक मेडिटेशन किया था। मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले कर्ण ने यहां पर भगवान सूर्य देव की अराधना की थी। कर्णप्रयाग में उमा देवी का एक प्राचीन मंदिर भी है, जो भगवान शिव की पली पत्नी देवी सती को समर्पित है। कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने यहीं पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया था। इसी लिए कर्ण के नाम से ही इस स्थान का नाम कर्णप्रयाग रखा गया है।

कर्णप्रयाग में क्या देखें

कर्णप्रयाग में अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम पर पवित्र स्नान कर सकते हैं। इसके अलावा यहां पर प्राचीन उमा देनी मंदिर भी है, जहां जाकर आप देवी सती का आशीर्वाद ले सकते हैं। यहां पर पार्वती का मंदिर है और महाभारत के प्रमुख पात्र कर्ण का मंदिर (Karn Temple) भी यहां पर है। कहा जाता है कि आज कर्ण का मंदिर उसी जगह पर है, जहां पर कर्ण ने भगवान सूर्य की तपस्या की थी और सूर्य ने प्रसन्न होकर उन्हें कवच दिया था।

कर्णप्रयाग के आसपास

अगर आप कर्णप्रयाग में हैं तो आपको करीब 24 किमी दूर नौटी गांव जरूर देखना चाहिए, यह बहुत ही खूबसूरत गांव है और उत्तराखंड के नौटियालों की जन्मभूमि है। नौटी को देवी सती और नंदा देवी का गांव माना जाता है। यहां सिद्धपीठ नंदादेवी का मंदिर है। 12 साल में एक बार होने वाली नंदा राज जात तात्रा का प्रमुख पड़ाव भी है नौटी गांव। इसके अलावा कर्णप्रयाग से करीब 19 किमी दूर आदि बदरी मंदिर में भी आपको जरूर दर्शन करने चाहिए। नंदप्रयाग यहां से करीब 21 किमी दूर है। इसके अलावा जोशीमठ, गौचर, चमोली, रुद्रप्रयाग, गोपेश्वर, हेमकुंड साहिब, बदरीनाथ और ग्वालदम भी यहां से नजदीक ही हैं। कर्णप्रयाग के उमा देवी मंदिर में महाशिवरात्रि से अवसर पर बड़ा मेला लगता है।
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