Kanwar Yatra 2023: इधर 101 साल की दादी, उधर उनके वजन बराबर गंगा जल...यूं 270Km के सफर पर यह शिवभक्त
Kanwar Yatra 2023: कुमार ने बताया, "रास्ते में जो कोई भी मिला, उसने मदद की और हमारे प्रयास की सराहना की। हर 20-25 किमी के बार मैं ब्रेक लेता हूं और गाजियाबाद के बाद में हर 10 किमी पर सुस्ताऊंगा, ताकि खुर्जा तक मां को लेकर आसानी से पहुंच सकूं। मेरे दादा जी दुनिया में नहीं हैं, वरना मैं उन्हें भी लेकर इस यात्रा पर आता।"
Kanwar Yatra के दौरान लोगों की अलग और अनूठे अंदाज में शिवभक्ति देखने को मिलती है।
Kanwar Yatra 2023: महादेव के प्रिय श्रावण (सावन) माह में हर साल शिवभक्त कांवड़ लेकर पावन यात्रा (कांवड़ यात्रा) पर निकलते हैं। कोई युवाओं की टोली में होता है तो कुछ बच्चे बड़े-बुजुर्गों की नजर में चलते हैं। हालांकि, इस दौरान कई भोले भक्त अपने बुजुर्ग मां-बाप या फिर दादा-दादी को लेकर इस यात्रा पर निकलते हैं, ताकि ढलती उम्र में वे भी इस यात्रा का लाभ पा सकें। ऐसी ही कहानी देव कुमार की। नाम के साथ उनके काम भी देव वाले हैं!संबंधित खबरें
दरअसल, 35 साल के कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्टर कुमार इस बार बेहद खास कांवड़ लेकर निकले हैं, जिसमें उनका एक कांधा 101 साल की बूढ़ी दादी सरस्वती देवी का वजह साधता है, जबकि दूजा वाला पांच कलशनुमा बर्तन में उन्हीं (दादी मां) के वजन जितना गंगा जल उठाता है। ऐसे में बैंबू के मोटे लकड़े से बने अपने इस कांवड़ पर उन्हें अपने कंधों पर लगभग 116 किलो का वजन उठाना पड़ता है।संबंधित खबरें
देव इस यात्रा के दौरान कुल 270 किमी की पैदल यात्रा करेंगे और फिलहाल वह अपने गांव हरिद्वार से खुर्जा (यूपी) में धरासू गांव की ओर लौट रहे थे। शुक्रवार (सात जुलाई, 2023) सुबह जब वह दिल्ली-मेरठ रोड के पास राज नगर एक्सटेंशन चौराहे के पास थे, तब उनसे कुछ मीडिया वालों ने बात की। उन्होंने इस दौरान बताया, "मैं 10 बार इस यात्रा पर जा चुका हूं। यह लगातार मेरा 11वां साल है। मैं इस बार अपने कंधों पर दादी मां को लेकर आया हूं, ताकि वह भी हरिद्वार में पूजा कर सकें। वह 48 किलो की हैं और उनकी सीट का वजन छह-सात किलो के आसपास है। कांवड़ में एक तरफ वह रहती हैं, जबकि दूसरी तरफ उन्हीं के वजन बराबर गंगाजल होता है।" संबंधित खबरें
बकौल कुमार, "रास्ते में जो कोई भी मिला, उसने मदद की और हमारे प्रयास की सराहना की। हर 20-25 किमी के बार मैं ब्रेक लेता हूं और गाजियाबाद के बाद में हर 10 किमी पर सुस्ताऊंगा, ताकि खुर्जा तक मां को लेकर आसानी से पहुंच सकूं। मेरी दादी के पैरों में सूजन आ गई है, लिहाजा उन्हें कुछ-कुछ देर पर आराम चाहिए होता है। मेरे दादा जी दुनिया में नहीं हैं, वरना मैं उन्हें भी लेकर इस यात्रा पर आता।"संबंधित खबरें
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अभिषेक गुप्ता author
छोटे शहर से, पर सपने बड़े-बड़े. किस्सागो ऐसे जो कहने-बताने और सुनाने को बेताब. कंटेंट क्रिएशन के साथ...और देखें
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