छठ और छठी में है जमीन आसमान का अंतर, जानें किन शहरों से है इनका कनेक्शन

छठ और छठी दोनों एक समान लगने वाले शब्द असल में बहुत ज्यादा अलग है। छठ पूजा विवाहित महिलाओं द्वारा की जाती है तो वहीं नवजात बच्चे की मंगल कामना के लिए छठी पूजन होता है।

Chhathi puja

छठ पूजा और छठी पूजन में अंतर (फोटो साभार - istock)

Chhath Puja 2023: बिहार और पूर्वांचल के खास त्योहार छठ पूजा के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन इसी से मिलता जुलता एक शब्द है छठी, जिसे लोग छठ के त्योहार से ही जुड़ा हुआ समझते है, लेकिन असल में ऐसा नहीं है। छठ और छठी दोनों में ही जमीन आसमान का अंतर है। जहां एक और छठ का त्योहार महिलाएं उपवास रखकर मनाती है, वहीं छठी नवजात बच्चे के लिए मनाई जाती है। आइए समझते है इन दोनों शब्दों में

नवजात बच्चों की छठी

छठी मनाने का रिवाज हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ है। छठी पूजन नवजात बच्चे की मंगल कामना के लिए किया जाता है। यह बच्चे के पैदा होने के छह दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन षष्ठी देवी की पूजा की जाती है कहा जाता है कि षष्ठी देवी की पूजा से नवजात बच्चे पर कोई समस्या नहीं आती है। पौराणिक मान्यता है कि राजा प्रियव्रत के पुत्र को षष्ठी देवी की कृपा से दोबारा जीवन मिला था। पुराणों के अनुसार षष्ठी देवी बच्चों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है।

विवाहित महिलाओं का छठ पूजन

छठ पूजा के त्योहार को बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोग ज्यादातर मनाते हैं। यह चार दिवसीय त्योहार है जिसे महापर्व भी कहा जाता है। छठ पूजा को कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। इस व्रत का पालन विवाहित महिलाएं करती हैं। इसमें पहले दिन महिलाएं नदी में स्नान के बाद घर पर आकर कद्दू भात पकाकर खाती है, इसे नहाय खाय कहा जाता है। छठ पूजा के दूसरे दिन खरना होता है जिसमें गुड़ चावल की खीर बनाकर महिलाएं खाती है और इसके बाद 36 घंटे तक व्रत रहती हैं। इसके तीसरे दिन महिलाएं घाट पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती है और आखिरी दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसे बाद यह महापर्व पूरा हो जाता है।

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Pooja Kumari author

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