History Of Kurukshetra:'महाभारत' के बाद ऐसे बदला कुरुक्षेत्र का इतिहास, जानिए गजनी से लेकर गोरों ने कैसे किया राज

हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र पौराणिक और ऐतिहासिक नजरिए से बेहद खास है। इस धरती पर कौरव और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ तो वहीं, बाद में राजा अलेक्जेंडर और महमूद गजनी जैसे शासको के प्रभाव में रहा। आइये जानते हैं क्या है इस धरती का इतिहास।

कुरुक्षेत्र का इतिहास

कुरुक्षेत्र: जब भी महाभारत का जिक्र आता है, तब तब कुरुक्षेत्र की लाल माटी की तस्वीर मन में बनती है। कुरुक्षेत्र का नाम राजा कुरु के नाम पर रखा गया था। इसका आर्य सभ्यता और पवित्र सरस्वती के उदय के साथ इसके विकास से गहरा संबंध बताया जाता है। यह वह भूमि है, जहां ऋषि मनु ने मनुस्मृति लिखी। इसके अतिरिक्त भारतीय सभ्यता के शुरुआती दिनों में दो निकट संबंधी शाही राजवंश, पांडव और कौरव अपने साम्राज्य और इसकी राजधानी 'इंद्रप्रस्थ' (अब दिल्ली) पर शासन करने के लिए अपनों के खिलाफ रण में आमने सामने आए। उस महान युद्ध का अत्यंत स्पष्ट वर्णन महान महाकाव्य 'महाभारत' में किया गया है।

बौद्धों और जैनियों का भी प्रभाव

साहित्यिक साक्ष्यों एवं भौतिक साक्ष्यों के मुताबिक, कुरुक्षेत्र का युद्ध 1200 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व के बीच कभी हुआ था। उस समय इस स्थान पर राजा कुरु का शासन हुआ करता था, जिनके नाम पर इस स्थान को कुरुक्षेत्र कहा जाता था। कुरु वंश के बाद यह क्षेत्र बौद्धों और जैनियों के प्रभाव में आ गया। उत्खनन स्थलों से एकत्र किए गए साक्ष्यों से पता चलता है कि यह काल लगभग 600 ईसा पूर्व का है। बाद में राजा अलेक्जेंडर के नेतृत्व में यूनानी आक्रमण के दौरान कुरुक्षेत्र मैसेडोनिया के प्रभाव में आ गया। इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण यह स्थान सदैव आक्रमणकारी सेना के प्रभाव में रहता था।

महमूद गजनी का आक्रमण

कुरुक्षेत्र का इतिहास और संस्कृति तुर्क महमूद गजनी, हूण, शक, पठान और मुगलों के प्रभाव से भी समृद्ध हुआ। इन आक्रमणों के दौरान गुप्त, मौर्य, प्रतिहार और कलिंग जैसे महान और मजबूत भारतीय राजवंश आए, जिन्होंने कुरुक्षेत्र पर शासन किया। इन भारतीय और विदेशी प्रभावों ने इसके इतिहास और संस्कृति को काफी मजबूत किया। प्राचीन काल 1200 ई. के कुछ बाद तक विस्तृत था।

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