भारत का सबसे अनोखा गांव! यहां के लोग भारत में खाते हैं और म्यांमार में सोते हैं, जानें कैसे
क्या आपने पहले कभी सुना किसी ऐसे गांव के बारे में, जहां के लोग रहते तो भारत में हैं, लेकिन सोने के लिए दूसर देश जाते हैं। नहीं सुना न तो आज हम आपको बताएंगे। यह गांव वाकई बेहद ही अनोखा है और इसकी कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है। तो आइए जानते हैं।
भारत का लोंगवा गांव
भारत को ऐसे नहीं विविधताओं का देश कहा जाता है। यहां हर चीज अनोखी है। जी हां, आज हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के लोग भारत में रहते तो हैं, खाना-पीना भी भारत में करते हैं, लेकिन सोने के लिए किसी और देश चले जाते हैं। क्या आपने पहले कभी सुना किसी ऐसे गांव के बारे में, नहीं सुना न तो आज हम आपको बताएंगे। यह गांव वाकई बेहद ही अनोखा है और इसकी कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है। तो आइए जानते हैं इस गाव के बारे में।
भारत में बसे इस गांव का नाम लोंगवा है। इसका आधा हिस्सा भारत में पड़ता है और आधा म्यांमार में आता है। इस गांव से एक और बेहत अनोखी दास्तां जुड़ी है। कहते हैं कि सदियों से यहां रहने वाले लोगों के बीच दुश्मन का सिर काटने की परंपरा चलती आ रही थी, जिस पर साल 1940 में रोक लगा दिया गया। यह गांव लोंगवा नागालैंड के मोन जिले में घने जंगलों के बीच म्यांमार सीमा से सटा हुआ भारत का आखिरी गांव है।
कहा जाता है कि इस गांव में आदिवासी रहते हैं, जिन्हें बेहद ही खूंखार माना जाता है। ये लोग अपने कबीले की सत्ता पर कब्जा करने के लिए अक्सर पड़ोस के गांवों में रहने वालों से लड़ाइयां किया करते थे। इतना ही नहीं साल 1940 से पहले, यह कोंयाक आदिवासी अपने कबीले और उसकी जमीन पर कब्जा करने के लिए वो दूसरे लोगों का सिर काट देते थे।
साल 1940 में खत्म हुई दुश्मनी
इन कोयांक आदिवासियों को हेड हंटर्स भी कहा जाता है। ये लोग ज्यादातर पहाड़ी की चोटी रहा करते थे और वहां छुपकर अपने दुश्मन पर निगाह रखते थे। जब साल 1940 में हेड हंटिंग पर पूरी तरह से रोक लगा दि गई। माना जाता है कि उसके बाद से सिर काटने की घटना इस गांव में फिर कभी नहीं हुई।
इस तरह गांव के बीचों-बीच बन गया बॉर्डर
जिसके बाद इस गांव को दोनों हिस्सों में बांटने की बात रखी गई। लेकिन जब इसे दो हिस्सों में बांटने क कोई उपाय नहीं सूझा तो अधिकारियों ने तय किया कि गांव के बीच से सीमा रेखा जाएगी। साथ ही ये भी कहा गया कि इससे कोंयाक पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। कहा जाता है कि बॉर्डर के पिलर पर एक तरफ बर्मीज माषा यानी कि म्यांमार की भाषा की भाषा और दूसरी तरफ हिंदी में संदेश लिखा गया है।
यहां के मुखिया की हैं 60 पत्नियां
यहां के कोयांक आदिवासियों में मुखिया प्रथा चलती थी। इसके तहत मुखिया कई गांवों का प्रमुख होता है। साथ ही उसे एक से ज्यादा शादी करने की छूट है। बताया जाता है कि फिलहाल यहां का जो मुखिया है उसकी 60 पत्नियां हैं। इस मुखिए का घर भारत और म्यांमार की सीमा पर है। इस गांव के लोगों को भारत और म्यांमार दोनों देशों की नागरिकता मिली हुई है। यहां के लोग बिना पासपोर्ट-वीजा के दोनों देशों में जा सकते हैं। यही वजह है कि कहा जाता है कि भारत का यह गांव खाता भारत में और सोता म्यांमार में है।
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