'पराली जलाना किसानों की मजबूरी', जानिए हरियाणा के किसान नेता ने सरकार से क्या मांग की

वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली-NCR में लोगों का सांस लेना दूभर हो रहा है। लगातार AQI खतरनाक श्रेणी में बना हुआ है। पराली जलाने की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इस बीच किसान नेता पराली जलाने की घटनाओं पर किसानों का समर्थन करते दिख रहे हैं।

Lakhwinder Aulakh

किसान नेता लखविंदर औलख

दिल्ली-NCR सहित उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण का जबरदस्त असर देखने को मिल रहा है। स्मॉग की मोटी परत की वजह से हां सांस लेना दूभर हो रहा है। निर्माण कार्य, गाड़ियों से निकले धुएं और दिवाली के पटाखों से तो प्रदूषण का स्तर बिगड़ा ही है। पराली के जलने से होने वाला प्रदूषण भी दिल्ली-NCR का दम घोंटने में बड़ी भूमिका निभाता है। इन सभी कारणों से दिल्ली-NCR में सांस लेना मुश्किल हो रहा है और लोगों को एक-एक सांस के लिए मेहनत करनी पड़ी रही है। इस बीच हरियाणा के एक किसान नेता का कहना है कि पराली जलाना किसानों की मजबूरी है।

दिवाली के दिन यानी गुरुवार 31 अक्टूबर को पटाखों ने प्रदूषण में जो इजाफा किया वह तो है ही। इसी दिन हरियाणा में सिरसा के फरवाई कलां गांव के एक खेत में पराली जलने का वीडियो सामने आया। यहां पराली को जलते हुए तमाम लोगों ने वीडियो में देखा। इसी तरह से दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के सैकड़ों गांवों के खेतों में इन दिनों पराली जलाई जाती है। इसी तरह पराली जलाने के कारण समूचे दिल्ली-NCR को खतरनाक धुआं अपनी गिरफ्त में ले लेता है।

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पराली जलाए जाने का वीडियो यहां देखें

पराली जलाना मजबूरी

इधर पराली जलाए जाने से होने वाले प्रदूषण के कारण लोगों की सांसों पर पहरा लगा हुआ है। एक-एक सांस के साथ लोग प्रदूषण का जहर अंदर खींच रहे हैं। दूसरी तरफ हरियाणा के किसान नेता लखविंदर औलख (Lakhwinder Aulakh) का कहना है कि पराली जलाना किसानों की मजबूरी है।

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लखविंदर औलख ने कहा, पराली जलाना किसानों की मजबूरी है। छोटे किसानों के पास जरूरी मशीनें नहीं हैं और उन्हें अपने धान बेचने के लिए 5-7 दिन तक मंडी में बिताने पड़ते हैं। डीएपी के लिए भी लाइन में लगना पड़ता है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि वह किसानों को अच्छी सुविधाएं और जरूरी मशीनें दें।

लखविंदर औलख का बयान

उन्होंने NGT की रिपोर्ट के बहाने पराली जलाए जाने की घटनाओं को प्रदूषण के लिए कम जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, NGT ने भी साफ कर दिया है कि पराली जलने से होने वाले धुआं सिर्फ 6 फीसद है। बाकी का 94 फीसद धुआं इंडस्ट्री और गाड़ियों से निकलता है। ये लोग उसे धुआं नहीं मानते। किसान नेता ने कहा कि जब पराली में आग लगाता है तो सबसे पहले उसकी चपेट में वही किसान आता है। अब आप ही सोचिए उसकी कितनी बड़ी मजबूरी होगी कि वह खेत में आग लगाता है।

लखविंदर औलख ने कहा, अगर पराली जलाने से रोकना है तो ये जो 1000 रुपये प्रति एकड़ का लॉलीपॉप दिया है उसे छोड़कर किसानों को साधन मुहैया कराने होंगे। सरकार को गांव-गांव में साधन उपलब्ध कराने होंगे, जिससे छोटे किसानों की उन तक पहुंच आसान हो सके।

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Digpal Singh author

खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें

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