भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के लिए अक्षय तृतीया से शुरू हो जाएगी तैयारी, रथ के लिए खास जंगल से आएगी लकड़ी
हर साल इस विश्व प्रसिद्ध यात्रा के लिए तीन रथ बनाए जाते हैं। ओडिशा के पुरी में 7 जुलाई को प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा निकली जाएगी। इस रथ को बनाने की तैयारियां शुरू की जा चुकी है। इन रथों को बनाने के लिए लकड़ियां खास जंगल से लाई जाती है। जानिए जगन्नाथ की रथ यात्रा से जुड़ी डिटेल्स-
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा
Jagannath Puri Rath Yatra 2024: ओडिशा के पुरी में 7 जुलाई को प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा निकली जाएगी। हर साल इस विश्व प्रसिद्ध यात्रा के लिए तीन रथ बनाए जाते हैं। इस बार इस रथ को बनाने की तैयारी 10 मई यानी अक्षय तृतीया से शुरू की जा रही है। इसी दिन से इस यात्रा की सभी तैयारियां चालू की जाएंगी। आपको बता दें कि प्रभु जगन्नाथ की इस रथ को बनाने की प्रक्रिया बहुत ही दिलचस्प है। इस पावन रथ को बनाने के लिए खास तरह की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है, जो लकड़ी नया गढ़ जिले के दसपल्ला और महिपुर के जंगलों से लाई जाती है। लेकिन, यहां से कोई भी लकड़ी काटकर नहीं लाया जा सकता है। यह वनखंड देवी बड़ राउल के पूजा स्थल है।
इन जंगलों से आती है रथ बनाने की लकड़ियां
दरअसल, लकड़ी नया गढ़ जिले के दसपल्ला और महिपुर के जंगलों से लाना होता। इन जंगलों में हर कोई लकड़ी नहीं काट सकता। नयागढ़ बनखंड की देवी बड़ राउल के पूजा स्थल हैं। जगन्नाथ मंदिर के गजपति महाराज दिव्य सिंह देव के मुताबिक मंदिर का एक प्रतिनिधिमंडल, हर साल पौष महीने की छठी को मंदिर लाया जाता है। यहां पहले देवी को भगवान जगन्नाथ की एक पोशाक और उनका फूल भेंट किया जाता है। उसके बाद देवी से अनुमति के लिए विशेष पूजा की जाती है। फिर दो घंटे भजन-कीर्तन होता है। अगर, इस दौरान,पूजा में कोई विघ्न नहीं आता है, तो मान लिया जाता है कि देवी ने लकड़ी काटने की अनुमति दे दी है।
माली प्रजाति के लोग करते हैं जंगल की रक्षा
आपको बता दें कि देवी के इस जंगल की रक्षा माली जाती के लोग करते हैं। माली प्रजाति के लोग करीब 100 से भी ज्यादा सालों से जंगल की रक्षा करते आ रहे हैं। वहीं इन पेड़ों को ये लोग ही काटते हैं। पेड़ों को काटने से पहले, इन पेड़ों को काटने से पहले उनके सामने पूरे परिवार के साथ माथा टेकते हैं, उन्हें काटने के लिए माफी मांगते हैं। इन लोगों का मानना है कि हमारे पूर्वजों ने सैकड़ों साल इनकी रखवाली की। हमें विरासत में यही काम मिला है। भगवान के लिए हम यह गलती बार-बार करते हैं, इसलिए माफी मांगते हैं।
12 तरह की लकड़ियों से बनता है रथ
प्रभु जगन्नाथ की रथों में 12 तरह के पेड़ों की लकड़ियां लगती हैं। लेकिन, इनमें तीन तरह की लकड़ियां सबसे अहम होती हैं। इन लकड़ियों में आसन, धौरा और फासी अहम हैं। आसन की लकड़ी से रथ का दंडा बनता है। फासी से पहिए और तुंभ, धौरा से अख चढ़ेई बनते हैं। सिमनी लकड़ी से रथ की दीवार, पोटल, कलश बनता है। सीढ़ियां ताड़ के चार पेड़ से बनाई जाती हैं। बबूल की लकड़ी से महाप्रभु का सेना पटा बनता है। ये लकड़ियां बौध, खोरधा, अनुगुल और कटक के जंगलों से लाईं जाती हैं। पुरी के लिए रवाना करते वक्त लकड़ियों की पूजा होती हैं और पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है।
रथ की लकड़ी से सालभर बनता है प्रसाद
यात्रा के बाद तीनों रथों की लकड़ी भगवान की रसोई में रखी जाती है। इन लकड़ियों को जलाकर सालभर भगवान का महाप्रसाद बनता है। यह प्रसाद हर दिन 30 हजार भक्तों को दिया जाता है।
इस बार 865 नहीं, 812 टुकड़े लगेंगे
भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के लिए हर साल अलग-अलग रथ बनते हैं। इन रथों को बनाने में 865 लकड़ी के टुकड़े लगते हैं। लेकिन, इस साल 812 टुकड़ों से ही रथ को बनाया जाएगा। पिछले साल 53
टुकड़े बच गए थे, जिन्हें इस साल इस्तेमाल किया जाएगा। रथ निर्माण के लिए अब तक करीब 200 टुकड़े मंदिर पहुंच चुके हैं।
ऐसे करते हैं शाही पेड़ की पहचान
रथ बनाने के लिए इन जंगलों से शाही लकड़ियों को लाया जाता है। और इन शाही लकड़ियों से ही रथ बनाए जाते हैं। इस रथ की पहचान इस तरह होती है कि जो पेड़ बिल्कुल सीधा हो और उसकी गोलाई दो हाथ से भी ज्यादा हो, तो वह शाही पेड़ होता है। जिसके काटने से पहले माली उसकी पूजा करते हैं।
रथों के पहिए बढ़ाएंगे रेलवे स्टेशन की शोभा
भारतीय रेलवे भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के दौरान बनाए जाने वाले तीनों रथों के एक-एक को पहिए पुरी रेलवे स्टेशन के कॉनकोर्स के बीच में स्थापित किया जाएगा। जिसे अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत पुनर्विकास किया जा रहा है।
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