5 साल कांग्रेस, 5 साल भाजपा फॉर्मूले के हिसाब से गहलोत के खिलाफ कितनी मजबूत हैं वसुंधरा राजे? समझिए गणित
Rajasthan Chunav: राजस्थान में 5 साल भाजपा की सरकार और 5 साल कांग्रेस की सरकार रहती है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की अनबन फिलहाल शांत है। दावा किया जा रहा है कि इस बार 5-5 साल वाला फॉर्मूला टूटेगा। ऐसे में सीएम गहलोत के खिलाफ वसुंधरा राजे कितनी अहम हैं, आपको इस बार का चुनावी समीकरण और इतिहास समझाते हैं।
अशोक गहलोत के खिलाफ क्या भाजपा का सबसे मजबूत चेहरा हैं वसुंधरा राजे?
Ashok Gehlot Vs Vasundhara Raje: साल 1993 के बाद से ही राजस्थान की सियासत में एक फॉर्मूला सेट हो चुका है। यहां एक बार भाजपा की जीत होती है तो अगली बार कांग्रेस की सरकार बनती है। 5-5 साल दोनों पार्टी सत्ता में रहती हैं। मगर इस बार का चुनावी समीकरण थोड़ा अलग नजर आ रहा है। सचिन पायलट और अशोक गहलोत अपनी राजनीतिक दुश्मनी भुलाकर कांग्रेस के वापसी का दावा कर रहे हैं। ऐसे में भाजपा की राह कितनी मुश्किल है और अगर राजस्थान का रण जीतना है तो गहलोत के खिलाफ सबसे मजबूत और प्रभावशाली चेहरा कौन साबित हो सकता है। अब तक के चुनावी इतिहास को देखा जाए तो सियासी गणित क्या कहता है।संबंधित खबरें
गहलोत के खिलाफ सबसे मजबूत चेहरा हैं वसुंधरा राजे?
भाजपा अगर 5-5 साल वाले फॉर्मूले को बरकरार रखना चाहती है तो राजस्थान में छोटी सी भी गलती भारी पड़ सकती है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने अपने गिले-शिकवे भुलाकर याराना निभाने में जुट गए हैं। ऐसे में कांग्रेस के खिलाफ राजस्थान में भाजपा के लिए एक बार फिर वसुंधरा राजे सबसे प्रभावशाली चेहरा साबित हो सकती हैं। आपको इसके पीछे का असल कारण समझाते हैं।संबंधित खबरें
राजस्थान में भाजपा के लिए कितनी अहम हैं वसुंधरा राजे?
भाजपा ने वसुंधरा राजे को साल 2003 में पहली बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया था। उस वक्त कांग्रेस के खिलाफ हुए चुनाव में भाजपा को 123 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वसुंधरा राजस्थान में भाजपा की प्रमुख चेहरा थीं और नतीजे आने के बाद उनकी ताजपोशी हुई। 5 साल बाद 2008 के चुनावों में एक बार भाजपा-एक बार कांग्रेस वाला फॉर्मूला बरकरार रहा। पिछले 4 चुनावों के नतीजों में जो सबसे अहम बात थी, वो इस बात को पुख्ता करती है कि राजस्थान में वसुंधरा का अच्छा खासा वर्चस्व है। पहले आप चुनावी नतीजों को देखिए, फिर आपको ये समझाते हैं कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं।संबंधित खबरें
जब-जब आमने सामने थे वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2008 में कांग्रेस ने 102 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा+ सिर्फ 98 सीटें ही जीत मिली। गहलोत और वसुंधरा की इस लड़ाई में महज 4 सीटों का फासला रहा और राजे का राज चला गया। मगर 5 साल बाद राजस्थान के सियासी इतिहास में वो अध्याय लिखा जाने वाला था जो आज तक नहीं हो सका। भाजपा ने फिर एक बार वसुंधरा राजे के चेहरे पर चुनाव लड़ा और राजस्थान विधानसभा चुनाव 2013 के नतीजों में भाजपा ने रिकॉर्ड 163 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस+ सिर्फ 37 सीटों पर सिमट गई। वसुंधरा राजे दोबारा सूबे की सीएम बनीं। इसके अगले चुनाव यानी 2018 में भी ये 5-5 साल वाला फॉर्मूला काम कर गया और भाजपा बहुमत के आंकड़े से 8 सीट दूर रह गई।संबंधित खबरें
भाजपा के राजस्थान में सबसे प्रभावशाली हैं वसुंधरा राजे?
अगर जीत के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो ये समझा जा सकता है कि जब-जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो उसकी सीटों में भारी गिरावट देखी गई, जबकि जब-जब भाजपा सत्ता से बाहर हुई तो बहुमत के आंकड़ों कुछ ही सीटें कम थीं। मतलब ये कि वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत की लड़ाई में जब गहलोत हारे तो उनकी हार बड़ी थी और वसुंधरा राजे की जब हार हुई तो उनका नंबर ज्यादा था। भाजपा की ओर से ये साफ नहीं है कि इस बार के चुनाव में सीएम का चेहरा कौन होगा, मगर वसुंधरा राजे के वर्चस्व को देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि इस बार भी सीएम की रेस में सबसे आगे वसुंधरा ही नजर आएंगी। पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ प्रदेश के अलग-अलग विधानसभा में उनके समर्थकों की तादाद सबसे अधिक है। भाजपा अगर सत्ता में आती है तो वसुंधरा को फिर से सत्ता का सिंहासन मिलता है या नहीं ये देखना दिलचस्प होगा, मगर सियासी गणित को देखा जाए तो भाजपा के पास फिलहाल वसुंधरा राजे से बेहतर और प्रभावशाली कोई दूसरा विकल्प नहीं है। हालांकि सियासत में कभी भी कुछ भी हो सकता है।संबंधित खबरें
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आयुष सिन्हा author
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