सूर्योदय का शहर कहलाता है उदयपुर, जानें कब बसा यह शहर, कैसे पड़ा नाम और इसका इतिहास

उदयपुर राजघराने में भले ही आज विवाद सुर्खियों में छाया हो, लेकिन एक समय यह देश के सबसे ताकतवर राजघरानों में से एक था। चित्तौड़गढ़ के राजा ने उदयपुर कब और क्यों बसाया? उदयपुर की पूरी कहानी यहां जानें। साथ ही जानें कि आज के विवाद की वजह क्या है।

कहानी उदयपुर शहर के आबाद होने की

उदयपुर में महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच चल रहा विवाद आज सुर्खियों में है। पूर्व राजघराने में चल रहे विवाद ने कल यानी सोमवार 25 नवंबर 2024 को हिंसक रूप ले लिया। परिवार के सदस्यों और समर्थकों के बीच जमकर पत्थरबाजी हुई, जिसमें कई लोग घायल हो गए। महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच ऐसा झगड़ा पहली बार दुनिया के सामने आया है। देर रात करीब 1 बजे प्रशासन ने विवादित जगह को कुर्क कर लिया और एक रिसीवर की नियुक्ति भी कर दी। जानेंगे इस विवाद की जड़ और साथ ही उदयपुर का उदय कैसे हुआ? कैसे इस शहर की नींव पड़ी और शहर को यह नाम कैसे मिला। चलिए जानते हैं -

ऐसे शुरू हुआ विवाद

दरअसल महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच यह पूरा विवाद उदयपुर राजघराने के सदस्य महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद शुरू हुआ। उनके निधन के बाद उनके बेटे व नाथद्वारा से BJP विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिक और इससे जुड़ी रस्मों को लेकर यह पूरा विवाद शुरू हुआ। देश की आजादी के साथ ही राजशाही खत्म हो गई थी, लेकिन प्रतीकात्मक रूप से यह रस्म आज भी निभाई जाती है। राजतिलक के बाद विश्वराज सिंह सिटी पैलेस के अंदर मौजूद धूणी के दर्शन करने के लिए जाना चाहते थे। लेकिन सिटी पैलेस में रह रहे उनके चाचा के परिवार ने उन्हें यह अनुमति नहीं दी, जिसके बाद यह पूरा विवाद शुरू हुआ।

नया नहीं झगड़ा, 41 साल से चल रहा विवाद

उदयपुर के अंतिम महाराणा भगवत सिंह ने 1963 से 1983 तक राजघराने की कई संपत्तियों को किराए पर दिया और कुछ संपत्तियों में हिस्सेदारी बेच भी दी थी। इसमें लेक पैलेस, सिटी पैलेस म्यूजियम, शिव निवास, जग मंदिर, जग निवास, फतह प्रकाश और गार्डन होटल जैसी संपत्तियां भी शामिल थीं। इन सभी संपत्तियों को राजघराने की तरफ से बनाई गई एक कंपनी को ट्रांसफर कर दिया गया था और तभी से राजपरिवार में विवाद शुरू हो गया था। पिता के फैसले से नाराज महेंद्र सिंह मेवाड़ ने 1983 में पिता भगवत सिंह के खिलाफ केस दर्ज कराया था।

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