Holi Festival 2023: राजस्थान के इस शहर में बनती है होली पर एक खास मिठाई, बरसों से ये समाज निभा रहा इस रवायत को

Holi Festival 2023: होली के त्योहार के मौके पर अजमेर शहर में सिंधी घीयर मिठाई बनती है। दिखने में जलेबी के जैसी मगर स्वाद में लाजवाब। आजादी के पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत में इस मिठाई का बोलबाला था। मगर आजादी के बाद तकसीम की लकीरें खींची और दो देश बनें तो सिंधी समाज के साथ ये मिठाई भी भारत आ गई। यही वजह है कि, ये मिठाई अब हमारे यहां बनती है। सिंधी समुदाय के लोगों समेत यहां के रहवासी होली के मौके पर बड़े चाव से इसका जायका चखते हैं।

राजस्थान के अजमेर शहर में सिंधी समाज बांटता है होली पर घीयर मिठाई (प्रतीकात्मक तस्वीर)

मुख्य बातें
  • आजादी से पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बनती थी घीयर
  • बंटवारा हुआ तो सिंधी समाज के साथ ये मिठाई भी भारत आ गई
  • अजमेर में सिंधी समाज का बड़ा तबका रहता है, इसलिए यहां घीयर प्रचलित हुई


Holi Festival 2023: राजस्थान का अजमेर शहर का इतिहास किसी से छिपा नहीं है, पृथ्वीराज चौहान के शौर्य की गाथाएं आज भी यहां की मिट्टी के कण- कण में गुंजती हैं। हालांकि ख्वाजा गरीब नवाज की इस नगरी में कई खास तरह की प्रसिद्ध मिठाइयां बनती हैं, जिनकी धमक देश के कई शहरों व विदेशों तक में है। मगर होली के त्योहार के मौके पर सिंधी घीयर मिठाई बनती है।

दिखने में जलेबी के जैसी मगर स्वाद में लाजवाब। आजादी के पहले पाकिस्तान के सिंध प्रांत में इस मिठाई का बोलबाला था। मगर आजादी के बाद तकसीम की लकीरें खींची और दो देश बनें तो सिंधी समाज के साथ ये मिठाई भी भारत आ गई। यही वजह है कि, ये मिठाई अब हमारे यहां बनती है। बता दें कि, अजमेर शहर में सिंधी समाज का एक बड़ा तबका बसता है, इसलिए सिंध समुदाय के लोगों समेत यहां के रहवासी होली के मौके पर बड़े चाव से इसका जायका चखते हैं।

घरों में बंटती है घीयर मिठाईअजमेर में बड़ी संख्या में सिंधी समाज की लोग रहते हैं ऐसे में यहां पर इस मिठाई का ज्यादा उपयोग किया जाता है। अजमेर के डिग्गी बाजार और खारी कुई इलाके में इसकी दुकाने हैं, जहां से इसकी बिक्री बसंत पंचमी से लेकर होली और चेटीचंड तक चलती है। होली पर इसका पूजा अर्चना कर भोग लगाया जाता है। इस मिठाई के निर्माण में घी, तेल, मैदा और शक्कर काम में ली जाती है। यह जलेबी की तरह दिखती है, लेकिन इसका स्वाद खट्टा मीठा होता है और आकार भी बड़ा होता है। सिंधी समाज के लोग इसे घरों में शुभकामना के तौर पर बांटते हैं। यहां से प्रथा बरसों से चली आ रही है।

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