Holi Festival 2023: जयपुर के निकट इस शहर में निकलती है होली पर शव यात्रा, सदियों पुरानी है ये परंपरा, जानिए पूरी रोचक कहानी
Holi Festival 2023: जयपुर के निकट चौमूं शहर में करीब डेढ़ सदी से होली पर शवयात्रा निकाली जाती है। इसकी शुरूआत सन 1834 ईस्वी में ठाकुर लक्ष्मण सिंह ने की थी। उस जमान में किसी व्यक्ति को अर्थी पर लिटाया जाता था, उसके बाद शवयात्रा शहर के प्रमुख मार्गों से निकलती थी। चौमूं शहर में एक और परंपरा बरसों से चली आ रही है, जिसमें धुलंडी के दिन शहर में बींद-भाडू की भी बारात निकाली जाती है।
जयपुर के निकट होली पर निकलती है बोराजी की शवयात्रा (प्रतीकात्मक तस्वीर)
मुख्य बातें
- चौमूं शहर में हुड़दंगी निकालते है होली पर बोराजी की शवयात्रा
- शवयात्रा निकालने की शुरूआत ठाकुर लक्ष्मण सिंह ने सन 1834 में की थी
- धुलंडी के दिन चौमूं में बींद-भाडू की भी बारात निकाली जाती है
Holi Festival 2023: अपने गौरवशाली वैभव के अनेक किस्से कहानियों को दामन में समेटे राजस्थान की सांस्कृति विरासत अद्भुत है। यहां पर त्योहार मनाने की अनेक रवायतें प्रचलित हैं। होली की अगर बात करें तो प्रदेश के अलग- अलग स्थानों पर इसे अलग अंदाज में सेलिब्रेट किया जाता है। इसी कड़ी में आपको बताने जा रहे हैं जयपुर के निकट चौमूं शहर में होली पर्व को मनाने के खास अंदाज के बारे में जहां करीब डेढ़ सदी से होली पर शवयात्रा निकाली जाती है।संबंधित खबरें
यहां के लोगों के मुताबिक, ये परंपरा करीब 189 वर्ष पुरानी है। मगर इसे आज भी पूरे जोश और जश्न के साथ मनाया जाता है। होली के हुडदंग के साथ निकाली जाती है बोराजी की शवयात्रा। जिसमें शामिल होते हैं शहर के हजारों युवा, बच्चे व बुजुर्ग। इस अनूठी रवायत को मनाने की शुरूआत सन 1834 ईस्वी में चौमूं के ठाकुर लक्ष्मण सिंह ने की थी। उस जमान में किसी व्यक्ति को अर्थी पर लिटाया जाता था, उसके बाद शवयात्रा शहर के प्रमुख मार्गों से निकलती थी। इस दौरान रसिये चंग और ढोल तासों की थाप पर खूब मस्ती और हुड़दंग करते थे। संबंधित खबरें
जमकर होती है आतिशबाजी चौमूं शहर में सदियों से चली आ रही इस परंपरा में अब सिर्फ इतना बदलाव आया है कि, अब अर्थी पर घास फूस का पुतला बनाकर लिटाकर शव यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान बैंड व चंग की धुनों पर लोग नाचते गाते हुए शहर के मुख्य मार्ग से बस स्टैंड पर पहुंचते है। इसके बाद मोरीजा रोड चौराहे पर पुतला दहन किया जाता है। इस मौके पर जोरदार आतिशबाजी भी की जाती है। इसी मौके पर चलता है हंसी -ठिठोली का दौर, जहां हुड़दंगी एक दूजे पर पुराने जूते चप्पल, फटे कपड़े और पानी की बौछारों संग एक दूजे को बोराजी पुकारते हैं।
बारात में सजती है धार्मिक झांकियां होली पर चौमूं शहर में एक और परंपरा बरसों से चली आ रही है, जिसमें धुलंडी के दिन शहर में बींद-भाडू की भी बारात निकाली जाती है। यहां के रहवासियों के मुताबिक, बारात शहर में धनजी की गली स्थित ब्रह्मपुरी जागेश्वर मंदिर से रवाना होती है। इस बारात में भी शहर के हजारों लोग शामिल होते हैं। बारात में दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर निकलता है। जिसमें भगवान शंकर, विष्णु और भक्त प्रहलाद सहित कई देवी देवताओं की जीवंत झांकियां सजाई जाती हैं। बाद में बारात शहर के रावण गेट स्थित हाड़ौता वालों के घर पहुंचती है। यहां दूल्हा तोरण मारता है। इसके बाद बारात फिर से जागेश्वर मंदिर लौटती है। इस मौके पर सभी बारातियों को ठंडाई पिलाई जाती है व लोग एक दूसरे के रंग गुलाल लगाकर होली के त्योहार सेलिब्रेट करते हैं।
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