Holi Festival Special 2023: इस धर्म नगरी में बाबा श्याम संग भक्त रचाते हैं रास, अबीर व इत्र से खेलते हैं होली, जानिए पूरा इतिहास
Holi Festival Special 2023: खाटू श्याम के मंदिर की स्थापना सन 1027 में रूप सिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर ने की थी। इसके बाद मारवाड़ के राजाओं ने सन 1720 में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। बता दें कि, बाबा श्याम का शीश यहां पर खुदाई करने पर निकला था। जहां अब वर्तमान में श्याम कुंड बना है। यही वजह है कि, खाटू श्याम की पूजा हारे के सहारो व शीश के दानी के रूप में होती है।
राजस्थान के जयपुर के निकट खाटू श्याम मंदिर में भक्त खेलते हैं बाबा संग होली (फाइल फोटो)
- खाटू धाम में खुदाई करने पर निकला था बर्बरीक का शीश
- फाल्गुन माह में लगता है खाटू श्याम मंदिर में लक्खी मेला
- भक्त बाबा संग खेलते हैं अबीर और इत्र की होली
Holi Festival Special 2023: राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है पौराणिक खाटू श्याम मंदिर देश-विदेश के लाखों भक्तों की असीम आस्था का केंद्र है। जयपुर से करीब 65 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर में साल भर में लाखों भक्त बाबा के दर पर शीश नवाते हैं। बता दें कि, इस मंदिर की महिमा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। जहां पर भीम के पौत्र बर्बरीक को भगवान श्रीकृष्ण के रूप में पूजा जाता है।
यहां पर फाल्गुन माह में बाबा का लक्खी मेला लगता है। जो होली दहन के बाद संपन्न होता है। होली दहन के बाद दूसरे दिन श्रद्धालु इत्र व अबीर उड़ाते हुए बाबा श्याम संग होली खेलते हैं व परिवार की खुशहाली की कामना कर अपने घरों की ओर लौट जाते हैं। इतिहासकारों के मुताबिक खाटूश्याम के मंदिर की स्थापना सन 1027 में रूप सिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर ने की थी। इसके बाद मारवाड़ के राजाओं ने सन 1720 में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। बता दें कि, बाबा श्याम का शीश यहां पर खुदाई करने पर निकला था। जहां अब वर्तमान में श्याम कुंड बना है। यही वजह है कि, खाटूश्याम की पूजा हारे के सहारो व शीश के दानी के रूप में होती है।
ये है बर्बरीक के जन्म की कथामहाभारत में लाक्षागृह षडयंत्र के बाद पांडवों की मुलाकात जंगल में हिडिम्बा नामक राक्षसी से हुई थी। राक्षसी भीम का स्वरूप देखकर उन पर मोहित हो गई। इसके बाद हिडिम्बा के भाई और माता कुंती की आज्ञा से दोनों का गन्धर्व विवाह हुआ। इसके बाद हिडिम्बा गर्भवती हुई तो उसने एक पुत्र घटोत्कच को जन्म दिया। बाद में घटोत्कच का विवाह प्रागज्योतिषपुर में मुरदैत्य की बेटी कामकंटका से हुआ। इसके बाद घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक हुआ। महा-पराक्रमी बर्बरीक ने और बल की प्राप्ति के लिए देवियों की आराधना की उसने तीन ऐसे दुर्लभ और दिव्य तीरों का वरदान पाया जो अपने दुर्गम लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे।
ऐसे कहलाए शीश के दानी बर्बरीक ने तब महाभारत युद्ध में भाग लेने के लिए नीले घोड़े पर सवार होकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर जाने लगे तो मां ने वचन लिया कि, जो पक्ष हारेगा तुम उसकी सहायता करोगे। श्रीकृष्ण जानते थे कि कौरवों की हार निश्चित है, ऐसे में यदि बर्बरीक ने कौरवों की सहायता की तो पांडवों की हार होगी। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धरा और बर्बरीक के युद्ध कौशल की क्षमता परखी और दान मांगा। बर्बरीक ने जब दान देना स्वीकर किया तो कन्हैया ने बर्बरीक से शीश मांग लिया। इसके बाद बर्बरीक ने अपना शीश श्रीकृष्ण को दान कर दिया। शीश दान से पहले बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण से महाभारत युद्ध देखने की इच्छा जताई। श्री कृष्ण ने उनके शीश को एक ऊंचे पहाड़ पर पीपल के पेड़ पर स्थापित कर दिया। यही वजह थी कि, श्री कृष्ण ने खुश होकर बर्बरीक को वरदान दिया कि, कलियुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे तुम्हारे स्मरण और दर्शन मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और उन्हें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होगी।
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