यहां रंगों की बौछार नहीं, सुनाई देती गोलियों की तड़तड़ाहट; जानिए मेवाड़ में क्यों खेली जाती बारूद की होली?
मेवाड़ के मेनार गांव में बारूद की होली खेली गई। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है, जो आज भी कायम है। यहां लोग गोला-बारूद से होली खेलते हैं।
होली का मतलब रंगों के त्योहार से है। आपने बहुत से बहुत नंदगांव की लट्ठमार होली के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आपने ऐसा सुना है कि देश के किसी कोने में लोग बारूद की होली खेलते हैं। यह सुनकर आपको काफी अजीब लगा होगा, लेकिन यह सच है। राजस्थान के मेवाड़ में लोग बारूद की होली खेलते हैं।
कई वर्षों से जारी है परंपरा
उदयपुर जिले के मेनार गांव में कई वर्षों से बारूद की होली खेलने की परंपरा जारी है। इस बारूद की होली को देखने के लिए राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश के कई जिलों से लोग यहां पहुंचते हैं। जब लोग मेनार की बारूद की होली देखते हैं तो दांतों तले उंगली दबा लेते हैं, क्योंकि यह अपने-आप में हैरान कर देने वाला है।
सुनाई देती गोलियों की तड़तड़ाहट
कहा जाता है कि जब यहां बारूद की होली खेली जाती है तो ललकारने की आवाज सुनाई देती है। होली शुरू होते ही बारूद के धमाके की आवाज सुनाई देने लगती है। बंदूकों से गोली चलने लगती है। उस वक्त यहां ऐसा माहौल बन जाता है, जैसे मानों कोई युद्ध हो रहा हो। इस बारूद की होली की शुरुआत कई साल पहले हुई थी।
बारूद की होली शुरू होने से पहले शाही लाल जाजम बिछाई जाती है, जिस पर अम्लकुस्लमल की रस्म पूरी होती है। इसमें 52 गांवों से मेनारिया ब्राह्मण समाज के पंच और मौतबीर शामिल होते हैं। इस रस्म के खत्म होने के बाद ढोल बजने शुरू हो जाते हैं। इस होली में पूर्व रजवाड़ों के सैनिकों की तरह पोशाक पहने लोग नजर आते हैं।
सज-धजकर पहुंचते हैं लोग
होली के शुरू होते ही गांव के तमाम लोग सज-धज कर गांव के ही ओंकारेश्वर चौराहे तक पहुंचते हैं। यहां पहुंचकर आतिशबाजी करते हैं। इसके बाद रंग गुलाल लगाते हैं। साथ ही मेनार के शौर्य व वीरता और मेनारिया समाज के इतिहास के बारे में बताया जाता है।
इस बार भी यह नायाब होली देखने को मिली। गांव के मुख्य चौराहे पर पटाखों की गूंज, आग के गोले, गरजती बंदूकें, खनकती शमशीरों के बीच महिलाएं सिर पर कलश रखती है और वीर सर के गीत गाती हैं। इसी दौरान, हवाई फायर करते और गुलाल लगाते हुए आतिशबाजी के साथ पुरुष माता की घाटी तक पहुंचे।
क्यों खेली जाती है बारूद की होली?
बता दें कि बारूदों की होली मुगलों की सेना को हराने के बाद उत्साह के रूप में पिछले 400 साल से ज्यादा समय से खेली जाती है, जिसे मेनार में गोला-बारूद की होली कहा जाता है।
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देवशंकर चौधरी मार्च 2024 से Timesnowhindi.com के साथ करियर को आगे बढ़ा रहे हैं और बतौर कॉपी एडिटर...और देखें
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