राजस्थान का स्कूटी गार्डन, आदिवासी छात्राओं की आशाओं का कबाड़; लापरवाही से जंग खा रही उम्मीदें

राजस्थान में आदिवासी छात्राओं को मिलने वाली स्कूटी धूल फांक रही है। महीनों से एक जगह रखे-रखे स्कूटी में पौधे निकल आए हैं। आलम यह है कि यह कबाड़ खाना बन चुका है और स्कूटी गार्डन जैसा दिखने लगा है। इसके पीछे सरकारी अधिकारियों की लापरवाही है, जिससे करोड़ों की लागत की स्कूटियां आज कबाड़ बन गई हैं।

स्कूटियों में उग आए पौधे।

लोहे के जंग लगे तो सुधार की गुंजाईश है, लेकिन प्रोत्साहन को ही अगर जंग लग जाए तो प्रोत्साहित होने वाले बच्चों की भावना आशा-अभिलाषा को भी धक्का लगता है और ये बच्चे यदि ट्राईबल क्षेत्र के हो तो फिर योजनाएं मुंह चिढ़ाने लगती है और धराशाही हो जाते है, वो सपने, जो मेहनत के दम पर जिंदगी के केनवास में रंग भरते हैं। मामला आदिवासी इलाके बांसवाडा के होनहार बेटियों को दी जाने वाली नि:शुल्क स्कूटी वितरण को लेकर जुड़ा है, जो अधिकारियों की लापरवाही के चलते अब कबाड़ बन गई है।
हरे भरे गार्डन में स्कूटी पड़ी हुई है, जिसमें मेहनत कर 66 फीसदी अंक लाने वाली आदिवासी बालिकाओं के सपनों का खाद बीज लगा है। ये स्कूटी गार्डन प्राकृतिक नहीं है, बल्कि लापरवाही की बारिश में तैयार हुआ सपनों और आकांक्षाओ का वो कबाड़ है, जो गार्डन जैसा दिखाई देता है। इस गार्डन में अगर निगाहों को थोड़ा पैना करके नजर डाली जाए तो आपको यहां हजारों की संख्या में स्कूटी दिखाई देंगी।

कबाड़ बन गई स्कूटी

तस्वीर बांसवाडा के विद्यामंदिर कॉलेज की है, जहां 600 स्कूटी कबाड़ नजर आ रही है। ऐसी ही 1090 और स्कूटी हैं, जो शहर की अलग अलग लोकेशन पर रखी हुई है। इन कुल 1690 स्कुटियों की कीमत 13.50 करोड़ रूपये के करीब है। गहलोत सरकार में शुरू हुई बेटी पढ़ाओ प्रोत्साहन योजना में होनहार छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए यह स्कूटी दी जानी थी, लेकिन लापरवाह अफसरों की कारगुजारियों ने न केवल आदिवासी बेटियों के सपनों पर सिर्फ पानी फेरा, बल्कि शहर में तैयार कर दिए धराशायी सपनों के कुछ स्कूटी गार्डन। योजना में तय था कि 66 फीसदी से अधिक अंक लाने वाली छात्राओं को मेरिट के आधार पर स्कूटी दी जायेंगी, लेकिन पिछले तीन सालों से ये स्कूटी योजना को मुंह चिढ़ा रही है और उन सपनों पर भी जंग लगा चुकी है जो इसके हकदार थे।
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