Kidney कलंक कथा : 24 लाख में डील, डोनर को 4 लाख और बाकी एजेंट्स की जेब में

जयपुर किडनी रैकेट का मास्टरमाइंड अब भी पुलिस की गिरफ्त से दूर है। लेकिन इस रैकेट को लेकर पुलिस लगातार नए खुलासे कर रही है। पुलिस ने बांग्लादेश से लेकर जयपुर और गुरुग्राम तक इस पूरे रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए पैसे के लेन-देन संबंधी पूरी जानकारी दे दी है।

जयपुर किडनी रैकेट

हाल में में जयपुर के दो बड़े नामी अस्पताल में चल रहे किडनी रैकेट (Jaipur Kidney Racket) का भंडाफोड़ हुआ। अब इस किडनी रैकेट को लेकर नए-नए खुलासे होते जा रहे हैं। पुलिस लगातार इस मामले में कार्रवाई कर रही है और इस रैकेट से जुड़े हर व्यक्ति के कॉलर पकड़कर उसे कानून के शिकंजे में ला रही है। जब पुलिस को जयपुर के इन अस्पतालों में मानव अंग प्रत्यारोपण से जुड़े 'खेल' का पता चला तो पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की। लेकिन इस दौरान किडनी रैकेट का सरगना मोहम्मद मुर्तजा अंसारी भागकर गुरुग्राम आ गया। अब पुलिस उसी की तलाश में जुटी है।

रांची का रहना वाला है मास्टरमाइंड अंसारीमानव अंग रैकेट के सरगना अंसारी को आखिरी बार 3 अप्रैल को गुरुग्राम के सेक्टर-39 स्थित बाबिल गेस्ट हाउस में देखा गया था। अंसारी झारखंड में रांची का मूल निवासी है। पुलिस लगातार उसका पीछा कर रही है। लोकेशन ट्रेस होने के बाद गुरुग्राम पुलिस रविवार को रांची के लिए भी रवाना हो गई।

18 लाख में होती थी डीलपुलिस को मिली जानकारी के अनुसार किडनी ट्रांसप्लांट के लिए एक मरीज से 18 लाख रुपये में डील होती थी। मुख्यमंत्री उड़न दस्ते की टीम ने गुरुवार 4 अप्रैल को गुरुग्राम में मौजूद बाबिल गेस्ट हाउस में छापा मारा था। मास्टर माइंड अंसारी के साथ किडनी ट्रांसप्लांट के लिए आए पांच बांग्लादेशी नागरिकों को बाबिल गेस्ट हाउस से पकड़ा गया था। इन पांच में से दो इस्लाम नुरुल और मोहम्मद अहसानुल की किडनी ट्रांसप्लांट हो चुकी थी।

दो लोग किडनी डोनर बनकर आए थेजब इन लोगों को गिरफ्तार किया गया, तब महमूद सैयद अकब की किडनी ट्रांसप्लांट अभी की जानी बाकी थी। इनके अलावा शमीन मेहंदी हसन और हुसैन मोहम्मद नाम के दो डोनर भी वहां मौजूद थे। शमीम की किडनी निकाली जा चुकी थी और हुसैन मोहम्मद की किडनी निकाले जाने की प्रक्रिया जारी थी। जयपुर से आई टीम ने पाचों से पूछताछ की।

बांग्लादेश में 24 लाख टका में होती थी डीलकिडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले मोहम्मद अहसानुल और इस्लाम नुरुल के अनुसार बांग्लादेश में मौजूद एजेंट 24 लाख टका में उनकी डील करते थे। भारतीय रुपयों में यह डील 18 लाख रुपये की होती थी। जो जो किडनी देते थे, उन्हें मुर्तजा 4 लाख टका यानी भारतीय मुद्रा में 3 लाख रुपये देता था। अब बाकी बचे 20 लाख टका यानी 15 लाख रुपये को दो हिस्सों में बांट दिया जाता था।

इसका एक हिस्सा बांग्लादेश में एजेंट्स को दिया जाता था, जबकि एक हिस्सा मुर्तजा अपने पास रखता था। बांग्लादेश से भारत आने वाले डोनर और किडनी खरीदने वाले ग्राहकों के रहने, खाने, इलाज और अन्य चीजों की व्यवस्था मुर्तजा ही करता था। बांग्लादेशी एजेंटों का काम मरीजों के लिए मेडिकल वीजी, हवाई टिकट और अन्य सभी कागजी कार्रवाई पूरी करके भारत भेजना होता था।

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