Jaipur Unique Shivling: ऐसा शिवलिंग जो सूर्य के हिसाब से दिशा में झुक जाता है, जानिए जयपुर के इस खास मंदिर के बारे में

Jaipur Culture: जयपुर अपने पर्यटन और ऐतहासिक स्थलों के लिए जाना जाता है। जयपुर में अरावली के पहाड़ों के बीच एक अनूठा शिव मंदिर है। इसकी विशेषता है कि यह हर 6 महीने बाद सूर्य की दिशा की ओर झुक जाता है। मंदिर का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। इस मंदिर को मालेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।

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जयपुर के सामोद का अनूठा शिवलिंग। (Photo Credit- Facebook)

मुख्य बातें
  1. अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित है शिव मंदिर
  2. विक्रम संवत 1101 काल का है मंदिर
  3. हर 6 महीने में सूर्य के हिसाब से शिवलिंग बदलता है दिशा

Jaipur News: राजस्थान की राजधानी जयपुर अपनी कला-संस्कृति के साथ अपने अनोखे और ऐतिहासिक मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। बता दें कि ऐसा ही एक मंदिर जयपुर के पास अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच बसे सामोद के महार कलां गांव में है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में एक अनूठा शिवलिंग है जो हर 6 माह में सूर्य के हिसाब से अपनी दिशा बदल लेता है। मंदिर में विराजमान शिवलिंग सूरज की दिशा के अनुरूप चलने लिए प्रसिद्ध है। इस ऐतिहासिक शिवलिंग का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है।

बता दें कि इस मंदिर को मालेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि सूर्य हर साल छह महीने में उत्तरायण और दक्षिणायन दिशा की ओर बढ़ता है। उसी तरह यह शिवलिंग भी सूर्य की दिशा में झुकता रहता है। अपने इस चमत्कारिक गुण से यह देश का अनोखा शिव मंदिर है।

ऐतहासिक स्वयंभूलिंग विराजमान

बता दें कि प्रकृति की गोद में बसा यह मनोरम स्थल जयपुर से लगभग चालीस किलोमीटर की दूरी पर है। विक्रम संवत 1101 काल के इस मंदिर में ऐतहासिक स्वयंभूलिंग विराजमान है। बता दें कि बारिश में बहते प्राकृतिक झरने, पानी के बड़े कुण्ड, आसपास पौराणिक मानव सभ्यता-संस्कृति की अनूठी कहानियां कहते अति प्राचीन खंडहर इस स्थान की प्राचीनता को दर्शाते हैं। बारिश के दिनों में इस स्थान की सुंदरता देखते ही बनती है।

अनूठा है मंदिर का इतिहास

मंदिर के पुजारी के अनुसार वर्तमान में महारकलां गांव पौराणिक काल में महाबली राजा सहस्रबाहु की माहिष्मति नगरी का एक भाग हुआ करता था। इसी कारण इस मंदिर का नाम मालेश्वर महादेव मंदिर हो गया। विक्रम संवत 1101 काल के इस अनोखे शिव मंदिर में स्वयंभूलिंग विराजमान है। पहाडिय़ों से घिरे इस धार्मिक स्थल पर प्रकृति भी पूरी तरह मेहबान है। बारिश में मंदिर के आसपास प्राकृतिक झरने स्वत: ही बहने लगते हैं। जो यहां की सुंदरता को और भी मनमोहक बना देते हैं।

मुगल काल में हुई थी नष्ट करने की कोशिश

मुगल काल में इस मंदिर को बुरी तरह नष्ट कर दिया गया था। मंदिर में उस जमाने में नष्ट की गई शेष-शैया पर लक्ष्मी जी के साथ विराजमान भगवान विष्णु जी की खण्डित प्रतिमा आज भी यहां मौजूद है। कालांतर में इस अनोखे मंदिर का जीर्णोद्धार कर इस पर गुंबद व शिखर का निर्माण किया गया था।सूर्य की गति के अनुसार झूमने वाला यह देश का संभवतया पहला ही मंदिर है।

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