Makar Sankranti 2023: जयपुर वासियों को विरासत में मिला है पतंगबाजी का शौक

Kite Festival Jaipur: राजस्थान में पतंगबाजी का पुराना इतिहास है। 150 साल पहले यहां पतंगबाजी शुरू हुई। महाराजा रामसिंह द्वितीय को पतंगबाजी का ज्यादा शौक था। वह लखनऊ से पतंग लाए थे। वो ही बड़ी चर्खियों से जयपुर में आदमकद के तुक्कल उड़ाया करते थे। आजादी के पहले जयपुर में जलमहल और लालडूंगरी के मैदान में पतंगबाजी की प्रतियोगिता भी होती थी।

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महाराजा सवाई राम सिंह II की "तुक्कल" और चरखी

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • जयपुर में 150 साल पहले शुरू हुई थी पतंगबाजी
  • महाराज रामसिंह लखनऊ से लाए थे पहली पतंग
  • आजादी से पहले जयपुर में होती थी पतंग प्रतियोगिता

Kite Festival Jaipur: राजस्थान के जयपुर जिले में मकर संक्रांति के मौके पर होने वाली पतंगबाजी पूरी दुनिया में फेमस है। यहां होने वाली पतंगबाजी की देश-दुनिया में खास पहचान है। जयपुर के बाजार रंग-बिरंगी पतंगों से दुल्हन की तरह सज गए हैं। पतंग बाजार में लोगों की भीड़ दिखाई दे रही है। जयपुर की मकर संक्रांति की सुबह से यहां की छतों पर पतंग कटने की आवाज गूंजने लगती हैं। जयपुर में पतंगबाजी का संबंध नवाबों के नगरी लखनऊ से जुड़ा है। पतंगबाजी का इतिहास करीब 150 वर्ष पुराना बताया जाता है।

इतिहासकारों के अनुसार, जयपुर राजघराने के महाराजा सवाई जय सिंह के बेटे महाराजा राम सिंह द्वितीय (1835-1880 ई.) सबसे पहले यूपी की राजधानी लखनऊ से पतंग लेकर आए थे। लखनऊ से आई यह पतंग 'तुक्कल' थी, ये कपड़े से विशेष तरीके से बनती थी।

महाराजा रामसिंह के जमाने से जयपुर में बनने लगी थी पतंग

तत्कालीन महाराजा रामसिंह द्वितीय पतंगबाजी के इतने शौकीन थे कि उन्होंने जयपुर रियासत में 36 कारखाने खोल लिए थे। इनमें पहला कारखाना पतंग का था, इस कारखाने को पतंगखाना नाम दिया गया था। महाराजा रामसिंह ने पतंगबाजों और पतंगकारों को अपने राज में जगह दी थी। तभी से गुलाबी नगरी के कई मोहल्लों में पतंग बनाने का कार्य शुरू हुआ। तितली के आकार की विशाल पतंगें 'तुक्कल' यहां बनाई जाने लगीं। महाराजा रामसिंह के जमाने से लखनऊ से पतंग बनाने वाले कारीगर और डोर सूतने वाले यहां आते थे।

महल में एक कोठरी में भरी रहती थी सिर्फ पतंग

150 वर्ष पहले बड़ी चर्खियों से जयपुर में आदम कद के तुक्कल उड़ाए जाते थे। राज परिवार भी अपने महल में पतंग महोत्सव शुरू करने लगा था। महल में एक कोठरी सिर्फ पतंग ही भरी रहती थीं। महाराजा माधोसिंह द्वितीय ने भी पतंगबाजी के शौक को जारी रखा। महाराजा रामसिंह द्वितीय की पतंग और चरखियां आज भी जयपुर के सिटी पैलेस म्यूजियम में सुरक्षित रखी हैं। जयपुर के इतिहास से जुड़े देवेंद्र कुमार भगत के मुताबिक, महाराजा राम सिंह चंद्रमहल की छत से बड़ी-बड़ी पतंग 'तुक्कल' उड़ाते थे। यह तुक्कल कपड़े से बने आदम कद की पतंग होती थी। इनके पैरों में चांदी की छोटी-छोटी घुंघरियां लटकी होती थीं। आजादी के पहले जयपुर के आमेर रोड पर जलमहल और लालडूंगरी के मैदान में पतंगबाजी की प्रतियोगिता होती थी। इसमें कई राज्यों से पतंगबाज शामिल होते थे।

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