Navaratri 2022: बॉर्डर पर इस मंदिर में पूजा करते हैं फौजी, 1965 में पाकिस्तान के 3 हजार बम हो गए थे बेअसर
Rajasthan: जैसलमेर से करीब 120 किमी व पाकिस्तान बॉर्डर से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित है तनोट माता मंदिर। यह मंदिर आजादी के बाद भारत-पाक युद्ध का गवाह भी रहा है। मंदिर भाटी राजपूत राव तनुजी द्वारा बसाए गए तनोट में स्थित है। लोग वर्तमान में मंदिर को तनोटराय मातेश्वरी या तनोट माता के नाम से पुकारते हैं।
तनोट माता मंदिर के पास गिरे थे युद्ध के दौरान बम (फोटो- फेसबुक)
- जैसलमेर से करीब 120 किमी व पाकिस्तान बॉर्डर से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित है तनोट माता मंदिर
- पाकिस्तानी सेना ने मंदिर एरिया में 3 हजार से भी अधिक बम गिराए थे, मगर एक भी बम नहीं फटा
- बीएसएफ के जवान ही करते हैं तनोट माता मंदिर में सुबह- शाम आरती
Navaratri 2022: राजस्थान के मरूस्थल में जैसलमेर से करीब 120 किमी व पाकिस्तान बॉर्डर से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित है तनोट माता मंदिर। यह मंदिर आजादी के बाद भारत- पाक युद्ध का गवाह भी रहा है। मंदिर भाटी राजपूत राव तनुजी द्वारा बसाए गए तनोट में स्थित है। लोग वर्तमान में मंदिर को तनोटराय मातेश्वरी या तनोट माता के नाम से पुकारते हैं। तनोट थार के रेगिस्तान में जैसलमेर जिले में भारत-पाक सीमा पर बसा एक गांव है।
मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी की शुरुआत में होना बताया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि, 1965 कि जंग में पाकिस्तानी सेना ने मंदिर के एरिया में 3 हजार से भी अधिक बम गिराए थे, मगर एक भी बम नहीं फटा। तनोट माता मंदिर युद्ध में भी अडिग रहा।
बीएसएफ के जवान संभालते हैं मंदिर कोइलाके में ये बात प्रचलित है कि, बीएसएफ के जवान मां को अपनी आराध्य मानते हैं। मां की उपासना करते हैं। बीएसएफ के जवान की मां की सुबह- शाम आरती करते हैं। इलाके में 1965 के भारत- पाक युद्ध की कई कहानियां प्रचलित हैं। 1965 के युद्ध में भारतीय सेना के पास पाकिस्तान की आर्टिलरी का जवाब देने के लिए पर्याप्त हथियार नहीं थे। इसका फायदा उठाते हुए पाक की ओर से इंडियन आर्मी की मौजूदगी में ही बड़े क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया गया। इसके बाद तनोट माता मंदिर के पास चौकी पर पाक की ओर से करीब 3 हजार बम दागे गए, मगर एक भी नहीं फटा।
पाक ब्रिगेडियर भी झुक गया मां के आगेबताया जाता है कि, मां के चमत्कार को देखकर पाकिस्तान का तत्कालीन ब्रिगेडियर शहनवाज खां भी नतमस्तक हो गया। उसने मां तनेश्वरी के दर्शनों के लिए तत्कालीन इंडियन गर्वनमेंट से परमिशन मांगी। जिसे सरकार ने करीब ढाई साल बाद मंजूर किया। इसके बाद शहनवाज खान ने मां के दर्शन कर एक चांदी का छत्र चढ़ाया, जो आज भी मौजूद है। मां के मंदिर में 450 बम रखें हुए हैं। जिन्हें मां के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु देखते हैं। यहां पर 1965 के युद्ध की याद में एक विजय स्तंभ का भी निर्माण किया गया है। जो कि भारतीय फौज के साहस की कहानी बताता है। वहीं यहां हर वर्ष 16 दिसंबर को 1971 के युद्ध में पाक पर मिली विजय को उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
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