मरुस्थल में हैट्रिक से कहां चूकी BJP, जनाधार की अनदेखी या जातियों का गठजोड़ हुआ फेल; संजीवनी मिलने पर कितनी आक्रामक होगी कांग्रेस?
Rajasthan Lok Sabha Election: राजस्थान में 10 फीसदी वोट शेयर की गिरावट के साथ बीजेपी को 14 सीटों पर जीत से दिल को दिलासा देना पड़ रहा है। माना जा रहा है कि राज्य में जनाधार वाले नेताओं की अनदेखी बीजेपी को भारी पड़ी। उधर, कांग्रेस 8 सीट जीतने के बाद आगामी पांच सीटों पर होने वाले उपचुनाव में आक्रामक नजर आ सकती है।
राजस्थान लोकसभा चुनाव
Rajasthan Lok Sabha Election: पिछले दो चुनावों में सभी 25 सीटों पर कब्जा जमाने वाली भाजपा को इस बार राजस्थान में 10 फीसदी वोट शेयर की गिरावट के साथ 14 सीटों पर सिमट कर सब्र करना पड़ा है। यह हालत तब हैं जब 6 महीने पहले ही विधानसभा चुनावों में जीत का डंका बजा चुकी भाजपा डबल इंजन की सरकार से विकास का दावा करते हुए मैदान में थी। लेकिन, राजनीती के अपने गुणा-गणित और जोड़ भाग होते हैं। शायद उसका नुकसान भाजपा को मिला और कांग्रेस अपने घटक दलों के साथ 11 सीटों पर कब्जा जमाने में सफल रही। क्या है वो गुणा गणित ? इस समिकरणों को कुछ इस तरह से समझा जा सकता है...
हैट्रिक के दावे फ्लॉप
लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही देश में रैलियों पर सियासी दांव पेंच लगाने का सिलसिला शुरू हो चुका था। अकेले राजस्थान फतह को बरकरार रखने के लिए खुद पीएम नरेंद्र मोदी की 11 धुआधार रैली, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित कई केन्द्रीय नेताओं का राजस्थान में जमावाडा रहा। इन सब के बावजूद 25 की 25 सीटें लेकर हैट्रिक लगाने का दावा 4 जून को धराशायी होता नजर आया।
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सियासत में कई बार घड़ी की सुइयां उलटी दिशा में भी चलती हैं। कमजोर टिकट, संगठन की फूट और जातीय समीकरणों को साधने की चूक के साथ जनाधार वाले नेताओं की अनदेखी राजस्थान में भाजपा पर भारी पड़ गई। मुख्यमंत्री भजनलाल के गृह क्षेत्र पूर्वी राजस्थान में 5 में से 4 सीटों पर कांग्रेस ने परचम लहरा दिया। तो वहीं, माकपा, हनुमान बेनीवाल की आरएलपी और बीऐपी ने अन्य तीन सीटों पर कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी को पटखनी दे दी।
रविन्द्र सिंह भाटी की हार
वहीं, किनारे हुई पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के पुत्र ने पांचवीं बार भी झालावाड़ से जीत दर्ज की। लेकिन, पूर्व सीएम गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत फिर लोकसभा चुनाव में औंधे मुंह गिर गए। बीजेपी के 4 केन्द्रीय मंत्रियों में से 3 ही मंत्री जीत सके। लेकिन, कैलाश चौधरी, रविन्द्र सिंह भाटी कांग्रेस के सामने चुनाव हार गए। कांग्रेसी महेंद्रजीत मालवीय को बीजेपी में पैराशूट नेता माना गया और परिणाम भी हार के रूप में सामने आया। तो वहीं, राहुल कस्वां को बीजेपी ने किनारे क्या किया की जनता ने बीजेपी को ही हाशिये पर ला दिया। राहुल कस्वां ने चुरु लोकसभा से बीजेपी प्रत्याशी देवेंद्र झाझरिया को 72737 वोटों से परास्त कर दिया।
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कांग्रेस ने मारी बाजी
आरोप कांग्रेस पर थे की आपसी मतभेदों के चलते सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई ने विधानसभा चुनाव में पार्टी का बंटाधार कर दिया, जिसका असर यहां भी देखने को मिला। गहलोत के पुत्र हारे, लेकिन पायलट और गोविन्द डोटासरा का जोरदार असर काम आया और जातीय वोट के स्विंग ने कांग्रेस को 10 साल बाद राजस्थान में बड़ी जीत दे दी। बीजेपी के लिए 7 में से 4 सांसदों की हार के साथ विधानसभा चुनावों में सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ाने का प्रयोग महंगा पड़ा। ठीक वैसे ही इस बार 11 सांसदों के टिकट काटे जाने या बदलने जाने का भी नुकसान 8 सीटों की हार के रूप में सामने आया।
भाजपा का 10 फीसदी वोट बैंक कम
इस मरुधरा में दलित, राजपूत, गुर्जर, मीणा जैसे कई जातीय टीबे मौजूद हैं जो राजनीतिक हवाओं के रुख के मुताबिक, जगह बदलते रहते हैं। और हुआ भी वही, SC-ST का वोट बीजेपी से खिसका और राजपूतों की नाराजगी ने राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक बीजेपी के वोट बैंक को प्रभावित किया। परिणाम यह रहा कि 2019 के मुकाबले भाजपा का करीब 10 फीसदी वोट बैंक कम हो गया। जबकि, कांग्रेस का 3.66 फीसदी वोट बैंक बढ़ा और बीजेपी हैट्रिक से चूक गई, जिसे लेकर बीजेपी अब मंथन की बात कह रही है।
5 विधायक बने सांसद
बीजेपी ने सांसदों का विधायकी का चुनाव लड़ाया, जिसका उसे विधानसभा चुनाव में खामियाजा उठाना पड़ा। लेकिन, इसके उलट कांग्रेस गठबंधन ने 6 विधायकों को लोकसभा के मैदान में उतारा और 5 विधायक जीत कर अब संसद जायेंगे। 5 सीटों पर अब उपचुनाव होने हैं। खैर, चुनाव में इस बार मुद्दे प्रभावी नहीं रहे तो वहीं, सिर्फ मोदी के चेहरे पर बैठे राजस्थान में भाजपा जातिगत समीकरणों को साधने में विफल रही है और नतीजे सबके सामने हैं।
बहरहाल, राजस्थान की सियासत में लगातार दो लोकसभा चुनावों में क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी के लिए यह करारी हार कई स्थानीय परिवर्तन की ओर भी संकेत करती है। हालांकि यह सब इतनी जल्दबाजी में बीजेपी नहीं करना चाहेगी। उधर, लोस में संजीवनी मिलने के बाद कांग्रेस अब प्रदेश में भी परिवर्तन के साथ साथ विधानसभा में आक्रामक नज़र आ सकती है।
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