Rajasthan: जोधपुर शहर की खास पहचान है ये मिठाई, इसके स्वाद की धमक विदेशों तक, जानिए इसके सफर की कहानी

Rajasthan: सन 1920 के आसपास जोधपुर के निकट जाजीवाल गांव के कारीगर जयराम दास ने कचौरी की रेसिपी को गलती से बना दिया था, जिसमें कचौरी में नमकीन भरावन की जगह मीठा भर दिया था। जोधपुर की मावा कचौरी के मुरीद देश ही में नहीं बल्कि विदेशों तक हैं। यहां के रहवासियों के मुताबिक, पाकिस्तान के लोग भी यहां से मावा कचौरी मंगवाते हैं। इसके अलावा सिंगापुर, इंग्लैंड, खाड़ी देशों सहित कई देशों में इसे मंगवाया जाता है।

Jodhapur Mava Kachouri

राजस्थान के जोधपुर की लजीज मावा कचौरी की धमक विदेशों तक (फाइल फोटो)

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • हलवाई ने गलती से कचौरी में नमकीन की जगह मीठा भर दिया था
  • सन 1920 में त्रिपोलिया बाजार में मावा कचौरी बननी शुरू हुई थी
  • आज दुनिया भर में लोग जोधपुर की मावा कचौरी के मुरीद हैं

Rajasthan: राजस्थान की पहचान यहां के किलों, महलों और शानदार हवेलियों के अलावा और भी है। प्रदेश के अलग- अलग हिस्सों में कई प्रकार के जायकेदार मिठाइयां और व्यंजनों की भरमार है। इसी कड़ी में आपको बताएंगे एक ऐसे लजीज व्यंजन के बारे में जिसे जानने के बाद आपका मुहं पानी से भर जाएगा। राजस्थान के पश्चिमी इलाके में रेगिस्तान व अरावली की सुरमयी वादियों के बीच बसा जोधपुर शहर।

जिसे ब्लू और सन सिटी भी कहा जाता है। यहां पर बनती है एक ऐसी मिठाई जिसकी धमक देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक है। कचौरी का नाम सुनते ही हींग की महक वाली या फिर आलू के मसाले से भी तीखी खुश्बू वाली नमकीन की तस्वीर आपके दिमाग में उभर जाती है। मगर, इसके अलावा कचौरी को बनाने का एक तरीका और भी है, जिसे मिठाई के तौर पर जोधपुर में बनाया जाता है। तो आइए जल्दी से जानते हैं जोधपुर में मावा कचौरी का इतिहास व इसे बनाने का तरीका।

तुक्के से बन गई थी मावा कचौरीमावा कचौरी का इतिहास जानने के लिए चलना होगा 128 साल पुराने त्रिपोलिया बाजार में। यहां की संकरी गलियों में देशी घी की भीनी-भीनी खुश्बू के साथ इलायची और केसर की गंध हर किसी को मदहोश कर देती है। हालांकि इसके इतिहास को लेकर यहां के लोग एक मत नहीं हैं। कोई इसका इजाद सात दशक पहले का बता रहा है तो कोई 120 साल पहले। यहां के रहवासी बताते हैं कि, शहर की सबसे पुरानी मिठाई की दुकान पर काम करने वाले एक हलवाई ने तुक्के से मावा कचौरी की रेसिपी का इजाद कर दिया, जो आज दुनिया भर में मशहूर हो गई है। लोगों के मुताबिक, सन 1920 के आसपास जोधपुर के निकट जाजीवाल गांव के कारीगर जयराम दास ने कचौरी की रेसिपी को गलती से बना दिया था, जिसमें कचौरी में नमकीन भरावन की जगह मिठा भर दिया था।

जानें कैसे बनती है लजीज मावा कचौरीजोधपुरी मावा कचौरी बनाने के लिए सबसे पहले मैदे में घी का मोइन डाल गूंथा जाता है। इसके बाद दूध से मावा बना इसे कड़ाही में बहुत देर तक पकाया जाता है। भुने हुए मावे में इलायची, जायफल, जावित्री व केसर से इसकी भरावन तैयार की जाती है। बाद में मैदे के आटे की पूरी बेलकर इसमें मावा भरा जाता है। स्टफिंग के बाद इसके कचौरी की शेप देकर देशी घी में तला जाता है। कचौरी के तैयार होने के बाद इसे चाशनी में डालकर परोसा जाता है।

पाकिस्तान को भी भाती है मावा कचौरीजोधपुर की मावा कचौरी के मुरीद देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक हैं। यहां के रहवासियों के मुताबिक, पाकिस्तान के लोग भी यहां से मावा कचौरी मंगवाते हैं। इसके अलावा सिंगापुर, इंग्लैंड, खाड़ी देशों सहित कई देशों में इसे मंगवाया जाता है। वहीं बाॅलीवुड के लोग भी मावा कचौरी का जायका चखना पसंद करते हैं।

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