Global Spiritual Festival 2025: अफगानी लुटेरों ने जिस मंदिर को किया नष्ट, उसके पुनर्निर्माण के लिए दुबई में मिला सम्मान
दुबई में आयोजित ग्लोबल स्पिरिचुअल फेस्टिवल 2025 ने दुनिया भर के लोगों को भारतीय संस्कृति और अध्यात्म से जोड़ने का एक अनूठा मंच प्रदान किया। इस भव्य आयोजन में धर्म और अध्यात्म के साथ-साथ भारतीय संस्कृति की विविधता को प्रदर्शित किया गया। इस दौरान राजस्थान में एक मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने के लिए सम्मानित किया गया।
दुबई में मिला सम्मान।
Global Spiritual Festival 2025: दुबई में आयोजित ग्लोबल स्पिरिचुअल फेस्टिवल 2025 में धर्म और अध्यात्म के साथ-साथ भारतीय संस्कृति से रू-ब-रू होने का मौका मिला। ग्लोबल स्पिरिचुअल फेस्टिवल में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को दुनिया भर में पहचान दिलाने का प्रयास किया गया। इस अवसर पर राजस्थान के एक मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए दुबई में सम्मान मिला।
नीलकंठ महादेव मंदिर राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर
बता दें कि जालौर जिले के भीनमाल शहर में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर है। इसका इतिहास नागभट्ट प्रथम और अफगान लूटेरे महमूद गजनी से जुड़ा है। इस नीलकंठ महादेव मंदिर को कई वर्ष पहले अफगानी लुटेरों ने नष्ट कर दिया था, लेकिन आज यह मंदिर फिर से भव्य रूप में स्थापित हो चुका है। इस मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए सिरोही के राव प्रेम सिंह को सम्मानित किया गया है।
1400 साल बाद मंदिर का जीर्णोद्धार
करीब 1400 साल बाद अब राव प्रेमसिंह ने ही इस नीलकंठ महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार कराया है। इस फेस्टिवल की अगुवाई दत्ता पद्मनाभ पीठ गोवा के वर्तमान पीठाधीश्वर सद्गुरु ब्रह्मेशानंदाचार्य ने की, जिनके हाथों राव प्रेम सिंह को यह सम्मान मिला।
राजस्थान के नीलकंठ महादेव मंदिर के पुनर्निर्माण की कहानी ने वहां मौजूद लोगों को गर्व महसूस कराया है। सम्मान पाने वाले राव प्रेम सिंह का कहना है, "मंदिर का पुनर्निर्माण हमारी संस्कृति और परंपरा को संजोने का एक छोटा प्रयास है। मुझे गर्व है कि यह काम सद्गुरु ब्रह्मेशानंदाचार्य जी के आशीर्वाद से पूरा हो पाया।" उन्होंने आगे कहा कि नीलकंठ महादेव मंदिर का पुनर्निर्माण एक प्रेरणा है कि हमारी धरोहरों को बचाने और संजोने का काम हमें खुद करना होगा।
1400 साल पुराना मंदिर
राजस्थान में जालौर के भीनमाल में स्थित इस नीलकंठ महादेव मंदिर का इतिहास 1400 साल पुराना है। नागभट्ट प्रथम ने इसकी शिला रखी थी। 730 ई. में राजा शाह जुनैद ने भारत की सीमाओं पर आक्रमण किया जिसे नागभट्ट प्रथम ने खदेड़ दिया। इसके बाद नागभट्ट उज्जैन महाकाल के दर्शन के लिए रवाना हुए। जब वह भीनमाल नामक जगह पर रुके तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ का सपना आया और उन्हें वहीं रुकने को कहा। इसके बाद नागभट्ट ने उसी स्थान पर भगवान का मंदिर स्थापित किया।
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