राजस्थान में बच्चों का भविष्य संवार रहा SRF फाउंडेशन, देना चाहता है ई-कंटेंट, स्मार्ट क्लासेज की सुविधा

टाइम्स नाउ नवभारत के 'नवभारत नवनिर्माण मंच' पर SRF के प्रोग्राम ऑफिसर देवेंद्र कुमार ने विस्तार से अपने संगठन के कार्यों और केंद्रों पर चलाए जा रहे अपने बाल वाटिका कार्यक्रम के बारे में चर्चा की। देवेंद्र ने बताया कि उनका संगठन साल 2009 से इस दिशा में काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि बच्चों की पहली शिक्षिका उसकी मां होती है और इसके बाद बच्चा स्कूल पहुंचता है।

Navbharat Navnirman Manch : राजस्थान बच्चों को स्कूलों तक लाने और उन्हें गुणवत्तापरक एवं आधुनिक शिक्षा देने के लिए राज्य की अशोक गहलोत सरकार कई कार्यक्रम एवं योजनाएं चला रही हैं। सरकार के इस कार्य में गैर-सरकारी संगठन भी उसकी मदद कर रहे हैं। खासकर दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में बच्चों को स्कूल तक लाना अभी भी एक बड़ी चुनौती है लेकिन गैर-सरकारी संगठन SRF फाउंडेशन बीते 14 सालों में बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों तक लाने और उन्हें स्कूली शिक्षा से जोड़ने में एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुआ है।

टाइम्स नाउ नवभारत के 'नवभारत नवनिर्माण मंच' पर SRF के प्रोग्राम ऑफिसर देवेंद्र कुमार ने विस्तार से अपने संगठन के कार्यों और केंद्रों पर चलाए जा रहे अपने बाल वाटिका कार्यक्रम के बारे में चर्चा की। देवेंद्र ने बताया कि उनका संगठन साल 2009 से इस दिशा में काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि बच्चों की पहली शिक्षिका उसकी मां होती है और इसके बाद बच्चा स्कूल पहुंचता है। उनके संगठन का काम ग्रामीण इलाकों के बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों तक लाना और उन्हें स्कूली शिक्षा से जोड़ना है।

रंग लाया बाल वाटिका पहल

देवेंद्र ने बताया कि एसआरएफ ने तीन से पांच साल के बच्चों के लिए प्री-बाल वाटिका पुस्तक बनाई। फिर इसके बाद के स्तर बाल वाटिका के लिए बच्चों को पाठ्य एवं शिक्षण सामग्रियां उपलब्ध कराया जाता है। उनकी बाल वाटिका पहल राजस्थान में अच्छी तरह लागू है। बच्चों को पढ़ाने एवं उनकी देख-रेख करने के लिए आंगनबाड़ी केंद्र की महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है। ये महिलाएं आज बच्चों का भविष्य संवार रही हैं। इस कार्य में उन्हें राज्य सरकार से भी भूरपूर सहयोग मिला। सरकार ने महिलाओं को प्रशिक्षण, सामग्री देने में उनकी मदद की।

केंद्रों पर इको फ्रेंडली संरचना तैयार की-देवेंद्र

उन्होंने कहा कि SRF ने आंगनबाड़ी केंद्रों के रखरखाव, इमारत के सौंदर्यीकरण में योगदान दिया है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों को बैठने के लिए इको फ्रेंडली संरचना तैयार की है। देवेंद्र ने बताया कि शुरुआत में इनके संगठन ने 10 विद्यालयों से अपना काम शुरू किया। इन ग्रामीण केंद्रों में बिजली, पानी और शौचालय की व्यवस्था की गई। उन्होंने कहा कि बच्चों की मुस्कान उन्हें अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है। SRF अभी 18 आंगनवाड़ी केंद्रों पर काम कर रहा है, संगठन की कोशिश और आगे बढ़ने की है।

कम्यूनिटी मीटिंग के बाद लोगों का नजरिया बदला

देवेंद्र ने आगे बताया कि बच्चों को ग्रामीण इलाकों से निकालकर आंगनबाड़ी केंद्रों तक लाना एक बड़ी चुनौती थी लेकिन हमने संघर्ष किया। हमने गांव में कम्यूनिटी मीटिंग की। इसके बाद लोगों का नजरिया धीरे-धीरे बदलने लगा। पहले केंद्रों पर पांच-10 बच्चे आते थे लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 25-30 बच्चों की हो गई है।

'मिशन 2030 में डिजिटल पहलू को बढ़ाना चाहते हैं'

मिशन 2030 की अपनी सोच एवं लक्ष्य के बारे में उन्होंने बताया कि हमारा प्रयास इन केंद्रों पर स्कूली शिक्षा के डिजिटल पहलू को लेकर आगे बढ़ने की है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर हम ई-कंटेंट, स्मार्ट क्लासेज जैसी सुविधाएं विकसित करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि इस कार्य में सरकार थोड़ी हमारी मदद करे।

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