Bharat Ratna Award: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पी वी नरसिम्हा राव और हरित क्रांति के पितामह एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का फैसला किया गया है। इन तीनों विभूतियों का कानपुर शहर से खास कनेक्शन है। आइये जानते हैं आज भी लोग उनकी चर्चा क्यों करते हैं।
Bharat Ratna Award: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पी वी नरसिम्हा राव और हरित क्रांति के जनक एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का फैसले ऐलान किया है। साल 2024 में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए पांच शख्सियतों के नाम की घोषणा की गई, जो अब तक एक वर्ष में अधिकतम संख्या है। इससे पहले, 1999 में चार शख्सियतों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को घोषणा की कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पी वी नरसिम्हा राव और मशहूर वैज्ञानिक व देश में ‘हरित क्रांति के जनक’ डॉ एम एस स्वामीनाथन को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेता चौधरी चरण सिंह ऐसे समय में कांग्रेस विरोधी राजनीति की धुरी के रूप में उभरे थे, जब देश भर में पार्टी का वर्चस्व था। राव को आर्थिक सुधारों के लिए जाना जाता है। इन तीनों विभूतियों का कानपुर से गहरा नाता रहा है। आज भी लोग उनके योगदान को लेकर चर्चा करते हैं। आइये जानते हैं किस तरह उन्होंने कानपुर को सशक्त बनाने की दिशा में क्या प्रयास किए थे।
कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन का योगदान
प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन ने गेहूं और चावल की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे 1960 और 1970 के दशक के दौरान पूरे भारत में खाद्यान्न उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उन्हें चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भारत को कृषि में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद करने और भारतीय कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने की दिशा में उत्कृष्ट प्रयास करने का श्रेय दिया जाता है। देश में हरित क्रांति के जनक एम. एस. स्वामीनाथन को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किये जाने के केंद्र सरकार के निर्णय का उनकी बेटी डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने स्वागत करते हुए शुक्रवार को कहा कि उनके पिता इसे पाकर खुश होते, लेकिन उन्होंने कभी पुरस्कारों के लिए काम नहीं किया।
किसानों के मसीहा थे चौधरी चरण सिंह
केंद्र सरकार की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा करने के बाद उनकी जन्मस्थली नूरपुर की मढ़ैया में जश्न का माहौल है। पूर्व प्रधानमंत्री को भारत रत्न दिये जाने की सूचना मिलते ही ग्रामीण झूम उठे और पूरे गांव में ढोल नगाड़ों के साथ मिठाइयां बांटी गईं। उनके परिवार के सदस्यों ने इसके लिये प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया। चौधरी चरण सिंह का जन्म हापुड़ के बाबूगढ़ छावनी स्थित नूरपुर की मढ़ैया में 23 दिसम्बर 1902 को हुआ था।
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा के गठन की रणनीति कानपुर में बनी
भारत रत्न का गौरव पाने वाले चौधरी चरण सिंह ने भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा के गठन के दौरान राजनीतिक रणनीति कानपुर में ही बनाई थी। वर्ष 1983 में उन्होंने बैठक कर प्रदेश की राजनीतिक गतिविधियों को लेकर चर्चा की थी। वह अटल जी के काफी करीब थे। वह 1977 में लोकसभा चुनाव के दौरान भी कानपुर आए थे। वर्ष 1977 में जनता पार्टी के चुनाव में प्रत्याशी मनोहर लाल के समर्थन में सर्किट हाउस में आकर चौधरी साहब रुके थे। इसी तरह 1983 में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आने पर कांग्रेस के विरुद्ध बड़ी रैली में उन्होंने आह्वान किया था कि कांग्रेस को जिस तरह 1977 में हटाया था, बस वैसे ही हटाना है। चौधरी साहब जब मुख्यमंत्री थे तब नवाबगंज स्थित चिड़ियाघर के प्रस्ताव को हरी झंडी दिखाई थी। चौधरी साहब के किस्से शहर के लोगों की जुबान पर हैं।
फूलबाग जनसभा में पीवी नरसिंह राव ने कांग्रेसियों में भरा था जोश
वहीं, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पीवी नरसिंह राव ने 31 साल पहले फूलबाग में हुई कांग्रेस की जनसभा और कार्यकर्ताओं में जोश भरा था, जबकि उससे पहले आईआईटी भी आए थे। इसकी यादें अभी तक सबके मानस पटल में जीवंत हैं। जानकार और पुराने कांग्रेसी बताते हैं कि प्रौद्योगिकी संस्थानों के विकास को लेकर उनकी गहरी रुचि थी। वह 1976 में आईआईइटी कानपुर के निदेशक के आमंत्रण पर यहां आए थे। वो चाहते थे कि भविष्य में कानपुर को आईटी के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां मिलें।
सीएसए में इन प्रजातियों को विकसित करने एमएस स्वामीनाथन का हाथ
भारत को कृषि आत्मनिर्भरत बनाने की दिशा में कदम रखने वाले हरित क्रांति के जनक और पद्म विभूषण प्राप्त कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न मिलने पर कानपुर सीएसए कृषि विश्वविद्यालय और विज्ञानिकों में खुशी का माहौल है। वैज्ञानिक बताते हैं कि स्वामीनाथन के सुझाव पर ही सीएसए के कृषि विज्ञानियों ने गेंहू की बौनी प्रजाति पर अनुसंधान कर उसे विकसित किया था। दो मई 1982 में विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह में स्वामीनाथन को मानद उपाधि मिली। दैनिक जागरण के हवाले से विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर डॉ. विजय यादव ने बताया कि स्वामीनाथन 11 फरवरी 1989 को तीसरे दीक्षांत समारोह और वर्ष 2013 में विश्वविद्यालय में आयोजित अखिल भारतीय गेंहू कार्यशाला में भी बतौर मुख्य अतिथि शामिल होने आए थे। सीएसए के कृषि विज्ञानियों ने स्वामीनाथन के सुझाव पर गेंहू की चीनी प्रजाति पर अनुसंधान कर उसे किया था।