Kanpur News: गर्मी बढ़ने के साथ गंगा के जलस्तर में गिरावट, पांच दिन में 17 इंच नीचे गिरा पानी

Kanpur Ganga Water Level: गर्मी बढ़ने के साथ ही गंगा के जलस्तर में गिरावट देखने को मिल रही है। पांच दिनों में ही गंगा का जलस्तर 17 इंच गिरकर 358 फीट से 357.7 फीट पर पहुंच गया है। जलस्तर में और डेढ़ फीट की गिरावट होने से जलापूर्ति संकट हो सकता है।

कानपुर में गंगा नदी का जलस्तर

Kanpur Ganga Water Level: कानपुर समेत पूरी यूपी में गर्मी अपना कहर दिखा रही है। बढ़ती गर्मी का प्रभाव गंगा के जलस्तर पर भी देखने को मिल रहा है। गंगा का जलस्तर पांच दिन में ही 17 इंच नीचे गिर गया है। जलस्तर में गिरावट के साथ ही पानी में मटमैलापन भी बढ़ गया है। गंगा का जलस्तर 21 अप्रैल को 358 फीट था, शुक्रवार को यह घटकर 357.7 फीट पर आ गया है। गंगा के जलस्तर में डेढ़ फीट की और गिरावट होने पर जलापूर्ति के संकट का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि जलकल विभाग के अधिकारी ने बताया कि गंगा के जलस्तर की 24 घंटे निगरानी की जाएगी और जलापूर्ति को प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा।

20 करोड़ लीटर कच्चे पानी का शोधन

कानपुर में गंगा से रोजाना 20 करोड़ लीटर की जलापूर्ति हो रही है। जिसके लिए जलकल विभाग ने एक ड्रेजिंग मशीन चालू करने के साथ ही दो और लगा दी हैं। जिससे गंगा के कच्चे पानी को भैरोघाट पंपिंग स्टेशन की ओर लाने में परेशानी न आए। जलकल विभाग रोजाना 20 करोड़ लीटर कच्चे पानी को शोधित करने के लिए भैरोघाट पंपिंग स्टेशन से जलकल मुख्यालय बेनाझाबर भेजता है। यहां से पानी शोधित होने के बाद 28 जोनल पंपिंग स्टेशन के माध्यम से 100 मुहल्लों में पहुंचता है। लेकिन गर्मी के मौसम में गंगा का जलस्तर गिरने से पानी की समस्या खड़ी हो जाती है। जिसके कारण पानी को पंपिंग स्टेशन की तरफ मोड़ने के लिए शुक्लागंज की ओर बालू की बोरियों लगाई जाती है और अस्थाई बंधा बनाया जाता है। इस बार भी अस्थाई बंधा बनाने की तैयारी शुरू कर दी गई है।

गंगा के पानी का मटमैलापन बढ़ा

गंगा के जलस्तर में गिरावट होने के साथ ही पानी में मटमैलापन भी बढ़ गया है। एक हफ्ते से जलस्तर में गिरावट होने से पानी में 30 से 35 हैजन तक मटमैलापन पहुंच गया है। हालांकि गंगा के जल में साढ़े छह मिलीग्राम प्रति लीटर घुलित ऑक्सीजन भी है। लेकिन पानी में 0.012 मिलीग्राम प्रति लीटर नाइट्राइट भी मिला है। जिससे यह साफ हो गया है कि गंगा में कहीं पर दूषित पानी आकर मिल रहा है। पानी शोषित करने में रसायन के खर्चे में भी बढ़ोत्तरी हुई है। पानी के शोधन में पहले पांच से छह टन फिटकरी का इस्तेमाल हो रहा था। लेकिन अब यह बढ़कर 7 से 8 टन हो गई है।

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