IIT Kanpur: आईआईटी कानपुर सुधारेगा उत्तराखंड का इको सिस्टम, वैज्ञानिक स्टार्टअप खत्म करेंगे ये समस्याएं
IIT Kanpur: देवभूमि उत्तराखंड के इको सिस्टम में सुधार लाने के लिए आईआईटी कानपुर काम करेगा। सिक और उत्तराखंड काउंसिल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के बीच समझौता हुआ है। आईआईटी कानपुर स्टार्टअप के जरिए पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को दूर करेगा। संस्थान के इस काम में शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी) पूरी तरह मदद करेगा।
देवभूमि के इको सिस्टम में सुधार के लिए आईआईटी कानपुर करेगा काम
मुख्य बातें
- आईआईटी कानपुर करेगा उत्तराखंड के इको सिस्टम में सुधार
- सिक और उत्तराखंड काउंसिल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के बीच करार
- स्टार्टअप के जरिए पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को किया जाएगा दूर
IIT Kanpur: उत्तराखंड का इको सिस्टम सुधारने वाला है। आईआईटी कानपुर अब देवभूमि का इको सिस्टम सुधारेगा। इसके लिए संस्थान के स्टार्टअप इंक्यूबेशन एंड इनोवेशन सेंटर (सिक) और उत्तराखंड काउंसिल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के बीच करार हुआ है। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक स्टार्टअप के माध्यम से उत्तराखंड के वातावरण से जुड़ी समस्याएं खत्म करेंगे। इसके लिए बायोटेक्नोलॉजी सेक्टर से जुड़े संस्थान के स्टार्टअप की शुरुआत की जाएगी। सिक के इंचार्ज प्रोफेसर अंकुश शर्मा और यूसीबी के निदेशक प्रोफेर संजय शर्मा के बीच एमओयू हुआ।
प्रो.अंकुश के अनुसार, उत्तराखंड में आने वाली पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को स्टार्टअप के जरिए दूर किया जाएगा। सबसे पहले पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को चिह्नांकन किया जाएगा। बायोटेक्नोलॉजी सेक्टर के स्टार्टअप से सभी निस्तारण होंगे ताकि पर्यावरण या इको सिस्टम को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचे। इस काम में शहरी सहकारी बैंक (यूसीबी) पूरी तरह मदद करेगा।
आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने कियया ड्रोन सर्वेइससे पहले, आईआईटी कानपुर के भू-विज्ञानियों ने ड्रोन से जोशीमठ और आसपास के पहाड़ों का ड्रोन से सर्वे किया था। सर्वे के बाद आईआईटी के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि जोशीमठ में दरारों के बाद इसे दोबारा बसाना खतरनाक हो सकता है। भूगर्भ में पानी जमा होने से सतह पर दबाव बढ़ता जा रहा है। देवप्रयाग से ऊपर का इलाका संवेदनशील है। जोशीमठ में जमीन के अंदर मलबा खिसक रहा है। जिससे बारिश या फिर भूकंप से हालात बिगड़ सकते हैं।
जोशीमठ को लेकर भू वैज्ञानिक ने किया शोधकानपुर आईआईटी के भू वैज्ञानिक प्रो. राजीव सिन्हा के मुताबिक, जोशीमठ को लेकर जो शोध किया है उसके अनुसार, जोशीमठ लैंड स्लाइडिंग जोन में है। यहां दशकों से स्लाइडिंग होने के कारण पत्थर बेहद कमजोर हो चुके हैं। जोशीमठ में ज्यादातर घर और होटल इसके मलबे पर ही खड़े हैं। पहाड़ अपलिफ्ट हो रहे हैं, जिससे मलबा खिसक रहा है। प्रोफेसर ने कहा था कि जिन इलाकों में दरारें आ रही हैं, वहां पानी का रिसाव हो रहा है। प्रो सिन्हा का कहना है कि उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर उस इलाके का पूरा विश्लेषण किया है, उन्होंने ड्रोन के जरिए काफी डाटा जमा किया है। उन्होंने एक रिपोर्ट भी तैयार की है। इस रिपोर्ट को वह भारत सरकार को सौंपेंगे। प्रोफेसर ने दावा किया है कि इस इलाके को दोबारा बसाना भी बेहद खतरनाक हो सकता है।
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