Holi 2023: फूल और अरारोट बने रंग बढ़ाएंगे होली की उमंग, कानपुर के नेचुरल गुलाल की देशभर में सबसे ज्यादा डिमांड
Holi Special: कानपुर में होली के रंग और गुलाल बनाने का काम जोरों पर है। कानपुर में बना अबीर और गुलाल उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों में जाता है। प्राकृतिक रंग तैयार करने में सबसे ज्यादा इस्तेमाल फूल और अरारोट का इस्तेमाल किया जाता है। यह त्वचा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता है।
नेचुरल गुलाल फूलों के रस और अरारोट से होता है तैयार
- मथुरा के बाद कानपुर में खेली जाती है सबसे ज्यादा लंबे समय तक होली
- कानपुर के कारोबारी ने गुलाल और अबीर बनाने में जुटे
- यूपी ही नहीं देश के कई हिस्सों में जाता है गुलाल
Holi Special: होली का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाएगा। होली की तैयारी पूरे भारत में जोर-शोर से चल रही है। बाजारों में होली को लेकर खास रौनक देखाई दे रही है। रंग-बिरंगे गुलाल और रंग से बाजार सराबोर दिखाई देने लगे हैं। बाजार में कई तरह के रसायनिक रंग बिकने शुरू भी हो गए हैं। लेकिन इन रंगों से होने वाले नुकसान से बचाव को अब होली पर प्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल का चलन बढ़ने लगा है। उत्तर प्रदेश के मथुरा के बाद कानपुर में सबसे ज्यादा लंबे समय तक होली खेली जाती है। यही कारण है कि यहां के कारोबारी ने गुलाल और अबीर बनाने में जुटे हैं। अबीर गुलाल उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों में कानपुर से ही बनकर जाता है।
आपको बता दें कि कानपुर में फूलों के रस और अरारोट में कलर मिलाकर गुलाल तैयार किया जाता है। यह गुलाल नेचुरल होता है। यह त्वचा और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता है। कानपुर में लाल, नीला, हरा, गुलाबी और भगवा रंग समेत कई रंगों के गुलाल तैयार होते हैं, हालांकि इस वर्ष भगवा रंग की मांग सबसे अधिक है।
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होली पर बढ़ जाती है फूलों की बिक्रीआपको बता दें कि टेसू के फूलों से रंग बनाकर होली खेलने की परंपरा सदियों पुरानी है, टेसू के फूल वैसे से तो पूरे साल बिकते हैं लेकिन होली पर इसकी बिक्री कुछ अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि आज भी बहुत से परिवार टेसू के रंगों से होली खेलना पसंद करते हैं। टेसू के फूलों के विक्रेता ने बताया कि रात में टेसू के फूलों को पानी में भिगो दिया जाता है। इसमें थोड़ा चूना डाल दें तो रंग तेज हो जाता है। इसके अलावा सुबह इस पानी को खौला लिया जाए तो इसका रंग पक्का हो जाता है। इसके बाद इसे छानकर ठंडा होने के बाद होली खेली जा सकती है।
पलाश के फूलों से रातभर में बन जाता है रंगइसके अलावा पलाश के फूलों से भी रंग तैयार किया जाता है। पलाश के फलों से रंग बनाना काफी आसान है। पलाश के फूल से एक रात में रंग बन जाता है। पालक, धनिया पत्ती, चुकंदर और अंगूर से भी रंग बन जाता है लेकिन इनसे रंग बनने में दो से तीन दिन का समय लगता है। वहीं, गुलाल बनाने वाले व्यापारी ने बताया कि आरारोट से भी गुलाल बनाया जाता है। सबसे पहले आरारोट लेते हैं। आरारोट को एक मिक्सर में डालते हैं। उसमें पानी मिला लेते हैं। फिर जिस रंग का गुलाल तैयार करना होता है उसका नेचुरल कलर मिला देते है, यह मुंबई से आता है। इसके बाद इसे मिक्स कर पॉलीथिन पर फैलाया जाता है। सूखने पर इसे छानकर पैक किया जाता है।
तीन माह पहले से शुरू किया जाता है गुलाल बनानाकानपुर में नवंबर और दिसंबर के माह से गुलाल बनने का काम शुरू हो जाता है, यह होली तक लगातार चलता है। कानपुर में गुलाल की करीब 100 फैक्ट्रियां हैं। यहां हर फैक्ट्री में रोज लगभग 50 क्विंटल गुलाल तैयार होता है। व्यापारी ने बताया कि यहां से गुलाल कानपुर के सबसे बड़े रंग बाजार हटिया जाता है, यहां से फिर पूरे प्रदेश और देश के विभिन्न हिस्सों में भेज दिया जाता है। कानपुर के गुलाल की डिमांड हमेशा अधिक रहती है, क्योंकि यह नेचुरल होता है, यह सेहत के लिए भी हानिकारक नहीं होता।
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