IIT Kanpur: अब आईआईटी कानपुर लैब में तैयार होगा कृत्रिम हीरा!, 'असली' के सामान बिखेरगा चमक

IIT Kanpur: आईआईटी कानपुर लैब में अब कृत्रिम हीरा तैयार होगा। इसके लिए लैब ग्रोन डायमंड (एलजीडी) विकसित की जा सकती है। इसके लिए आईआईटी कानपुर सरकार को प्रस्ताव भी भेजेगा। कई देश लैब ग्रोन डायमंड पर काम कर रहे हैं, इसकी रिसर्च करने का काम भी आईआईटी को सौंपा जाना है।

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खदान से निकलने वाले असली हीरे के जैसे बिखेरगा चमक

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • आईआईटी कानपुर लैब तैयार करेगा कृत्रिम हीरा
  • आईआईटी कानपुर सरकार को भेजेगा प्रस्ताव
  • असली के जैसे खदान से निकलने वाला हीरा बिखेरगा चमक

IIT Kanpur: खदानों से निकलने वाले हीरे के जैसे ही अब लैब में तैयार हीरा भी चमक अपनी बिखेरेगा। यह हीरा आईआईटी कानपुर की लैब में तैयार किया जा सकता है। आईआईटी कानपुर में इसके लिए जल्द एक लैब स्थापित की जा सकती है। लैब में देश अपना लैब ग्रोन डायमंड (प्रयोगशाला में बना हीरा) बनाने की तकनीक विकसित करेगा। याद रहे कि भारत अभी तक हीरा का आयात करता है, जिससे यह काफी महंगा मिलता है। भारत में लैब ग्रोन डायमंड तकनीक विकसित होने के बाद आम आदमी भी डायमंड लेने का सपना संजो सकता है।

दरअसल, अमृत काल के पहले बजट के बाद सबसे ज्यादा चर्चा लैब में निर्मित हीरे को लेकर हुई है। लैब ग्रोन डायमंड पर कई देश काम कर रहे हैं। भारत भी इस क्षेत्र में पिछड़ना नहीं चाहता। ऐसे में अगले पांच वर्षों में लैब ग्रोन डायमंड की तकनीक तैयार करने के लिए आईआईटी को रिसर्च एंड डेवलपमेंट का काम सौंपा गया है। हालांकि बजट में इसका खुलासा नहीं हुआ कि यह जिम्मेदारी किस आईआईटी को दी जा रही है।

संस्थान सरकार के सपने को पूरा करने के लिए तैयारलेकिन आईआईटी कानपुर ने सबसे पहले पहल की है और इस लैब को स्थापित करने और रिसर्च एंड डेवलपमेंट शुरू करने का प्रस्ताव दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, साल 2030 तक लैब ग्रोन डायमंड का बाजार चार लाख करोड़ रुपये के लगभग पहुंचने के आसार हैं। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अभय करंदीकर निदेशक के अनुसार, बजट में लैब ग्रोन डायमंड के इलाके में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आईआईटी को रिसर्च एंड डेवलपमेंट की जिम्मेदारी देने के लिए कहा है। संस्थान सरकार के इस सपने को पूरा करने के लिए पूरी तरह तैयार है।

हीरों का खनन करने के लिए काटे जाते हैं हजारों पेड़आपको बता दें कि रासायनिक रूप से हीरा शुद्ध कार्बन का बना होता है। हीरे को खदान से निकालने में बहुत मेहनत, समय की बर्बादी और पानी भी लगता है। जहां हीरों का खनन किया जाता है, वहां हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं। खदानों में मजदूरों की हालत भी खराब होती है, हीरा मिल जाए इसकी भी कोई गारंटी नहीं रहती है। इसलिए लैब ग्रोन डायमंड की जरूरत पड़ी है।

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